क्या ईश्वर है? अगर है तो कहाँ है? वह करता क्या है? उसके होने का औचित्य क्या है? रहता कहाँ है - आकाश में या पाताल में? खाता-पीता है या भूखे रहता है? संकट में मदद के लिए आगे भी आता है या फिर सिर्फ पूजा जाता है? बहुत पुराने और घिसे-पिटे सवाल हैं। क्या कोई दावे के साथ कह सकता है कि उसने भगवान को देखा है। नहीं न...! तो फिर ये आया कहाँ से। लोग पूजा क्यों करते हैं। कोई दावे के साथ ईश्वर के ना होने की बात भी नहीं कह सकता। आस्तिकों और नास्तिकों का यह विवाद सदियों से चला आ रहा है और चलता रहेगा। लेकिन, ईश्वर में आस्था की वजह क्या है? इस "आस्था की वजह" को ख़ोज निकालने का जिम्मा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उठाया है। आस्तिकों का भगवान में श्रद्धा क्यों है, इस तथ्य को ढ़ूढ़ निकालने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने पंद्रह करोड़ का स्पेशल ग्रांट भी मंजूर कर लिया है। इसके लिए इयान रामसे सेंटर फॉर सायंस एंड रिलिजन के शोधकर्ताओं की एक टीम बनाई गई है। यह टीम "आस्था" के कारणों के साथ-साथ यह भी पता लगाने की कोशिश करेगा कि, क्या ईश्वर को मान लेने से मानव जाति को अपने क्रमिक विकास में कोई विशेष लाभ भी मिला। साथ ही यह भी जानने की कोशिश की जाएगी कि इस आस्था का संबंध प्रकृति से है, इसे किसी व्यक्तिगत या समूहिक लाभ के लिए फैलाया गया या फिर यह सामाजिकता जैसे मानवीय स्वभाव का ही कोई बाई-प्रोडक्ट है। ऐसे धर्म पर डॉ लोहिया ने एक बार कहा था कि "राजनीति एक अल्पकालिक धर्म है और धर्म एक दिर्घकालिक राजनीति है"।
शोध से मिले नतीजे यह भी तय कर देंगे कि मानव जाति के आपसी संघर्ष के कारण धार्मिक हैं या फिर यह झगड़ा महज़ इंसानी फ़ितरत है। शोध यह भी बताएगा कि मृत्यु के बाद जीवन क्या सचमुच ऐसा विषय है जिसे पढ़ाए जाने की जरूरत है या फिर धर्म महज नेचुरल सेलेक्शन का एक उत्पाद है। इस बात पर भी ध्यान दिया जाएगा कि धर्म संबंधी सामान्य मान्यताएं कौन-कौन सी हैं। इस शोध को तीन वर्ष में पूरा कर लिए जाने की संभावना है।
1 comment:
राजीव भाई,
शानदार। आपने बहुत अच्छी जानाकरी दी है। इनफैक्ट ये वो सवाल हैं, जिन्हें मैं अपने होश संभालने के दिनों से जीता आया हूं। शायद ऑक्सफोर्ड का शोध ही मेरे सवालों का जवाब लेकर आए। वैसे शोध की कार्यप्रगति के बारे में भी बताते रहिएगा।
सुप्रतिम।
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