Sunday, September 16, 2007

बड़ी दिल की लगी यार दिल्लगी.........!!! - 2

क्या लड़की भी तुमसे उतना ही प्यार करती है? दोस्तों के इस सवाल ने चुन्नी बाबू को डिफेंसिव मोड में ला दिया था। बोले- पता नहीं। लेकिन अच्छी लगती है। एक ने कहा- महराज अच्छी तो ऐश्वर्या भी लगती है। इसका मतलब क्या है? वो आपसे शादी कर लेगी का? दोस्तों की बात चुन्नी बाबू को बहुत नागवार लग रहा था। दावा ठोक दिया प्यार भी उसी से करते हैं और शादी भी उसी से करेंगे। दोस्तों ने समझाया, पहले नौकरी कर लीजिए, फिर इश्क-उश्क के चक्कर में पड़िएगा। मोटी तनख़्वाह नहीं होगी तो लड़की भी नहीं पूछेगी। अजी..पहचानने से इंकार कर देगी। एक ने कहा, इश्क का संबंध दिलों से होता है लेकिन शादी का सैलरी से। पहले दिलों के बीच में बादशाह आते थे अब सैलरी आती है। दोस्तों ने चुन्नी बाबू पर जैसे सामाजिक ज्ञान की वर्षा सी कर दी थी। लेकिन ज्ञानचंदों का भाषण चुन्नी बाबू के अटल इरादे को टस से मस न कर सके। ताल ठोक कर खड़े हो गए। बोले, चलो आजमा ही लेते हैं। चार-पाँच दोस्तों को साथ ले शाम में बत्रा सिनेमा के पास पहुँच गए। बत्रा के पास इसलिए क्योंकि वहीं उनकी "वो" कंप्यूटर क्लास करने जाती थी। लड़की रोज़ नज़र आती लेकिन उसे देखते ही चुन्नी बाबू हैंग कर जाते। लगातार हफ्ते भर प्रयास किया लेकिन नतीजा सिफ़र। कुछ दिनों बाद दोस्तों ने भी साथ जाना छोड़ दिया। सो अकेले ही धुनी रमाने पहुँच जाते। साथी-संगी भी ताने मारने लगे। अरे! उस दिन तो बड़ी जोश में उछल रहे थे। सब फुस्स हो गया का। प्यार करने के लिए कलेजा चाहिए कलेजा! किसी ने कहा। रूम में बैठकर हवाबाजी करने से कुछ नहीं होगा। मर्द बनिए मर्द। आलोचनाओं का जवाब चुन्नी बाबू मंद-मंद मुस्कराहटों से देते रहे। बोले कुछ नहीं।

क्रिकेट का खेल अपने नियत समय पर नियमित रूप से जारी था। फिर अचानक एक दिन चुन्नी बाबू खेलने नहीं आए। दूसरे दिन भी गायब। किसी को कुछ नहीं पता था कि खेल शुरू होने से ठीक घंटे भर पहले उनका कप्तान कहाँ गुम हो जाता है। तीसरे दिन आधा के करीब खेल हो चुका था। तभी चुन्नी बाबू नामुदार हुए। हाथ में आर्चीज़ का एक थैला था। लड़को ने अपने कप्तान को घेर लिया। दरियादिल चुन्नी बाबू थैले से फाईव स्टार निकाल कर सबको बाँटने लगे। काफ़ी खुश़ नज़र आ रहे थे। लड़को ने पूछा...का जी, कुछ स्पेशल है का? जवाब दिया...आम खाओ, गुठली से क्या मतलब है। लड़कों ने जिद की...बाबूजी मुखिया से एमएलए हो गए हैं का? ज़वाब फिर वही....आम खाओ.....। लड़कों ने फिर ज़िद नही की। उस रात अपने उपाध्याय जी बिल्कुल बदले-बदले से नज़र आए। प्यार में कवि तो पहले ही बन गए थे। आज गायक भी हो गए थे। बिनाका गीत माला के काउंट डाउन से लेकर कुमार सानू के रोमांटिक हिट्स, सबकी माँ-बहन कर दी। मैंने फिर से पूछा...का बात है पूरा रोमांटिक हुए जा रहे हैं। फिर फैल गए। बोले, नहीं ऐसे ही गा रहा हूँ। प्रेस किया तो बोले कि "किसी को बताना मत"। क्या? बोले कि "आज कमला नगर में श्वेता मेरा पीछा करते हुए पहुँच गई। फिर मुझे मैक डी मे ले गई और वहीं मुझे प्रपोज़ कर दिया"। चलिए गोली मत दीजिए। "अरे, गोली का देना है। उ जो फाईव स्टार मैं बाँट रहा था वो उसी ने गिफ्ट किया था।" अपने प्रेम के सफलता पर मुझे आश्वस्त करने के बाद बोले। "देखो, बात अपने तक ही रखना। ऐसे लड़कों को बता भी दोगे तो मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।" चुन्नी बाबू का ईशारा मैं समझ गया था। उनके कहने का मतलब था कि उनके दास्तान-ए-इश्क का ढिंढोरा पीट दिया जाए। लोगों को पकड़-पकड़ कर बताया जाए कि चुन्नी बाबू "सिंगल" से "कमिटेड" हो गए हैं। शहर में उनके इश्क के नाम पर बलवा कर दिया जाए। दिवारों पर पोस्टर चिपका दिए जाएँ। सावधान! ख़बर लोकल ही रहे। घर पर न जाने पाए। उनके इस इच्छा का सम्मान किया गया। बात निकली और दूर तलक फैल गई। या कहें फैला दी गई। बधाई संदेश मिलने लगे।

अगले दिन मैदान में लड़के भी अपने कप्तान के इस एचीवमेंट से फूले नहीं समा रहे थे। एक ने जोश में कहा...."कर लिया किला फतह"। किसी ने कहा..."अरे यह यूपीएससी टाँप करने से छोटा उपलब्धि थोड़े है!" एक लालबुझक्कड़ ने सलाह दिया कि "लड़की को इंसपिरेशन बना कर यूपीएससी में बैठ जाईए। सफ़लता की पूरी गारंटी है। तैयारी करते-करते टकले हो चुके नवल सर तो एक कदम और आगे बढ़ गए और सफ़ल दांप्तय जीवन की सफ़लता तक की बधाई दे डाली। बधाईयों के इस बरसात ने चुन्नी बाबू में जोश भर दिया। गर्ल्स हास्टल की तरफ घूम कर हाथ हिलाया। और भरी मैदान में रात की पार्टी का ऐलान कर दिया। पर्स में पड़े हरे-हरे कड़कड़ाते नोटों को गिनते हुए बोले। "रात में मुर्गा छिलेगा और दारू बहेगा"। पाँच बैगपाईपर का खंभा, तीन बोतल रम, एक कार्टन बीयर और पाँच-सात शहीद मुर्गे रात को रंगीन करने को तैयार थे। कुक को चुन्नी बाबू के इस नए घोषणा के बारे में पता चल गया। सो फ़ोन पर ही बीमार पड़ गया! दो जूनियरों को मेहमान नवाज़ी का जिम्मा सौंप दिया गया।

रात आठ बजे तक लड़के जुट गए थे। आने वालों में कमलेश सर और नीरज सर भी थे। पीने वालों में दोनों टैंकर के नाम से कुख्यात थे। दोनों पार्टियों में खाने-पीने नहीं जाते। सिर्फ़ पीने-पीने जाते थे। कम पीने में इनका यकीन नहीं था। दोनों को भविष्य में रोटी नहीं, अच्छी शराब की चिंता रहती थी। पढ़ाई भी इसलिए ही करते थे की भविष्य में दारू का सप्लाई अनवरत बनी रहे। खै़र, बोतल खुली और खुलती चली गई। गाना बजा दिया गया था। दारू के खाली बोतल लुढ़कते जा रहे थे। शराब खत्म होते-होते कमलेश सर बाथरूम के टब में मछली की तरह तैर रहे थे। मान लिया था कि वो मनुष्य योनि से मुक्त हो मछली रानी बन गए हैं। कमलेश सर से इंस्पायर होकर नीरज सर ने कहा। "माही वे" वाला गाना बजाओ। गाना शुरू होते ही कोने में पड़ी फ्युज़ ट्यूब लाईट उठा लिया। और मलाईका अरोड़ा की तरह कमर लचका-लचका कर पोल डाँस करने लगे। सिर्फ़ भोंदू सर को लगा कि धरती काँप रही है और पंखा उड़ गया है। आशीष जी सिगरेट की जगह कलम सुलगाने की कोशिश में व्यस्त दिखे। मनोज सर अंग्रेजी में महिला सशक्तिकरण पर भाषण देने लगे। सत्येंद्र जी माँ की याद में सुबक-सुबक कर रो रहे थे। बृजेश जी को गाँव की गर्ल फ्रेंड याद आने लगी थी। चुन्नी बाबू एक्सपिरिऐंस्ड गार्ज़ियन की तरह घूम-घूम कर जूनियरों को इंस्ट्रक्शन दे रहे थे। कँवारो की रात रंगीन हो चली थी। लड़के अपने कप्तान की सफ़लता को सेलिब्रेट कर रहे थे। काश! उस रात की सुबह नहीं होती!!!!........

क्रमश:...

9 comments:

Unknown said...
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sushant jha said...

kalam mein sharpness aati ja rhi hai,...lage rho...but ye3 5 star choclate bali baat katwariaya sarai se related lagti hai..!!

Unknown said...

Aapke kahani ka patr kya kabhi padhai-likhai nahin karta hai> Hindi filmon ki tereh lag raha hai. Wahan bhi Hero kabhi nahin padhta hai. Aise kahani acchi hai...Aage kya hoga??? Chunni Babu ka..likhiye

Unknown said...

भाई तुमको मेरी ही बलि लेनी थी. शादी शुदा आदमी हूँ. बीवी पढ़ लेगी तो फ़िर से कंवारा हो जाऊँगा. चलो कोई बात नहीं. बनारस आओ तो मिलो. रोहित और तुलिप कैसा है?

Manish Kumar said...

...एक ने कहा, इश्क का संबंध दिलों से होता है लेकिन शादी का सैलरी से।...

..लड़की रोज़ नज़र आती लेकिन उसे देखते ही चुन्नी बाबू हैंग कर जाते। ....

वाह तबियत खुश कर दी इन जुमलों ने। :)
भाई आपकी लेखन शैली बेहद रोचक है। जारी रहें...

Unknown said...

Chunni Babu types are available in every Mohalla, Colleges, offices etc....Did he marry the girl??? Or sth else happened in their love life??//

Unknown said...

कमलेश सर और नीरज सर काफ़ी इंटरेस्टिंग कैरेक्टर लगते हैं। सच्ची घटना है या फिक्सन? ऐसे बहुत मज़ेदार ढ़ग से लिखा है आपने। बिल्कुल आँखों के सामने की घटना लग रही है।

Unknown said...

Kahani bandhu likte aacha ho....story ka flow bhi acha hai...par thoughts mein thoda depth chahiye...abhi tumhari kalam ek commercial lekhak ki jayada lagti hai...u hv all the makings of a splendid writer...just keep honing ur skill...u will soon be there. keep up the good work...all the best!!

Shaghil Bilali said...

Rajiv sir appke lekh main pehle se zyada gehrai lagi aur kahani hindustan ke zyadatar yuvao ki zindagi ke bahut karib nazar aati hai. Hamare desh main jahan shaadi ek staphit samajik parampara hai aur iske liye koi minimum qualification bhi nahi hai, wahan ladki ke saamne pyaar ka izhar karne ya usse ruk kar baat karne main bade-bade shoorveeron ki hawa nikal jaati hai.Jaise misaal ke taur par, mera ek school mate tha, Zuhair. Agar uksi kahani narrative part main kahun to bhai ki school main hawa hai. Himmat ka aalam yeh hai ki ek baar ladai main khaufnaak PTI (Physical Training Instructure, jisko ki school ka discipline theek karne ke liye badi ummedon se laya gaya tha), us par bhi haat saaf kar chuke hain. School main unke signature ki hui slip se kaafi official kaam chutkiyon main ho jate hain. Mashallah aas-paas ke kai dhabon par udhar chalta hi rehta hai aur dhabe walon ki refugee ki tarah kabhi apna haq mangne ki himmat bhi nahi padti hai. Magar Zuhair sahab ka kasoor hai ki unhein ninth mein aate hi ishq ki zordaar hawa lag gayi hai. Waise to Zuhair baat-baat par zameen-asmaan ek kar dena ki dhamki deta hai, lekin apni mehbooba ke saamne jate hi unki halat par Myanmar walo ko bhi rona aa jaye..Mere yaar ne apni muhabbat ko lekar kum se kum 1 crore plans bana rakhe hai, jinka raag woh roz hume subha-shaam ki fizaon ke hisab se sunata hi rehta hai, lekin un plans ko implement karne ke liye uske paas Afrcain governemtns ki tarah koi vision aur himmat nahi hai..Cricket ke maidan main bhi zuhair bade choke-chhakke udata hai, magar apni girl friend ko dekte hi 22 yard ki duuri tai karne main uske haat-paon phool jaate hain. To kul mila kar kaha jai, to mera dost samaj ke un aashiqo ko pesh karta hai, jo hamasha samajik sanskaron aur parivarik bandhanon ki wajeh se hindustan main majority main hai. aur agar unke baap unpar yaqeen karke kuch karne ka mauqa de dein to woh kam se kam ek puurn-bahumat wali sarkar to bana hi sakte hain.
Zuhair ki kahani ka ant hindustani filmon ki tarah sukhad nahi hua aur
Ek zamane main unhe jis nazneen se ishq tha, ab usi mashooq ke bacchoon ke mama ho gaye
To Rajiv sir, aapka lekh ke Saket wale kirdar main mujhe kahin na kahin Zuhair khada nazar aaya aur likh diya lamba-chauda bhashan. To sir, likte rahiye, Shaghil ka salaam...