Sunday, February 17, 2008

खौल रहा है खली

एडिलेड वन डे में भारत के हार के साथ ही टेलीविजन स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टी लहराने लगी। "ऐडिलेड वन डे - भारत आस्ट्रेलिया से हारा"। हार के बाद आमतौर पर मैच का पोस्टमार्टम करने वाले न्यूज़ चैनल आज क्रिकेट को भूल गए थे। नीचे कमिंग अप चलने लगा "खली के दिल की बात", " चट्टान है खली"। एक चैनल पर प्रोमो में खली के पुराने विजुअल के साथ बैकग्रांउड में 'खलबली है खलबली' वाला गाना बजने लगता है। छ: बजते ही कई ख़बरिया चैनल हफ़्ते की सबसे बड़ी पैदा की गई ख़बर के साथ एयर को हिट करते हैं। एक चैनल का एंकर कुश्ती रिंग में प्रकट होता है, तो उसे पछाड़ते हुए दूसरे चैनल का एंकर पिंजरे में बंद होकर जलवाफरोश करता है। गौरतलब, यह कि दोनो एंकर देखने में पिद्दी पहलवान लग रहे थे। और शुरू हो जाता है द ग्रेट खली शो। स्क्रीन पर बड़ा-बड़ा चमकीला फ्लैश चलने लगता है - "हमारा खली, महाबली", "मेरे पास माँ है", "खली मचाओ खलबली", "खली बन जा काली", "मैं बनूंगा चैंपियन", "पटक कर मारना खली"। यह फ्लैश कभी-कभी ब्रेकिंग न्यूज़ या टॉप न्यूज़ का शक्ल भी अख़्तियार कर लोगों को सूचित कर रहा था कि - "भारत के लिए सम्मान की जंग", "करोड़ों देशवासियों के हाथ दुआओं के लिए उठे", "हिमाचल का शिरमौर"। "भारत के लिए सम्मान की जंग" वाला फ्लैश थोड़ी देर पहले क्रिकेट वाले ख़बर के साथ चल रहा था। भारत हार गया था, सो अक्षरों को सिर्फ़ कॉपी-पेस्ट कर खली वाले ख़बर का भी काम चला लिया गया। पहला पैकेज खली के महिमा मंडन कर रहा था। स्टोरी के बीच-बीच में स्पेशल इफेक्ट से कड़कती बिजली, गरजते शेर, उफनते समुंदर और फटते ज्वालामुखी के कट अवेज खली के ताक़त और गुस्से का अंदाजा दर्शकों को करा रहे थे।

पहले चैनल पर पैकेज ख़त्म होते ही, स्क्रिन पर चार विंडोज् नज़र आता है। चार लोकेशन से चार रिपोर्टर। पहला खली के गाँव सिरमौर से, दूसरा खली के गाज़ियाबाद स्थित पुराने अखाड़े से, तीसरा भोपाल से और डाउन लेफ्ट में पटना से। तंदरुस्त एंकर खड़ा करने में भले ही चैनलों से चूक हो गई, लेकिन चारों रिपोर्टर मोटे-ताजे और बुलंद दिख रहे थे। गाज़ियाबाद अखाड़ा वाले रिपोर्टर ने तो बकायदा WWE का टीशर्ट और सीने पर सील चिपका स्क्रीन पर इठला रहा था। रिपोर्टर के साथ खली के पुराने प्रतिद्वंदी गामा भी विडों में झांक रहे थे। और इशारा मिलते ही ये पहलावान कुश्ती का लाईव डेमो देने लगते हैं। डेमो के साथ-साथ स्लग चमचमाने लगता है - "खली भाई जीतेंगे"। बैकग्रांउड में खड़े कुछ ट्रेनी पहलवान नारे लगाने लगते हैं..."जीतेगा भाई जीतेगा..खली भाई ही जीतेगा"। म्यूजिक बजने लगता है।

अब भोपाल करोसपोंडेंट के ज्ञान देने की बारी था। लाईव चैट में रिपोर्टर इतने जोश में आ गया कि उसने खली के सारे इतिहास-भुगोल की ऐसी-तैसी कर दी। बोलते-बोलते इतना बोल गया कि एंकर के पास कुछ बोलने को बचा ही नहीं। जी..जी..जी...एंकर शुन्य हो गया था। भोपाल वाले रिपोर्टर के पास ही छोटा खली भी मौजूद था। 3-4 फीट लंबा छोटा खली पहलवान कम और जोकर ज्यादा दिख रहा था। छोटे खली ने टेलीविजन न्यूज़ के इतिहास में पहली बार लाईव खरबूजे का कचूमड़ निकालने का डेमो दिया। इस विजुअल के साथ ही स्क्रीन पर ब्रेकिंग लहराने लगा - "एक्सक्लुसिव - छोटे खली का उस्ताद को सलाम"

अपने को पिछड़ता देख दूसरा चैनल खली का रिकार्डेड फ़ोनो चलाने लगा। खली ने फ़ोन इन में कह दिया कि - "होने वाली लड़ाई को मीडिया इतना तूल न दे। यह तो इंटरटेनमेंट फाईट है, जिसमें हार और जीत पहले से ही तय होता है"। एंकर ने लाख कोशिश की कि खली उनके चैनल पर लाईव दहाड़ कर एक नया इतिहास रचे। लेकिन दहाड़ना तो दूर, खली नें सीधे मुंह बात भी नहीं किया।

इस बीच पहले चैनल ने एक और सॉलिड पैकेज ठोक डाला। इस पैकेज में खली के गुरू मनजीत सिंह का एक्सक्लूसिव टिक-टैक था। गुरू के इंटरव्यू के साथ फ्लैश फड़फड़ा रहा था - "गुरू माँग रहा है गुरू दक्षिणा"। इसी पैकेज़ में पहली बार लोगों को लेडी खली के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त होता है। दर्शक धन्य हो जाते हैं।

इधर चैनल थ्री खली की पत्नी हरपिंदर कौर का अमरीका से लाईव चैट ले रहा था। स्टूडियो में दो पहलवान गेस्ट भी थे। ये पहलवान खली को दुश्मनों का मिट्टी पलीद करने के दांव सिखा रहे थे। बाद में इस चैनल ने बनारस से रिपोर्टर का लाईव चैट भी लिया। शहर में खली के लिए पिछले दो दिनों से चल रहे महारूद्राभिषेक और बजरंगबली के प्रार्थना का एक्सक्लूसिव विजुएल भी दिखाया गया। नीचे फ्लैश में अनवरत चल रहा था - "ख़ौल रहा है खली" , "महायुद्ध का काउंट डाउन शुरू"

मामला हाथ से निकल रहा था। पहले चैनल का दम फूलने लगा। अंतिम समय में चैनल को माँ याद आई। अपनी नहीं....खली की माँ। चला दिया माँ का इंटरव्यू। मां ने कहा, "...हमने तो दुआ मांगी है कि मेरे बेटे की लाज रखना"। चकाचक.....अब कौन माँ का लाल टीआरपी ले जाएगा....। मार लिया मैदान। फ्लैश में फिर से हरकत होती है "मेरे पास माँ है"

9 comments:

संजय बेंगाणी said...

मीडिया की बकवास देखी थी. खिज हो रही थी. मगर इस पर ही आपक लिखा पढ कर मुस्कुराता रहा. मस्त लिखा है.

Unknown said...

राजीव भाई, आपने तो टीवी वालों की ऐसी तैसी कर डाली। खबरिया चैनलों से खबरें कहीं गुम हो गई हैं।

Unknown said...

अरे यार इन न्यूज वालों ने तो घर में आफत ला दिया है। बेटे ने कल खली वाली खबर क्या देख ली, आज स्कूल जाने से ही इंकार कर रहा था। खबर नहीं दिखा सकते तो कोई बात नहीं। गलत खबर तो नहीं दिखाएं।

Unknown said...

भाई राजीव, दुनिया एक बाज़ार है। यहाँ सबकुछ बिकाउ है। पहले नाग-नागिन, फिर अजब-गजब, अंतरिक्ष और अब खली। मीडिया को पता है कि क्या बिक सकता है क्या नहीं। खली बिकता है। उसकी सेलिबलीटी है। पैसा कमाने के लिए चैनल वाले उसे बेच रहे हैं। भारत का उपभोक्ता अभी मेच्योर नहीं हुआ है।

Unknown said...

लीजिए.....लग गई न नज़र। खली भाई हार गए। देश का आर्थिक विकास पर इसका प्रतिकूल असर होगा। जीडीपी दर घट सकती है। अकाल होगा, देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ का प्रलय भी आ सकता है। खली को आप कैसे अंडरमाईन कर सकते हैं!

Unknown said...

क्या बात कर रही हैं स्मिता जी.....अपने खली भाई हार गए। जूलूम हो गया। बाप रे बाप...। इज्ज़त का बताशा बन गया। देश का तमाशा बन गया। आओ सब मिलकर प्रलाप करते हैं।

sushant jha said...

मुझे तो यह लेख हंस के टीवी चैनल विशेषांक की कहानी लग रहा है। सवाल यह है कि हिंदी चैनलों के पास अादमी तो काबिल है लेकिन ये पैसे के लालची मालिकान एसे प्रोग्राम बनाने दे तव न। फिर एसा कोई त्यागी पत्रकार भी नहीं है न उसके होने की संभावना है कि वह मुद्दो के लिए भिड़ जाए। अब भला, फ्लैट का किस्त चुकाए या लड़ने का जज्वा दिखाए। कई दफा तो ढंग की शादी तक नहीं होती पत्रकारों की,एसे में कंटेट वहीं आता है जो समझौते के तहत तय होता है।
लेकिन यहां जो मूल सवाल है वह यह कि रोल माडेल के इस अकाली भरे दौर में चैनल करे तो करे क्या।नेताओँ ने रोल मॉडेल बनना कब का छोड़ दिया है। रही बात फिल्मी सितारों की तो उनका एक फुल चंक आता ही है-तब ले दे कर खली टाइप के लोग ही बच ते हैं।दूसरी बात जो महत्वपूर्ण है वो यह है कि हिंदी का जो विराट संसार करवट ले रहा है-उसका सरोकार क्या है...क्या वह वाकई गंभीर प्रोग्राम देखना चाहता है...या जो उस पर थोपा जा रहा है वहीं मान्य है.। लेकिन क्या यह सही नहीं है कि पानवाले और बदरपुर बार्डर जैसे इलाके में रहने बाले लोगों का इंटरेस्ट भारत-चीन संबंघ में नहीं हो सकता। और एसे में अगर कोई खली उसकी आकांक्षा को पंख लगाता है तो बुरा क्या है। लेकिन हिंदी के चैनल आजादी लेते-लेते इतना उच्श्रृखल हो जातें है कि अमिताभ को सर्दी लगी टाइप खबर चलाते उन्हे शर्म तक ऩहीं आती-इसका क्या कहा जाए। अंत में यहीं कहा जा सकता है कि समय सब कुछ ठीक कर देता है। और इसमें कोई आश्चर्य नहीं की हिंदी क्षेत्रों की संास्कृतिक दरिद्रता ही हिंदी चैनलों में भी झलक रही है-वरना वंग्ला और कन्नड़ चैनलों में भी सनसनी जैसा कार्यक्रम जरुर आता।

Sumit K Mishra said...

T.V. channels are nowadays making a mockery of the journalistic ethics.For them social and developmental news have become tertiary.They are even worse than the T.V. soaps.coming from the same fraternity, u showed the courage to accept the reality. Very well done .Keep it up

Anurag Sharma said...

this is rediculous that news channals are showin all this..is there no news left to show.