शादियों में दावत उड़ाने तो हम-आप जाते ही रहते हैं। जाने से पहले आमंत्रित भी किए जाते हैं। बल्कि आमंत्रित किए जाते हैं, तभी जाते हैं। कोई अभिषेक-ऐश्वर्य टाईप के सेलिब्रेटी शादी में तो आमंत्रित करता नहीं है कि भारतीय मीडिया की तरह बेशर्मी से पहुँच जाएं। अब पता नहीं अमिताभ एंड फ़ैमिली ने उनका कैसा आवभगत किया। खाने-पीने के लिए पूछा भी या ऐसे ही विदा कर दिया। खै़र, बात आमंत्रण की हो रही थी। किसी जमाने में शादी, मुंडन, जनेउ, श्राद्ध या फिर कोई अन्य धार्मिक संस्कारों में हज्जाम (नाई)/ पंडित भोजपत्र पर निमंत्रण लेकर भेजे जाते थे। समय बदला और भोजपत्र धीरे-धीरे विलुप्त होते चले गए। उनकी जगह कागज़ के बने कार्ड ने ले लिया। तरह-तरह के कार्ड सादे, डिजाईनर, ब्लैक एंड ह्वाईट, रंगीन, फोल्डिंग, रोलिंग। कहने के मतलब की जैसा खर्च़, वैसा कार्ड। इन कार्डों में भी शादी के कार्ड सबसे मजेदार होते हैं। हों भी क्युं न भई, शादी जो है! यह कार्ड आपकी समाज में हैसियत भी तय कर देती है। कार्ड का पूरा पोस्टमार्टम किया जाता है। शादी में कितना खर्च़ हो रहा है, इसके आँकड़े भी अमुमन पड़ोसी/रिश्तेदारों को कार्ड ही मुहैया करा देते हैं। कुल मिलाकर आप कार्ड को विवाह का प्रवक्ता भी मान सकते हैं। अगर आप रिश्तेदारों को कार्ड भजते हैं, तो सबसे पहले वे उसमें अपना नाम तलाशेंगे। अगर है, तो आप सबसे अच्छे अगर नहीं या फिर ग़लती से छूट गया है, तो फिर आपकी खैर नहीं। हलांकि ऐसी ग़लतियां होती नहीं हैं, बल्कि की जाती हैं।
शादी का कार्ड लेकर निमंत्रण देने कौन जाता है, यह भी भारतीय सामाजिक व्यवस्था में काफी महत्वपूर्ण है। अगर कार्ड दूसरों के हाथों भिजवाया जाता है, तो बहुत संभावना है कि आमंत्रित न आएँ या फिर कोई बहाना बना दें। अगर कार्ड रिश्तेदारों के हाथों भिजवाते हैं तो चाँस 50-50 है। आपकी समाज में कोई हैसियत है तो लोग आएँगे अगर नहीं है तो शायद न भी आएँ। सबसे आदर्श स्थिति होती है कि शादी का कार्ड लड़के का बाप/ बड़ा भाई लेकर जाए। कार्ड तो हाथ से दे ही, साथ ही मनुहार (रिक्वेस्ट) भी करे कि... अरे आपके ही बेटे या बेटी की शादी है। बचपन से आपका स्नेह उसे प्राप्त रहा है। आशा है आगे भी आशिर्वाद बनाए रखेंगे। साथ ही कुछ राय भी ले लें जो कि अपने देश में मुफ्त मिलता है। लोग इसे देने में दानवीर कर्ण को भी पछाड़ देते हैं। राय कई तरह के हो सकते हैं, मसलन - किस टेंट वाले को ठेका दिया जाए?, मेन्यू में क्या-क्या रखा जाए?, शर्मा जी को कार्ड देना उचित होगा कि नहीं?, गहने कहाँ से बनावाए जाएँ? आदि आदि...। यह अलग बात है कि सारी चीजें आपने पहले से ही फिक्स कर रखी है। बस इतना कर दें, भारतीय मनोदशा बड़ी ही इमोशनल होती है। लोग तो आएँगे ही, साथ ही जी- जान लगाकर आपका सहयोग भी करेंगे। हमारे सामाज में सबसे बदतर स्थिति उस दुल्हे की होती जो जोश में स्वयं अपने शादी का कार्ड बांटने निकल जाता है। लोग कहते हैं "देखो तो, कितना व्याकुल/ बेहया है अपनी शादी के लिए"।
पारंपरिक कार्ड प्राय: टू फोल्डेड होता है। दायाँ भाग ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। तो पहले उसी पर एक नज़र -
किसी भी शादी कार्ड के सबसे उपर "श्री गणेशाय नम:" लिखा होता है। इसके ठीक नीचे गणेश जी की स्तुति होती है जैसे - "वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा " । मान्यता है कि गणपति के नाम से शुरू किया गया कोई भी कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाता है। न्यूक्लियर डील से पहले अगर "सेक्यूलर सरकार" गणपति पूजा करवा लेती तो डील निश्चित रूप से पास हो गई होती। किसी-किसी कार्ड पर "सर्वमंगल-मांगल्ये शिवे सर्वाथॆ-साधीके........॥" वाला श्लोक भी लिखा मिल जाएगा।
स्तुति के ठीक नीचे "जेनरल से पार्टिकुलर" वाला भाग शुरू होता है। यह हिस्सा सबसे महत्वपुर्ण होता है। यह इंट्रो से बाडी का ट्रांजीशन प्वांईंट भी होता है।
परमपिता परमेश्वर की असीम अनुकंपा से
हमारे सुपौत्र
चिरंजीवी/ आयुष्मान - महेश
(सुपुत्र - श्रीमती चपकलिया देवी एवं श्री बूटन सिंह)
संग/ परिणय
स्वस्तिमति/ सौभाग्याकाँक्षिणी - रूबी
(सुपुत्री - श्रीमती अंजू सिंह एवं श्री ललटू सिंह)
के दांपत्य सुत्र/ बंधन/ पाणिग्रहण संस्कार के शुभ/ पुनीत अवसर पर पधार कर वर-वधु को अपने स्नेहाशीष से अभिषिक्त कर हमें अनुग्रहित करें।
या
के शुभ परिणयोत्सव के शुभ वेला पर आपकी स्नेहमयी उपस्थिति एवम् आशीष हेतु हमारा स्नेह भरा आमंत्रण।
दर्शनाभिलाषी में प्राय: लड़के/ लड़की के पिता या फिर दादा का नाम होता है। वहीं आकांक्षी में परिवार के अन्य सदस्य और (इन लॉज या कुकुरमुत्ते की tarah उग आए रिश्तेदार) का नाम ठूंस दिया जाता है। मसलन दामाद, बहनोई, मामा और घर के चवन्नी-अठन्नी। जगह के कमी के कारण कोई छूट न जाए इसलिए अंत में समस्त मिश्र\ सिंह\ प्रसाद\ श्रीवास्तव परिवार लिखकर भविष्य में होने वाले विवादों पर विराम लगाने का असफल प्रयास कर दिया जाता है। यह आदर्श स्थिति है। अब कल्पना करें कि वर या कन्या का चाचा, मामा, जीजा आदि, आदि में से कोई भी वरिष्ट सरकारी पद को सुशोभित कर रहा है या भूतकाल में कभी करता था। ऐसे में व्यक्ति के नाम के साथ उसका पद बोल्ड अक्षरों में लिखा मिलेगा। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति उस पद पर एड-हॉक बेसिस पर है या परमानेन्ट। मसलन श्री गंगा नाथ झा - भारतीय प्रशासनिक सेवा, श्री राजेंद्र सिंह - वरिष्ट अभियंता, श्री एन आर लाल - मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट। अगर रिटायर हो चुके है तो नाम से पहले छोटे अक्षर और हल्के स्याही से रि. कर्नल यू एन झा। पद को नाम से ज्यादा अहमियत दी जाती है। इसमे कुछ ग़लत भी नहीं है। शैक्सपियर ने कहा था न कि " नाम में क्या रखा है - फूल को जिस नाम से पुकारो वह फूल ही रहेगा"। या फिर "पद या संस्था हमेशा व्यक्ति से बड़ी होती है"। इन नामों का क्रम परिवार में "डिग्री आफ क्लोजनेश" का भी इंडिकेटर होता है। नाम सबसे पहले है तो आपके संबंध मधुर हैं और अंत में हैं तो आप समझ सकते हैं। और अगर नाम है ही नहीं तब तो....।
इसके अलावा हाल के वर्षों में कुछ नयी या कहें विचित्र ट्रेंड देखने को मिला है। जैसे - चुन्नू-मुन्नू के चाचा/ मामा की शादी में जलूल-जलूल आना। ये शब्द किसी बच्चे की तुतली जुबान की लगती है। हलांकि इस लेखन शैली का जन्म कब और किस बिश्खोपड़े ने किया कहना मुश्किल है।
कुछ कार्डों में - कृप्या गिफ्ट लेकर न आएँ भी छपा मिल जाएगा। दरअसल यह एक रिमांईडर है। रिमांईडर है कि भई, बिना गिफ्ट के कैसी शादी! लिखने का आशय होता है कि उपहार के बिना खाली हाथ झुलाते हुए आने का जोखिम न लें। उपहार लाओ तो कोई बात बने। अपनी-अपनी श्रद्धा है। मुझे लगता है कि इस लाईन का खोज़ उपहार लाने की घटती प्रवृति को ध्यान में रखकर किया गया होगा। गिफ्ट जरूर आए इसलिए मेहमानों को इमोशनली ब्लैक मेल करने के वास्ते एक शेर भी लिख दिया जाता है - शिकवा न हमें कोई मंज़ूर, न कोई बहाना होगा.....हमारी खुशियों की कसम, आपको आना होगा।
अभी हाल में एक कार्ड देखने को मिला जिसमें बांएँ साईड में सबसे नीचे लिखा था - नोट : कृप्या महिलाओं का भी निमंत्रण इसी कार्ड द्वारा स्वीकार करें। ऐसे महिलाओं के लिए अलग से कोई कार्ड हिन्दुस्तान में छपता हो, यह बात मेरी जानकारी में नही थी।
आजकल हिंदी में लिखे कार्ड अपने अंग्रेज़ी भाईयों से भी ख़ासे प्रभावित दिखते हैं। उदाहरण स्वरूप आपको अब खालिश देशी कार्ड पर भी आरएसवीपी लिखा दिख सकता है। इस फ्रेंच एक्सप्रेशन का मतलब मैं पिछले दो दशकों से ढ़ूढ़ रहा हूँ।
अब एक नज़र कार्ड के बाईं साईड पर।
इधर भी सबसे उपर मोंटाज में गणेश जी का ही रिज़र्वेशन होता है। उसके नीचे गणेश मंत्र - ।। मंगलम भगवान विष्णु.....।।
इसके नीचे कार्ड का सबसे मज़ेदार हिस्से से आपका सामना होगा। टू लाईनर्स का हिस्सा। यानि दो लाईन वाले कविता, गीत, शेर, नज़्म...कुछ भी कह लीजिए। इसकी एक झलक आप भी देखिए -
कुछ रोमांटिक:
भेज रहे हैं स्नेह निमंत्रण, प्रियवर तुम्हें बुलाने को.....हे मानस के राजहंस, तुम भूल न जाना आने को।
दो फूल खिले, दो हृदय मिले, दो सपनों ने श्रृंगार किया.....दो दूर देश के पथिकों ने संग-संग चलना स्वीकार किया। (अरे भैया, काहे और कहाँ का स्वीकार)
सजा रहे यह बाग बगीचा "कालू" जैसे माली से....तुम भी सजी रहो "चमकि" अमर सुहाग की लाली से।
कुछ इमोशनल:
बाबुल तू बगिया के तरूवर, हम तरूवर की चिड़िया रे...दाना चुगते उड़ जाएं हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे।
कुछ ज्यादा ही इमोशनल:
बाबुल की दुआएँ लेती जा,..........।
मुझे लगता है इन कविताओं को लिखने वाले वित्तरहित कालेज के प्रोफ़ेसर रहे होंगे, जो तनख्वाह न मिलने के कारण इस क्षेत्र में भाग्य आजमाने के लिए आए होंगे।
कार्ड के इसी हिस्से में ही वैवाहिक कार्यक्रम भी छपा होता है। बचपन में कार्ड का यही हिस्सा ही सबसे ज्यादा आकर्षित करता था। अरे भाई, खाने-पीने का प्रोग्राम यहीं लिखा होता है न। जैसे -
दिनांक 08-03-2007, दिन बृहस्पतिवार - मण्डपाच्छादन एवं घृतढरी
दिनांक 10-03-2007, दिन शनिवार - रात्रि में शुभ विवाह और प्रीतिभोज
इसी प्रीतिभोज शब्द पर आँखें ठिठक जाती थीं। अब किसकी, किससे शादी हो रही है इससे बच्चे को क्या मतलब। बच्चा तो अबोध होता है न। खाएगा-पिएगा और सबसे बड़ी बात यह कि किताबों से छुट्टी। मन करता था कि शादी में पिताजी देर तक दोस्तों से बतियाते रहें। लौटने लगें तो मेजबान पिताजी को थोड़ी देर और रुकने के लिए बोलें। उन्हें भी अच्छा लगेगा और मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा।
मज़े की बात यह है कि कार्ड किसी भी वीवीआईपी का क्यों न हो, प्रिंटर महोदय कोई भी मौका नहीं छोड़ते अपने विज्ञापन का। प्रिन्टिंग प्रेस का नाम, पता, पिन कोड, मय दूरभाष नं., इतने बोल्ड लेटर में छपा होता है जितना लड़का, लड़की या उसके बाप का भी नहीं होता है। एक बानगी यूं है -
अग्रवाल कार्डस्
दरियापुर गोला
पटना - 800012
0612 - 2680243, मो. 9835050312
पता नहीं आजतक किसी ने इस बात पर कोई आपत्ति क्यों नहीं की!
एक संभावना यह भी है कि भविष्य में वीआईपी शादियों के कार्ड को निजी कंपनियाँ स्पांसर कर सकती हैं।
इस लेख को लिखने के क्रम में एक मित्र से फोन लगाकर पूछा कि वो एकाध गणपति के श्लोक सुझाएं। ऐसे श्लोक जो प्राय: शादी के कार्डों पर लिखा होता है। उनका कहना था कि फोन लगा कर पटना में पिताजी से पूछ लो न। उन्हें याद होगा। घबरा गया......सोचा, कहीं वो न घबरा जाएँ।
16 comments:
भाई, आपने तो भूले हुए दिन फिर से याद करवा दिया। अब तो लोग ई-कार्ड भेज देते हैं। हाय...कहाँ गए वो दिन।
बाबुल तू बगिया के तरूवर, हम तरूवर की चिड़िया रे...दाना चुगते उड़ जाएं हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे।.....वाह भाई, मजा आ गया। याद आ गया, शादियों का मौसम। थैक्स।
भारतीय मनोदशा का सटीक चित्रण किया है आपने। कई सालों से विदेश में रह रहा हूं। कार्ड के तो दर्शन भी दुर्लभ हो गए है। बढ़िया काम कर रहें हैं आप। कम से कम इसी बहाने अपने मुल्क/शहर/गाँव को तो हम याद कर ही लेते हैं।
सच तो लिखा है, बड़ी समस्या हो जाती है दर्शनाभिलाषी और आकांक्षी के नामों को चुनने में। जिसका नाम छूट जाए वही नाराज़ हो जाता है। दरअसल ये कार्ड सामाजिक ताने-बाने का आईना भी तो होते हैं। अच्छा लगा पढ़ कर।
बेहतरीन!! मस्त मस्त!!
:)
ऐसे ही विस्तार से लिखते रहें. हम नेह निमंत्रण मान करने पढ़ने आते रहेंगे दूरे देश से. :)
महाशय काफी ध्यान से कार्ड पढ़ते होंगे आप तो। विषय पर गहन शोध और पकड़ है। शादी हो गई है क्या?
बहुत ख़ूब....सेलिब्रेटी शादी में आवश्य आमंत्रित किए जाएँगे। लिखते रहें। आपके सारे पोस्ट पढ़े आईडिया के स्तर पर काफी संमृद्ध हैं आप। प्रशन्नचित्त जा रहा हूं, फिर से आने के लिए।
फिर से लौट आई वो यादें। कार्ड पर छपे वो लाल आक्षर भूल सा गया था। और कार्ड का पोस्टमार्टम करने की प्रथा तो हमारे सामाज का अभिन्न हिस्सा रहा है। शादी के दिन होम वर्क से भी तो छुट्टी मिल जाती थी। खू़ब इंज्वाय करता था।
Mujhe aapka yeh blog bahut accha laga. Sirf isliye nahi ki yeh accha likha gaya tha balki isliye ki ye ek aise topic par likha gaya tha jiske bare main log shayad itna kuch soch hi nahi payenge. Is blog ko padhkar mujhe Bahir Sahab ka ek sher yaad aata hai
Yahan libaas ki qeemat hai, aadmi ki nahi
Mujhe glass bade de, jaam kam kar de
great!!
विवाह हेतु निमंत्रण पत्र के विषय में अच्छा लेख लिखा गया है लेख में वर्णित समस्याओ का वास्तव में सभी को सामना करना पड़ता है ।
विवाह हेतु निमंत्रण पत्र के विषय में अच्छा लेख लिखा गया है लेख में वर्णित समस्याओ का वास्तव में सभी को सामना करना पड़ता है ।
मान्यवर लिखा क्या जाय वो भी बता दीजिए कि किस स्थान पर क्या लिखना उचित होगा
भेज रहा हूँ नेह निमन्त्रण प्रियवर तुम्हे बुलाने को
हो मानस के राजहँस तुम भूल न जाना आने को
ये प्रसिद्ध दोहा देश विदेश के शादी के कार्डों में भी खूब छपा इसकी दीवानगी हिन्दीभषियो में बहुत है जो सरहदें पर कर गया
जिसे कन्नौज के एक कवि पं० शम्भूदयाल त्रिपाठी नेह जी ने लिखा था
"उतना ही लें थाली में , व्यर्थ न जाये नाली में "
खाओ मन भर, छोड़ो न कण भर
Nice card information
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