बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं पा रहा था। कारण कई थे। सबसे पहले घर से इंटरनेट कनेक्शन गायब था। साथ ही दफ़्तर में काम का प्रेशर भी बढ़ गया था। हाँ, इस बीच पढ़ाई ख़ूब की। दिनकर, नागार्जुन के साहित्य से रमा बिजापूरकर की मार्केटिंग, सबको थोड़ा-बहुत पढ़ा। कुछ दिनों पहले मित्र सुशांत झा "दादा" ने एक कविता भेजी इस कविता को किसने लिखा है, यह उन्हें नहीं मालूम। या फिर उन्होंने ही कलम की जादूगरी दिखाई, यह मुझे नहीं मालूम। यह कविता मुझे बेइंतिहा पसंद आई। लगा लोगों को इससे महरूम रखना इस सुंदर कविता के साथ बेईमानी होगी। कविता का शिर्षक है - एक दिन आएगा।
तम जिन भी झरनों को छूओगी
सबसे मीठा होगा उनका पानी
जिन भी दरवाज़ों पर, तुम्हारे हाथों की थपथपाहट होगी
खुशियाँ वहीं आएंगी सबसे पहले
जिस भी शख़्स से तुम करोगी बातें
वह नफ़रत नहीं कर पाएगा फिर कभी किसी से
जिस भी किसी का कंधा तुम छुओगी
हर किसी का दुख उठा लेने की कुव्वत आ जाएगी उस कंधे में
जिन भी आँखों में तुम झांकोगी
उन आँखों का देखा हर कुछ बसंत का मौसम होगा....
एक दिन आएगा, जब तुम जिस भी रास्ते से गुज़रोगी
वहीं सबसे पहले खिलेंगे फूल
वहीं सबसे पहले खिलेंगे फूल
तम जिन भी झरनों को छूओगी
सबसे मीठा होगा उनका पानी
जिन भी दरवाज़ों पर, तुम्हारे हाथों की थपथपाहट होगी
खुशियाँ वहीं आएंगी सबसे पहले
जिस भी शख़्स से तुम करोगी बातें
वह नफ़रत नहीं कर पाएगा फिर कभी किसी से
जिस भी किसी का कंधा तुम छुओगी
हर किसी का दुख उठा लेने की कुव्वत आ जाएगी उस कंधे में
जिन भी आँखों में तुम झांकोगी
उन आँखों का देखा हर कुछ बसंत का मौसम होगा....
4 comments:
दादा क्या चक्कर है ? वसंत क्या आया, आपका तो अंदाज वसंती हो गया। वैसे कविता सच में बहुत अच्छी है, आपने तो प्रेम किवताएं लिखने वाले कविओं को भी मात दे दी। अब तो इंतजार है कि जल्दी ही आपकी जिंदगी में ये वाला 'एक दिन' आए।
क्या प्यार सचमुच इतना कुछ करवा सकता है। ऐसे वेलेंटाईन डे का काउंटडाउन शुरू हो गया है।
बेहतरीन लिखा है। प्रेम रस में सराबोर। लेकिन दोस्त कहते हैं न - 'ये इश्क नहीं आसां' और आजकल ऐसी लड़कियाँ मिलती कहाँ हैं। सच तो यह भी है प्रेम पहले की तरह शाश्वत भी नहीं रह गया है।
बढिया लगा इसलिये लिख रहा हूं। भावनाओं को शब्दों में गज़ब पिरोया है।
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