Wednesday, April 9, 2008

तूने आँखों से कोई बात कही हो जैसे...

हमारी आँखें ख़ुदा की दी हुई अनमोल नियामत है। है न....! दुनिया से पहला साक्षात्कार इन्हीं के ज़रिए तो होता है। शायरों ने इन आँखों की कहानी अपने अशआरों में तो खूब बयाँ की है। एक प्रेमी से पूछिए कि उसके महबूबा में सबसे ख़ास क्या है। उसकी नुरानी आँखे...यही जवाब मिलेगा। सचमुच जादुई चीज़ है आँखें। अनगिनत ख़्वाबों को पिरोती आंखें। दिल की राजदार आंखें। उदासी में नम आँखें। गुस्से में लाल आँखें। शर्म से झुकती आँखे। दुआ में उठती आँखें। अदा में तिरछी आँखें। काजल से काली आँखें। डर से सहमी आँखें। जंग में चौकन्नी आँखें। बच्चे की मासूम आँखे। कवि की बेधक आँखें। ईश्वर की ज्योतिर्मय आँखें। चेहरे को पहचानती आँखें। शकुन-अपशकुन में फड़फड़ाती आँखें। अर्जुन की लक्ष्य पर आँखें। शिव की तीसरी आँख। इश्क में जगती आँखें। थक कर सोती आँखें। इन आँखों के कई रूप हैं। शायद इसलिए तो बाबा रहीम ने कहा हे कि "रहिमन मन महराज के, दृग सों नहीं दिवान। जाहि देख रीझे नयन, मन तेहि हाथ बिकान॥" ये आँखें मन का आईना होते है। नज़रों के उपयोग के ज्ञानी उसका असर भी ख़ूब जानते हैं। अगर आँखों का असर दिल की गहराईयों तक जा रहा है, तो लड़की लॉकेट हाथ में लेकर उसे हिलाने लगती है। लॉकेट न हो तो दुपट्टे या साड़ी के पल्ले को अंगुली पर लपेटने लगती है। थोड़ी समस्या उसके साथ होती है, जो स्वेटर बुन रही हैं। पर ध्यान से देखें तो वह भी दो-चार खाने गलत बुन देती है और उन्हें उकेलकर फिर बुनने लगती है। नाचते हुए पर नज़र डाल दें तो उसके स्टेप्स गड़बड़ हो जाते हैं। इस नज़र के जादू का किसी ने सबसे बेहतरीन इस्तेमाल किया तो वो हैं हमारे फ़िल्मों के गीतकार। सच पूछिए तो हिंदी फ़िल्म के गाने, आँखों के जिक्र के बिना अधूरा हैं।


"जीवन से भरी तेरी आँखें, मज़बूर करे जीने के लिये"...सफ़र फ़िल्म के इस गीत मे नायक (राजेश खन्ना) कनवास पर अपनी प्रेमिका (शर्मिला टैगोर) को बुनने की कोशिश करता है। और बरबस यह गाना गुनगुनाने लगता है। फ़िल्म चिराग का गीत "तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है", सचमुच महबूबा के आँखों के आगे सारे भौतिक सुख-संसाधनों को फीका करती दिखती है। आशा जी और किशोर दा की आवाज़ में नौ दो ग्यारह फ़िल्म का गाना, "आँखों में क्या जी, अजब सी हलचल" हो या फिर मधुमती का "जुल्मी संग आँख लड़ी", दोनों नें आँखों के साथ पूरा-पूरा न्याय किया है। गंगा-जमुना की यह गीत "नैन लड़ जयिहें त मनवा मा खटक होइबे करी" आज भी आपको झूमने पर विवश कर देगी।


उमराव जान की मस्तानी अमीरन का मुजरा, "इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं" तो सदाबहार है। रेखा की सुरमाफ़रोशी आँखें और ये गाना दोनों आने वोले वर्षों में भी पसंद किए जाते रहेंगे। "शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आप की कमी सी है", किसी के पास ना होने का ग़म बयां करता है। फ़िल्म सीआईडी में देवानंद गुनगुनाते है, "आँखों ही आँखों में इशारा हो गया, बैठे-बैठे जीने का सहारा हो गया"। लेकिन, क्या आँखों का मोल सिर्फ़ इशारों तक है? जी नहीं , किसी की ख़ूबसूरत आँखों को एक आशिक की निगाहों से देखें तो आप भी शायद ये गीत गाने पर मजबूर हो जाएँ कि "दिल की नज़र से, नज़रों की दिल से...ये बात क्या है, ये राज़ क्या है...कोई हमें बता दे"


आह फ़िल्म का यह गान आपको भी आह भरने को मज़बूर कर देगी, "नज़र बचा कर चले गये वो वरना घायल कर देता", अब देखिए न, दिल में प्यार की शमां तो जल चुकी है, पर ये हैं कि अभी भी ऩजरें चुरा रहे हैं। हसरत जयपुरी के हसरत भी अज़ीब थे, "छलके तेरी आँखों से शराब और ज़ियादा"। प्रियसी के आँखों से शराब छलकाने से भी इन्हें गुरेज़ नहीं है। और तो और ज़नाब नें, "आँखों\-आँखों में बात होने दो" भी लिखा। यानि लब ख़ामोश हों, कोई बात नहीं। आँखें हैं न, उसी से बात कर लेंगे। अब जरा इन पंक्तियों पर गौर फरमाएं, "जाने न नज़र, पहचाने जिगर, ये कौन जो दिल पर छाया, मेरा अंग अंग मुस्काया"। भाई आँखों के लिए अनजाना है तो क्या हुआ, दिल नें तो इकरार कर लिया है।


ऐसा भी नहीं है कि शब्दों के जादुगरों नें आँखों का तानाबाना सिर्फ़ प्रेमी युगलों के लिए बुना है। अब अराधना फ़िल्म के इस गाने को ही ले लीजिए," चंदा है तू, मेरा सूरज है तू....ओ मेरी आँखों का तारा है तू"। या फिर "सुरमई अखियों में, नन्हा मुन्ना सपना दे जाए"। यहाँ आँखों का संबंध मातृत्व भाव से जोड़ा गया है।


अब आपके "वो" रूठ जाएं या फिर हालात ऐसे हो गए हैं कि आप उनसे दूर हो गए है। तो ऐसे मौकों पर भी आँखें साथ नहीं छोड़तीं। "तुम्हारी नज़र क्यों ख़फा हो गई, ख़ता बक्श दो गर ख़ता हो गई"। चलिए माफ़ भी कर दीजिए, वो आपके हैं। "हुई आँख नम और ये दिल मुस्कुराया, तो साथी कोई भूला याद आया", अब क्या करें, आँखें भीग-भीग कर उनकी याद दिला रही है। वो बेवफ़ा हो गईं, कोई बात नहीं। इस गीत को गुनगुनाईये, "किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है, कहाँ हो तुम कि ये दिल बेक़रार आज भी है""आँख है भरी-भरी और तुम मुस्कुराने की बात करते हो"। ओह...शायद आखिरी हिचकी इन आँखों के समंदर में लेने की ख्वाहिश रखते हैं।


समय बदला, दौड़ बदला। लेकिन सिनेमा संग आँख के इश्क में कोई कमी नहीं आई। आज की नई फ़िल्मों के गानों में भी आँखों की निरंतरता बनी हुई है। ओम शांती ओम और सांवरिया एक दूसरे के प्रतिद्धंदी फ़िल्म थी। दोनों एक ही दिन रिलीज़ भी हुए। लेकिन दोनों के गानों में आँखों का ज़िक्र आया। "आँखों में तेरी अजब सी अजब सी अदाएं हैं" और "जब से तेरे नैना, मेरे नैनो से लागे रे...तब से दिवाना हुआ"। इस दौड़ के और भी गाने हैं, "चांद सितारे, ये नज़ारे, फॉर योर आईज़ ओनली"।


तो अपनी आँखों का ध्यान रखिएगा। हकीक़त में भी यह फ़िल्मी गुल खिला सकते हैं। और बशीर बद्र साहब का एक शेर है कि, "कभी यूं भी आ मेरी आँख में के मेरी नजर को खबर न हो, मुझे एक रात नवाज दे मगर उस के बाद सहर न हो"है न.....फॉर योर आईज़ ओनली।

6 comments:

Unknown said...

वाह...ऐसे जनाब आप की आंखें भी बहुत कुछ बयां किए दे रही है. और भी गोने हैं न...नजर के सामने, जिगर के पास. आशिकी का.

अमिताभ मीत said...

अच्छा है.

Unknown said...

पूरा नेत्र पुराण लिख दिया। अँखियों से गोली मारे वाला गाना भी जोड़ सकते हैं।

गति said...

yeh kaali kaali aankhe raha gaya. badawala hit hai, SRK ka hai, kaise chhod diya dost. waise achhaa likha hai par tumhara standard jyada ucha ho chuka hai, utna achha nahi hain.

Anonymous said...

शानदार.....कबो आँख के किरकिरी, कबो आँख के फूल।

Manjit Thakur said...

थोड़ा और जोड़ लो-
नज़रबाज़ ने नज़र सनम को , नज़र मिला के नज़र से देका,
नज़र मिली जो नज़र के ऊपर नज़र का झुकना, नज़र ने देखा
साधुवाद