"Our sweetest songs are those that tell of saddest thought" - P B Shelley
मंगलवार को मेरा वीक ऑफ़ था। कई सालों से कटवारिया सराय में रह रहा हूं। एक पानवाला जो मेरे ही तरफ (बिहार) का है, उससे दोस्ती टाईप से हो गई है। शाम को सिगरेट लेने उसकी दुकान पर पहुंचा। हमेशा की ही तरह वह अताउल्ला ख़ान के गानों में मशगूल था। इस गाने को बचपन से सुनता आया हूं। 21 मिनट का यह गाना, जिसका टाईटल ‘बद्दुआ’ है। इस गाने के बोल मुझे बहुत ही परेशान करने वाले और डिप्रेसिंग लगते हैं –
“तू भी किसी का प्यार न पाए ख़ुदा करे,
तुझको तेरा नसीब रुलाए, ख़ुदा करे,
मेरी तरह तुझे भी जवानी में ग़म मिले,
तू दर-ब-दर की ठोकर खाए, ख़ुदा करे।“
आख़िर गीतकार और गायक को इस तरह के गीतों को लिखने की प्रेरणा कैसे और कहां से मिलती है। या फिर अताउल्ला ख़ान के इस शेर को ही लीजिए –
“इश्क में हम तुझे क्या बताएं,
किस कदर चोट खाए हुए हैं,
मौत ने हमको मारा है और हम,
ज़िंदगी के सताए हुए हैं।“
आज सुबह, आशा भोंसले के इस गीत से नींद खुली थी...”चैन से हमको कभी, आपने जीने न दिया, ज़हर भी चाहा अगर पीने तो पीने न दिया।“
“तू भी किसी का प्यार न पाए ख़ुदा करे,
तुझको तेरा नसीब रुलाए, ख़ुदा करे,
मेरी तरह तुझे भी जवानी में ग़म मिले,
तू दर-ब-दर की ठोकर खाए, ख़ुदा करे।“
आख़िर गीतकार और गायक को इस तरह के गीतों को लिखने की प्रेरणा कैसे और कहां से मिलती है। या फिर अताउल्ला ख़ान के इस शेर को ही लीजिए –
“इश्क में हम तुझे क्या बताएं,
किस कदर चोट खाए हुए हैं,
मौत ने हमको मारा है और हम,
ज़िंदगी के सताए हुए हैं।“
आज सुबह, आशा भोंसले के इस गीत से नींद खुली थी...”चैन से हमको कभी, आपने जीने न दिया, ज़हर भी चाहा अगर पीने तो पीने न दिया।“
शायद इस तरह के गाने, श्रोता को दर्द में भी 'आनंद' का मजा देते हैं। इस बात पर मुझे खुराना अंकल याद आते हैं। उम्र यही कोई पचास के आसपास....मुखर्ज़ी नगर में मेरे सामने वाले घर में रहते थे। पत्नी 2 साल पहले सिधार गई थीं। बच्चे बाहर पढ़ते थे....शाम को दो पेग अंदर गया नहीं कि, मुकेश का दर्दभरे गाने बजा देते। कहते, “बेटा यह गाना ग़मगीन है, इसमे दर्द है, तड़प है।“ आशा भोंसले के इस गाने को सुनने पर एक दर्द का एहसास मुझे भी हुआ...हलका-हलका पेन। पता नहीं ये दर्द कैसा है, जो अच्छा भी लगता है। उदास….म्लान…..विषादपूर्ण… रंजीदा, एक ऐसा एहसास, जिसे व्यक्त करने में ख़ुद को असमर्थ्य पा रहा हूं। यह गीत आपको उदासी की चादर से ढ़क लेती है। और इसलिए मुझे यह जानकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ, कि आशा भोंसले को पहला फ़िल्मफेयर इसी गाने के लिए मिला था।
इस तरह के दर्द भरे गाने सोचने को विवश करते हैं...क्या इन गानों को लिखने, गाने या संगीतबद्ध करने वालों का निजि जीवन सुखी है? कहीं तनाव, क्रिएटीविटी का अनिवार्य हिस्सा तो नहीं? अब अताउल्ला ख़ान को ही लें...मुझे बताया गया था कि, ख़ान साहब की गर्ल-फ्रेंड नें उन्हें धोखा दे और वे उसी की कत्ल के जुर्म में जेल के अंदर हैं। जेल में ही वे इस तरह के गाने लिखने लगे। फिर किसी जेल वार्डन ने उनके गानों को रिकार्ड करने की अनुमती दे दी...आगे यह भी कि, कुछ ही दिनों में अताउल्ला ख़ान को फांसी दे दी जाएगी। अब पता नहीं, इन बातों में कितनी सच्चाई थी, या सिर्फ़ फसाना था। आशा भोंसले की कहानी भी कुछ ऐसी ही है...कुछ साल पहले, चंदन मित्रा ने आउटलुक में “चैन से हमको कभी” का मर्म समझाया था। लिखा था कि, इस गाने को गाते वक्त आशा भोंसले का ओ पी नय्यर से संबंध विच्छेद हो गया था, और रिश्तों के टूटने की वही तड़प इस गाने में है। यानि यहां भी दुख, कुछ खोने का दर्द...तड़प। आशा इतना द्रवित थीं कि वो फ़िल्मफेयर ट्राफी लेने भी नहीं गईं।
अहमद फराज़ की एक शेर याद आती हैं...
“ज़रा सी गर्द-ए-हवस,
दिल पर लाज़मी है फराज़,
वो इश्क ही क्या,
जो दामन को पाक चाहता है।“
इन लाईनों पर फराज़ का कहना था कि, उन्होंने इस शेर को उस लड़की के लिए लिखा था, जिसे वे कभी प्यार करते थे। लेकिन शादी नहीं हो सकी। साहिर लुधियानवी को उनके दर्द भरे गानों के लिए भी जाना जाता है। अमृता के लिए उनकी ये लाईने कितनी सटीक थीं....”तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी गैर को चाहोगी तो मुश्किल होगी।“ या फिर “कभी-कभी” के इस लाईन को ही लें...”मैं जानता हूं कि तू गैर है, मगर यूं ही....कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है।“ ये सारी बातें कहीं न कहीं तनाव और रचनात्मकता में एक संबंध तो निश्चित ही स्थापित करती है।
इस तरह के दर्द भरे गाने सोचने को विवश करते हैं...क्या इन गानों को लिखने, गाने या संगीतबद्ध करने वालों का निजि जीवन सुखी है? कहीं तनाव, क्रिएटीविटी का अनिवार्य हिस्सा तो नहीं? अब अताउल्ला ख़ान को ही लें...मुझे बताया गया था कि, ख़ान साहब की गर्ल-फ्रेंड नें उन्हें धोखा दे और वे उसी की कत्ल के जुर्म में जेल के अंदर हैं। जेल में ही वे इस तरह के गाने लिखने लगे। फिर किसी जेल वार्डन ने उनके गानों को रिकार्ड करने की अनुमती दे दी...आगे यह भी कि, कुछ ही दिनों में अताउल्ला ख़ान को फांसी दे दी जाएगी। अब पता नहीं, इन बातों में कितनी सच्चाई थी, या सिर्फ़ फसाना था। आशा भोंसले की कहानी भी कुछ ऐसी ही है...कुछ साल पहले, चंदन मित्रा ने आउटलुक में “चैन से हमको कभी” का मर्म समझाया था। लिखा था कि, इस गाने को गाते वक्त आशा भोंसले का ओ पी नय्यर से संबंध विच्छेद हो गया था, और रिश्तों के टूटने की वही तड़प इस गाने में है। यानि यहां भी दुख, कुछ खोने का दर्द...तड़प। आशा इतना द्रवित थीं कि वो फ़िल्मफेयर ट्राफी लेने भी नहीं गईं।
अहमद फराज़ की एक शेर याद आती हैं...
“ज़रा सी गर्द-ए-हवस,
दिल पर लाज़मी है फराज़,
वो इश्क ही क्या,
जो दामन को पाक चाहता है।“
इन लाईनों पर फराज़ का कहना था कि, उन्होंने इस शेर को उस लड़की के लिए लिखा था, जिसे वे कभी प्यार करते थे। लेकिन शादी नहीं हो सकी। साहिर लुधियानवी को उनके दर्द भरे गानों के लिए भी जाना जाता है। अमृता के लिए उनकी ये लाईने कितनी सटीक थीं....”तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं, तुम किसी गैर को चाहोगी तो मुश्किल होगी।“ या फिर “कभी-कभी” के इस लाईन को ही लें...”मैं जानता हूं कि तू गैर है, मगर यूं ही....कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है।“ ये सारी बातें कहीं न कहीं तनाव और रचनात्मकता में एक संबंध तो निश्चित ही स्थापित करती है।
7 comments:
मैं इस बात से सहमत हूँ कि दुःख और तनाव क्रियेटिविटी के लिए ज़रूरी हैं. अगर देखें तो दुनिया के सफलतम लेखकों और कलाकारों के जीवन कष्टमय रहे हैं चाहे वो मिल्टन हों, प्रेमचंद या फिर दिनकर. वैसे आपकी लेखन शैली काफी जीवंत है
जरूरी नहीं कि किसी प्रकार के गीत लिखने के लिए तनाव या खुशी के दौर से गुजरा जाए ... यही तो खासियत होती है रचनाकारों की कि वे किसी भी बात की जीवंत कल्पना कर लिया करते हैं।
ji rajiv parasav ki peeda likhne ke loye apka v maa banana zaroori nahi. sentiments zaruri hain.
Raajeev as u know main bhi bloogging karti hu ..par rediff par..main bhi poems pasand karti hu kaafi achi rachnaayein padhne ko mil jaati hai waha par ek chiz maine notice ki hai agar bande mei khud woh feeling na ho jo woh likhna chahta hai toh ..zarur woh feeling thik se nahi aa paati ...
भाई आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसने उम्र के इस पडाव में छोट न खाई हो
सभी इस दौर से गुजरे हैं
इसीलिय तो वो गीत आज भी मकबूल है
मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये
बड़ी चोट खाए जवानी पे रोये .....
भाई आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसने उम्र के इस पडाव में छोट न खाई हो
सभी इस दौर से गुजरे हैं
इसीलिय तो वो गीत आज भी मकबूल है
मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये
बड़ी चोट खाए जवानी पे रोये .....
भाई आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसने उम्र के इस पडाव में छोट न खाई हो
सभी इस दौर से गुजरे हैं
इसीलिय तो वो गीत आज भी मकबूल है
मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये
बड़ी चोट खाए जवानी पे रोये .....
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