Thursday, December 13, 2007

सौंदर्य का अर्थशास्त्र

हम भारतीय भी अजीब इनफिरियरिटी कांप्लेक्स से ग्रसित होते है। हमारे यहाँ लड़कियाँ चाहे कितना भी पढ़-लिख लें, गोरा होने की चाहत सबमें कूट-कूट कर भरी होती है। वर्ण श्याम हो तो सांवला होने की चाहत, सांवला हो तो गोरे होने का। और अगर गोरा हैं तो और भी गोरे होने का। महिलाओं के इस मनोदशा ने न जाने कितने पतियों, बापों और ब्यॉय फ्रेंडों को कंगाली के मुहाने तक पहुंचा दिया है। अभी हाल में पटना जा रहा था। मेरे साथ एक परिवार भी अपनी बेटी की शादी के लिए जा रहा था। परिवार के सभी लोग सेकेन्ड क्लास स्लिपर में बैठे थे लेकिन जिस लड़की का विवाह होना था वो एसी में। वो इसलिए क्योंकि उन्हें डर था कि पटना पहुंचते-पहुंचते लड़की का कॉम्प्लेक्शन न बिगड़ जाए। महिलाओं की इस मनोदशा का लाभ सौंदर्य प्रसाधन कंपनियाँ भी जम कर उठा रही हैं। लोरियल, पांड्स, इमामी, हिंदुस्तान लीवर आदि सरीके कंपनियां रोज़-रोज़ सेल के नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। सर्वेक्षण ऐजेंसी ऐ सी निलसन के एक आंकड़े पर यकीन करे तो पता चलता है कि साल 2005 में भारत में सौंदर्य प्रसाधन का धंधा सालाना साढ़े 16 हज़ार करोड़ का था। यह आंकड़ा हर वर्ष 6-7 फ़ीसदी की दर से बढ़ भी रहा है। इस 16 हज़ार करोड़ में भी सिर्फ़ कॉम्प्लेक्शन सुधारने वाली प्रसाधनों का बिज़नेस 7 हज़ार करोड़ का है। है न कमाल की बात!

पर्सनल केयर मार्केट में सबसे बड़ा हिस्सा हिंदुस्तान लीवर का है। ज़र्मन यूनिलीवर की यह भारतीय सब्सियडरी, देश के प्रसाधन व्यापार के 30 प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करता है। हिंदुस्तान लीवर के प्रमुख उत्पादों में लक्स, लाईफबॉय, पीयर्स, रेक्सोना, फेयर एंड लवली, पॉड्स, सनसिल्क, क्लिनिक हेयर एन्ड केयर, पेप्सोडेंट, क्लोज अप और एक्स है। इसके अलावा हिंदुस्तान लीवर ने हाल में ही 1947 में स्थापित भारतीय कंपनी लेक्मे का भी अधिग्रहण कर लिया है। साथ ही लीवर देश भर ब्युटी सैलून का एक नेटवर्क भी संचालित करता है।

भारतीय बाज़ार में दूसरे नंबर पर प्रॉक्टर एंड गैंबल है। इस अमरिकी मल्टीनेशनल का यूएसपी है हेयर केयर। पेंटीन, रिज़्वायस और हेड एंड सोल्जर इसी के उत्पाद है। इसके बाद कोल्गेट पामोलीव का स्थान है। इसके बुके में टूथ पेस्ट, सेविंग क्रीम के अलावा कुछ बाथरूम प्रोडक्ट भी है। कोल्गेट ने वर्ष 2000 में कोल्ड क्रीम चार्मिस भी बाज़ार में उतारा।

प्रसाधन कंपनी लोरिएल का भी देशी बाज़ार में महत्वपूर्ण हिस्सा है। हलांकि इस कंपनी के उत्पाद मुख्य रूप से शहरी उपभोक्ता को लक्ष्य में रख कर बनाए गए हैं। फिर भी बाज़ार में कंपनी का हिस्सा 7 प्रतिशत के आसपास स्थिर है। लोरिएल का मुख्य उत्पाद गार्नियर के नाम से बाज़ार में बेचा जा रहा है। कंपनी के बुके में मुख्य रूप से हेयर केयर, स्किन केयर और बालों को रंगीन बनाने वाले उत्पाद हैं। लोरिएल के बाद भारत में हैंकल का स्थान है। फा, मार्गो और नीम साबुन इसके उत्पादों में प्रमुख हैं।

इसके अलावा एमवे, एवन और ओरिफ्लेम जैसी कंपनियां भी भारतीयों को सुंदर बनाने में व्यस्त हैं। इन कंपनियों का व्यापार करने का फंडा दूसरों से कुछ अलग है। ये अपने प्रोडक्ट को किराना दुकानों या रिटेल चैन के बजाय स्वयं अपने निजि नेटवर्क से बेचने में विश्वास करती हैं। इस मार्केटिंग के अभिनव प्रयोग के बदौलत ही मंहगे होने के बावज़ूद भी एमवे के उत्पाद गांव-गांव तक पहुंच गए हैं।

हलांकि कॉस्मेटिक बाज़ार पर मल्टीनेशनल कंपनियों की ही बादशाहत है, लेकिन कुछ भारतीय कंपनियां भी इस क्षेत्र में अपनी जगह पर टिके हुए है। इनमें गोदरेज और डाबर का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। गोदरेज के प्रोडक्ट्स में सिंथाल, फेयर एंड ग्लो और डाबर अपने वाटिका, अनमोल आदि उत्पादों से खूबसूरती बढ़ाने के धंधे में व्यस्त है।

ऐसा नहीं है कि इन कंपनियों का टार्गेट कंज़्युमर महिलाएं ही होती हैं। पुरुषों में भी सुन्दर दिखने की प्रबल इच्छा होती है। और इसी इच्छा का सम्मान करते हुए इमामी ने 2005 में फेयर एंड हैंडसम को बाज़ार में लांच किया। इस क्रीम के माध्यम से कंपनी ने एक झटके में ही सौंदर्य से उपेक्षित आधी जंसंख्या यानि पुरूषों को भी अपनी लपेट में ले लिया। अपने लांच के पहले वर्ष में ही इस क्रीम ने बाज़ार से 36 करोड़ बटोरा जो 2006 में 70 करोड़ तक पहूंच गया। लगभग 100 फ़ीसदी का विकास दर।

इन आंकड़ो में ग्रे मार्केट का कोई स्थान नहीं है। सीआईआई के आंकड़े बताते हैं कि देश में कास्मेटिक ग्रे मार्केट लगभग व्हाईट मार्केट से दुगनी है। सस्ते होने के कारण ग्रे प्रोडक्ट प्राय: कस्बाई या फिर देहाती मार्केट में धड़ल्ले से बिक जाते हैं। देखने में बिल्कुल आरिजनल सा लगने वाले इन उत्पादों के नामों की एक बानगी देखिए - लेक्मे - लाईक मी, फेयर एंड लवली - फेयर एंड लोनली, हेवेन्स गार्डेन - हैंगिंग गार्डेन, सनसिल्क - समसिल्क आदि।

अपने सामान को बेचने के लिए कंपनियाँ तरह-तरह के प्रचार का सहारा लेती हैं। गौर से इन विज्ञापनों को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि उपभोक्ता को ब्लैक मेल किया जा रहा है। इन विज्ञापनों की वजह से इन मल्टीनेशनल का माल आज देश के गाँव-गाँव तक पहूंच गया है। एचएलएल इंवेस्टर मीट 2006 के आंकड़ों के मुताबिक आज देश के कुल आबादी का 2.1 फ़ीसदी डियोडरेन्ट इस्तेमाल करता है। वहीं 22 फ़ीसदी लोग फेयरनेस क्रीम यूज़ करते हैं।

ऐसे पता नहीं गोरा दिखने का फितूर लोगों में होता क्यों है। हमारे यहाँ भोजपूरी में एक कहावत है "जो बात बा सँवर में उ गोर में कहाँ"। कहने का मतलब कि और नैन-नक़्श तीखे हों तो दमकता सांवला रूप सुबह की चमक को भी फ़ीका कर सकता है। और अपनी रेखा, काजोल और बिपासा भी तो सांवली ही हैं न। और कुछ बात तो जरूर है इन तीनों में। आप भी इत्तेफ़ाक रखेंगे।

अभी हाल में लोरियल ने एक क्रीम लांच किया है जिसका केमिकल कंपोजीशन लेक्टोकेलामाईन है। कहते है फाउंडेशन के साथ इस क्रीम को इस्तेमाल करने से आप झट से गोरे हो जाएंगे। अमावास्या में चाँद निकल आएगा। अल्प समय का यह क्रिमी फेनोमेनन आपको सांवले या काले होने के कांप्लेक्स से थोड़ी देर के लिए ही सही राहत तो दे ही देगा। बस क्रीम लगाओ और मंदाकिनी या फिर जुगल हंसराज की तरह चमचमा जाओ। हफ्ता एक, हफ्ता दो, हफ्ता तीन वाले झंझट से भी मुक्त। रिस्क सिर्फ़ एक है कि ग़लती से बारिश न हो जाए। अगर बारिश हो गई तो फिर......।

डिसक्लेमर: सौदर्य शास्त्र का मेरा ज्ञान बिल्कुल ही अधूरा है। अगर ग़लती से कुछ ग़लती लिख दिया हो तो क्षमा चाहूंगा।

7 comments:

Unknown said...

जरा भी यकीन नहीं था कि ख़ूबसूरती का धंधा 26000 करोड़ का है। भारत जैसे गरीब देश जहाँ प्राथमिकताएं दूसरी हैं, ये वाकई आश्चर्यजनक बात है।

Sundip Kumar Singh said...

bahut achchha ja rahe ho bhaii. badhai ho chithhajagat ke likhakaron mein chhapne ke liye

Unknown said...

"सौदर्य शास्त्र का मेरा ज्ञान बिल्कुल ही अधूरा है।" .... ग़लत, बिल्कुल ग़लत। बड़ा गूढ़ ज्ञान है आपका। अंदाज़ ही नहीं था कि देश में महिलाएं करोड़ों का पाउडर लगा लेती हैं।

Unknown said...

मैं आपके लेख में कुछ और जोड़ना चाहूंगी। कंपनियां ब्युटी को अब ब्रांड के रूप में भी प्रमोट कर रही हैं। देश में या फिर विदेशों में होने वाले लगभग सभी ब्युटी पिजेंट किसी न किसी कॉस्मेटिक ब्रांड द्वारा प्रायोजित रहते हैं।

Unknown said...

काफी दिलचस्प आकलन है। और जानकारी का इंतज़ार रहेगा।

Prabuddha said...

काफ़ी पुराना पाठक हूं आपका,लेकिन इस दफ़ा थोड़ा निराश किया आपने। आदमियों की गोरी बीवी की चाहत और परिवार की गोरी बहू की इच्छा पर भी लेखनी चलती तो अच्छा लगता। साथ ही अख़बारों के वैवाहिक विज्ञापन की 'गोरी लड़की' और यहां तक की अंग्रेज़ी Matrimonials में बड़ा बड़ा लिखा GORI GIRL भी आपकी पारखी नज़र से चूक गए। ये सब शामिल होते तो बेहतर होता। वैसे बाज़ार की कलई ठीक खोली है।

Rajiv K Mishra said...

भाई प्रबुद्ध....आपकी बातों से पूर्ण रूप से सहमत हूं। इस विषय के और भी कई आयाम हो सकते हैं। कोशिश करूंगा आगे से आप को निराश न करूं। ऐसे ही ग़लतियों पर ध्यान आकृष्ट कराते रहें। अच्छा लगा। हम अपनी ग़लतियों से सीखते हैं और धीरे-धीर च़ीजों को समझते भी हैं।