Saturday, June 7, 2008

कौवा कैसे मरता है?

बड़ा अज़ीब सवाल जान पड़ता है। अब सवाल है तो ज़ाहिर है, कोई जवाब भी निश्चित रूप से होगा। दरअसल, जवाब या फिर कह लें 'सत्य' की तालाश ने मुझे पिछले कई दिनों से परेशान कर रखा है। बड़ी बेसब्री से जवाब ख़ोज रहा हूं। पिछले दिनों छोटे भाई ने कौए के मौत को लेकर कुछ ऐसे तथ्यों से अवगत कराया कि मैं भौचक्का रह गया। हलांकि उसके बातों पर मैंने आँख मूंद कर विश्वास तो नहीं किया। लेकिन कोई मुकम्मल जवाब मुझे बड़े-बड़े दिग्गज़ों से भी नहीं मिल पाया। कौवा कैसे मरता है??

छोटे भाई के कथनानुसार, कौवे की मौत कभी भी प्राकृतिक नहीं होती है। कौवा की उम्र चार से पांच साल के बीच कुछ भी हो सकती है। कौवे को धरती पर अपनी उम्र के पूरे हो जाने का एहसास हो जाता है। मनुष्य की तरह उसे मौत से डर नहीं लगता है। वह अपने मौत से कुछ दिनों पहले वैली ऑफ डेथ (मौत की घाटी) में स्वयं उड़ कर पहुंच जाता है। वहाँ वह रोज़ तेज़ी से परवाज़ करता है, और पहाड़ के चट्टानों से अपने शरीर को टकरा देता है। जरूरी नहीं है कि पहले टक्कर में ही कौवे की मौत हो जाए। हो सकता है मरने में दो दिन, हफ्ता या महीना भी लग जाए। लेकिन मौत चट्टानों से टकराकर ही होती है। अब सवाल उठता है कि ये वैली ऑफ डेथ है कहाँ? कश्मीर में, झारखंड में, केरल, तमिलनाडू...कहाँ है मौत की घाटी। जवाब भाई भी नहीं दे पाया। जहाँ तक मुझे पता है वैली ऑफ डेथ, अमरीका के नेवादा प्रांत में है। नेवादा का दिल्ली या पटना से दूरी कम से कम बारह-चौदह हज़ार किलोमीटर तो निश्चित रूप से होगा। तो क्या कौवा अपने मौत को आलिंगन करने के लिए इतनी बड़ी दूरी तय करता है? अगर हाँ, तो यह सचमुच बड़ी आश्चर्य की बात है। अगर नहीं तो दूसरी वैली ऑफ डेथ कहाँ है? सोचने की बात है।

पक्षियों में कौवों की संख्या अच्छी-खासी है। देश के किसी भी हिस्से में चले जाएं, कोई पक्षी मिले न मिले कौवा आवश्य दिख जाएगा। इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद हम कौए की मृत शरीर को क्यों नहीं देख पाते हैं। जो दिखता है वो या तो बिजली के तारों से करंट लग जाने के कारण या फिर दिवाली में पठाखों की शोर के कारण हृदय आघात से मरा होता है। आखिर ऐसा क्यों है कि सर्वव्यापी कौए के बारे में हम इतना कम जान पाए हैं।

पंचतंत्र की कई कहानियों में कौए का किरदार बहुत अहम है। बुद्धिमान कौवे की कहानी तो आपको याद ही होगा। किस तरह एक प्यासा कौवा पानी की तलाश में भटकते हुए एक घड़े के ऊपर जा बैठा, लेकिन पानी घड़े की तली में था। उसने आस-पास के कंकड़ उठा-उठा कर घड़े में डालने शुरू किए और जब पानी की सतह ऊपर आ गई तो अपनी प्यास बुझाई। हमारे धर्मग्रंथों में भी कौए की महत्ता को समझाया गया है। ज्योतिष के दृष्टि से भी कौवा विशिष्ट है। शनि को प्रसन्न करना होतो कौवों को भोजन कराईए। घर की मुंडेर पर कौवा बोले तो मेहमान जरूर आते हैं। परंतु यह भी कहा गया कि कौवा घर की उत्तर दिशा में बोले तो घर में लक्ष्मी आती है, पश्चिम दिशा में मेहमान, पूर्व में शुभ समाचार और दक्षिण दिशा में बोले तो बुरा समाचार आता है।

भारतीय परम्परा में श्राद्धपक्ष के अंतर्गत काक-बलि की प्रथा अनादिकाल से प्रचलित है। काक-बलि के अर्थ होते हैं कौवे को उस अन्न का भाग देना जो श्राद्ध के लिए बनाया गया है। विप्रवर्ग को भोजन करने के पूर्व कौवों को उनका हिस्स दिया जाए, यह प्राचीन विधान है। लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए कि काग को यम पक्षी माना गया है और लोगों की यह आम धारणा है कि उसे आहार अर्पित करने से यमराज अपने दूतों के साथ पूरी तरह तुष्ट-संतुष्ट हो जाते हैं। काग को शकुन पक्षी माना गया है। किसी काल में उसे केन्द्रित कर एक विस्तृत शकुनशास्त्र तक की रचना की जा चुकी है। महाकवि सूरदास ने भी अपने एक पद में यशोदा के मुख से जो कहलवाया है उसके अर्थ हैं - हे काग, उड़कर किसी वृक्ष की डाल पर अपना आसन तो जमा और देख कि मेरे बलराम और कृष्ण आ रहे हैं क्या? अगर मेरे लाल वापस आ गए तो मैं तेरी चोंच को स्वर्ण-मंडित करवा दूंगी, सोने-चांदी के कटोरों में तुझे दूध-भात परोसूंगी।

कौवा यद्यपि अधम जाति पक्षी चंडाला कहा गया है और उसके झूठे पानी तक को लोग नालियों में बहा देते हैं, लेकिन उसी जाति में काक-भुशुण्डि जैसे महामनीषी का भी जन्म हुआ है, जो चिरकाल से परम वंदनीय माने जाते हैं। खैर, यह तो रही कौवे की महिमा.....दरअसल मूल प्रश्न अभी भी वहीं का वहीं है.....कौवा मरता कैसे है??????

9 comments:

Unknown said...

हैरत में हूं। मुझे भी किसी नें कुछ ऐसा ही बताया है। अगर यह सत्य है तो वाकई हैरान कर देने वाली बात है।

Unknown said...

राजीव जी, कौवे की मौत कैसे होती है...यह बात तो विवादास्पद हो सकती है। लेकिन कौवे से संबंधित अन्य तथ्य, जानकारी को काफी समृद्ध करती है। कितनी विचित्र बात है कि कौवे के बारे में लोग बहुत कम जानते हैं। काशी के घाटों पर मैंने पतृपक्ष के दौरान कौवों के महत्व को काफी नजदीक से अनुभव किया है।

Unknown said...

एक तिरष्कृत पक्षी को महान कैसे बनाया जा सकता है, यह बात कोई आपसे सीखे। जानकारी तो काफी दी है आपने। हो सकता है कौवा को देखने का मेरा नज़रिया भी कुछ बदल जाए।

Udan Tashtari said...

वेली ऑफ डेथ के बारे में सुना तो जरुर था मगर यह नाम कौव्वों के कारण है, यह पहली बार सुना. बहुत हैरत वाली जानकारी दी है. थोड़ा रिसर्च करने वाली बात बनती है.

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

बहुत खूब राजीव भाई, बहुत खूब. आपने कौवे जैसे पक्षी को इतनी ऊंची उड़ान दी, वाकई काबिलेतारीफ है.

मृत्युंजय said...

rajiv ji kaoye ke bare aap ki aur apke bhai ke jaankari nisandeh bahut gahri aur vistrit hai,par aap kuchh un manushyo ke bhi bare me soche aur bataye to jo roz marte hain jinki jivan aur mrityu ek ki sikke ke do aayam hote hain...

Unknown said...

~श्राद्ध किस लिए करना है~(उपयोगी और वैज्ञानिक तथ्य)

...क्या हमारे ऋषि मुनि पागल थे?
जो कौवौ के लिए खीर बनाने को कहते थे?
और कहते थे कि कव्वौ को खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा?
नहीं, हमारे ऋषि मुनि क्रांतिकारी विचारों के थे।

यह है सही कारण...

हमने किसी को भी पीपल और बड़ के पौधे लगाते हुए देखा है?
क्या पीपल या बड़ के बीज मिलते हैं?
इसका जवाब है ना.. नहीं....
बड़ या पीपल की कलम जितनी चाहे उतनी रोपने की कोशिश करो परंतु नहीं लगेगी।
कारण प्रकृति ने यह दोनों उपयोगी वृक्षों को लगाने के लिए अलग ही व्यवस्था कर रखी है।
यह दोनों वृक्षों के टेटे कव्वे खाते हैं और उनके पेट में ही बीज की प्रोसेसिंग होती है और तब जाकर बीज उगने लायक होते हैं, उसके पश्चात कौवे जहां-जहां बीट करते हैं वहां वहां पर यह दोनों वृक्ष उगते हैं
पिपल जगत का एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो round-the-clock ऑक्सीजन O2 छोड़ता है और वड के औषधि गुण अपरंपार है। अगर यह दोनों वृक्षों को उगाना है तो बिना कौवे की मदद से संभव नहीं है,इसलिए कव्वे को बचाना पड़ेगा।
और यह होगा कैसे?
मादा कव्वा भादर महीने में अंडा देती है और नवजात बच्चा पैदा होता है।
तो इस नयी पीढ़ी के उपयोगी पक्षी को पौष्टिक और भरपूर आहार मिलना जरूरी है, इसलिए ऋषि मुनियों ने
कव्वौ के नवजात बच्चों के लिए हर छत पर श्राघ्द के रूप मे पौष्टिक आहार की व्यवस्था कर दी।
जिससे कि कौवौ की नई जनरेशन का पालन पोषण हो जायें...इसलिए दिमाग को दौड़ाए बिना श्राघ्द करना प्रकृति के रक्षण के लिए जरूरी है..
और जब भी बड़ और पीपल के पेड़ को देखेंगे तो अपने पूर्वज तो याद आयेगे ही क्योंकि उन्होंने श्राद्ध दिया था इसीलिए यह दोनों उपयोगी पेड़ हम देख रहे हैं।🙇

Unknown said...

कोवे को त्रेतायुग से ही वरदान है वो नही मरेगा वैज्ञानिक दृष्टि कोण से भी कोवे की cell कभी नही मरती है इसलिए कोवे अक्सर असिडेंट या लाइट दुर्घटना आदि में मरते है

Unknown said...

बहुत ही रोचक जानकारी ।
आप सभी की में कृतज्ञ हूं ।