Sunday, October 24, 2010

मैं भी ओलंपिक की बात क्यों करने लगा हूं....

कॉमनवेल्थ गेम तो खत्म हो गया लेकिन इसके साथ ही बहुत कुछ भी बदल गया लगता है। गेम्स से कुछ दिन पहले तक जो लोगों में आक्रोश था वो गेम शुरु होने के बाद में खत्म होने लगा। मेडलों की चकाचौध में लोग भूलने लगे कि कुछ दिन पहले तक कलमाड़ी खलनायक जैसा लगता था। सोने और चांदी की खनक ने कलमाड़ी का भी बॉडी लैग्वेज बदल कर रख दिया था। हमारे पालिटिकल क्लास ने इसे बेहतरीन मौके के रुप में भुनाया। सरकार ने गेम खतम होने के तुरंत बाद इसके जांच की घोषणा कर दी। इससे फायदा ये होना था कि अब लोग सरकार को परम इमानदार मान लेते और कुछेक लोगों को बंद कर दिया जाता। हाल तक जनता की याददाश्त कमजोर होती थी, अब थोड़ी बढ़ी है-लेकिन आम जनता जो गांवो कस्बों में रहती है वो अब दूसरे मसलों की बात करने लगी है। मैं खुद एक महीना पहले तक जितना कलमाड़ी के बहाने भ्रष्टाचार को गरियाता था वो अब खत्म हो गया है। मेरे दोस्तों से मेरी बातचीत में अब कलमाड़ी नहीं आता। बल्कि मैं अक्सर अपने खिलाड़ियों पर गर्व करने लगता हूं। ज्यादा वक्त ऐसे ही बीतने लगा है। मुझे वो हसीन सपने आने लगे हैं कि हम ओलंपिक में चीन को पछाड़ देंगे। हम एक दिन ओलंपिक की तैयारी करेंगे। अपने मुल्क में ओलंपिक करवाएंगे।
यहीं से कलमाड़ी की संभावनाएं फिर से शुरु होती है। कलमाड़ी कह चुके हैं कि भारत को ओलंपिक करवाना चाहिए। मेरी सोच, जो मेरे जैसे करोड़ो युवाओं की सोच है उसे कलमाड़ी फिर से कैश करने के लिए तैयार बैठा है। बहुत जल्दी, शायद साल भर के भीतर ही जांच एजेंसिया कलमाड़ी को क्लीन चिट भी दे देगी। मुझे यकीन हो चला है कि वो इतना कच्चा खिलाड़ी नहीं है कि उसने पेपर वर्क में कोई कसर छोड़ी होगी।
कॉमनवेल्थ गेम में हमारा प्रदर्शन, वाकई अद्भुद था। हमारी पुलिस, हमारी व्यवस्था और हमारा व्यवहार सुचारु ही था। हमारे खिलाड़ियों ने बहुत अच्छा किया। लेकिन क्या वाकई इसमें कलमाड़ी का कोई योगदान था?? खिलाड़ियों की ट्रेनिंग या शहर की सुरक्षा उसके जिम्मे तो कतई नहीं थी। उस पर जो आरोप लगे वो अभी भी मौंजूं है। कलमाड़ी को इसका जवाब देना चाहिए। कॉमनवेल्थ गेम की ओपनिंग और क्लोजिंग सेरीमॉनी ने लोगों का मिजाज ही बदल दिया। कलमाड़ी पर लगे सारे आरोप धुंए की तरह उड़ गए।
लेकिन कलमाड़ी अभी भी चालें चल रहे है। शायद अगली बार पूरे देश के बजट का आधा वो ओलंपिक पर झोंकवा दे। गेम के बाद मेरे पापा भी ओलंपिक की बात करने लगे है, और अक्सर मैं भी। लेकिन मैं चाहता हूं कि सिस्टम ठीक हो जाए। वो कलमाड़ी जैसे लोगों के हाथों में न हो।

2 comments:

डॉ० डंडा लखनवी said...

कामनवेल्थ गेम्स की जिस प्रकार से अंत तक तैयारियों होती रहीं। अंतिम दिनों में प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा । यह स्थिति शर्मनाक और देश के सम्मान को धक्का पहुंचाने वाली है। गुणवत्ता और समयबद्धता पर जिस प्रकार से उंगली उठ रही हैं वह सोचनीय विषय है। इस प्रकरण की गंभीरता से जांच किए जाने की आवश्यकता है। ताकि भविष्य में ऐसी नौबत न आए।
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

Admin said...

bahut achhaa :)