Saturday, June 14, 2008

कुछ हल्का हो जाए....!

दो-तीन दिनों से किसी नज़दीकी रिश्तेदार के ऑपरेशन ने एम्स का ख़ूब चक्कर लगवाया। काफी टेंसन में था। घर पर मेल खोलते ही छोटे भाई द्वारा फारवर्ड किए गए एक मेल पर ध्यान गया। एक जोक था। पढ़कर खूब हंसा। सारा टेंशन काफूर हो गया। मेल अंग्रेज़ी में था। ट्रांसलेट कर के पोस्ट कर रहा हूं। आप भी मजा लीजिए.....कुछ लोग गर्व भी कर सकते हैं।

कहानी अखिलेश मिश्रा की है। किसी बड़े मल्टिनेशनल में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। जन्म, शिक्षा सब बिहार में हुई है। दिल्ली में नौकरी करते हैं। दफ्तर से बाहर आते ही दिल-दिमाग पटना के गांधी मैदान का चक्कड़ मारने लगता है। अखिलेश काफी कार्यकुशल थे। समस्या सिर्फ़ एक थी। बॉस को लगता था कि अखिलेश गप्पी नंबर वन है। जब देखा डिंग मारता रहता है। मैं इसे जानता हूं...उसे जानता हूं। बाकौल अखिलेश, अक्षय कुमार से लेकर प्राधानमंत्री तक सब उसे जानते हैं। बेचारे बदनाम हो गए थे। एक दिन बॉस ने अखिलेश को अपने चैंबर में बुलाया। "क्यों अखिलेश, राहुल गाँधी से तुम्हारा परिचय है क्या?" स्योर सर- अखिलेश बोला। "मैं और राहुल तो कॉलेज के दिनों से ही एक दूसरे को जानते हैं।" अच्छा, मिलवा सकते हो??? जी, जब आप चाहें। बॉस को साथ लेकर अखिलेश 10 जनपथ पहुंच जाता है। राहुल गाँधी किसी मीटिंग में व्यस्त थे। अचानक अखिलेश पर उनकी नज़र गई तो उछल पड़े। "अरे अक्खी तुम..! कैसे आए, कुछ विशेष काम है क्या? नहीं यार, बस इधर से गुज़र रहा था, सोचा तुम से मिलता चलूं। आओ साथ में खाना खाते हैं...।

बॉस अखिलेश से प्रभावित हुआ। लेकिन उसके दिमाग में अभी भी संशय था। 10 जनपथ से बाहर आने के बाद बॉस ने अखिलेश से कहा...यह महज संयोग था कि राहुल गाँधी तुम्हें जानते हैं। अरे नहीं बॉस मुझे सब जानते हैं। यह कोई संयोग-वंयोग नहीं था। किससे मिलना चाहते हैं- बताईये तो। जार्ज बुश.....जार्ज बुश से मिलवाओ तो मानें। अरे, यह कौन सी बड़ी बात है, अखिलेश ने कहा। चलिए वाशिंगटन चलते हैं। दोनों वाह्ईट हाउस पहुंच जाते हैं। उस वक्त जार्ज बुश अपने काफीले के साथ कहीं निकल रहे थे। अचानक उनकी नज़र अखिलेश मिश्रा पर चली जाती है। बुश का काफिला रुक जाता है। आखिल्स.......! व्हाट अ सरप्राईज़। मैं एक जरूरी मीटिंग के लिए निकल रहा था। तभी तुम और तुंम्हारे दोस्त नज़र आ गए। लेट्स हैव अ कप ऑफ टी आर कॉफी। बॉस चक्कड़ में पड़ जाता है। लेकिन शक का कीड़ा अभी भी उसे सता रहा था।

बॉस ने कहा, चलो मान गए। लेकिन ये असंभव है कि तुम्हें सब जानते होंगे। अरे, अब भी कोई शक है आपको....!!!! हाँ, क्या तुम मुझे पोप से मिलवा सकते हो??? कुछ सोचते हुए अखिलेश ने कहा, ठीक है सर। लेकिन उसके लिए रोम चलना होगा। और दोनों रोम के वैटिकन स्कावयर पहुंच जाते हैं। वहाँ श्रद्धालुओं की पहले से ही काफ़ी भीड़ थी। "ऐसे नहीं होगा", अखिलेश ने बॉस से कहा। आप यहीं ठहरिए। पोप के गार्ड मुझे पहचानते हैं। मैं उपर जाता हूं और पोप के साथ बालकोनी में आउंगा। वहाँ आप मुझे पोप के साथ देख लेना। यह कह कर अखिलेश भीड़ में गुम हो गया। ठीक आधे घंटे के बाद अखिलेश मिश्रा पोप के साथ बालकोनी में प्रकट होता है। लेकिन वहाँ से लौटने के बाद यह देखता है कि उसके बॉस का इलाज डाक्टर डाक्टर लगे हैं। बॉस को माईल्ड हार्ट एटैक आया था। बॉस के स्थिति में सुधार होते ही अखिलेश ने उनसे पूछा- क्या हो गया था आपको? जब तुम और पोप बालकोनी में आए तब तक तो सब ठीक ही था। लेकिन तभी मेरे बगल में खड़ा एक व्यक्ति नें कहा - "ये अखिलेश मिश्रा के साथ बालकोनी में कौन खड़ा है"???

अब इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है????? NEVER underestimate a Bihari........हल्की बात है, हल्के में लीजिएगा।

3 comments:

Udan Tashtari said...

हा हा!! मजा आ गया भाई-हम तो वैसे भी अन्डर एस्टीमेट करने की पहले से ही जोखिम नहीं उठाते थे और अब तो और सतर्क हो गये. गजब!!

Unknown said...

अब इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है????? NEVER underestimate a Bihari..................हां क्योंकि गप्प में इनका कोई सानी नही है........

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

वाह भई वाह, इस तरह की कहानी कोई बिहारी ही कह सकता है.....और अंडरस््टीमेट तो किसी को भी करना बुरी बात है..