नीयति अपने कॉलेज की ख़ूबसूरत लड़कियों में से थी। लड़के उसपर अपनी जान देते थे। कई तो कॉलेज के बाद भी उसके पीछे-पीछे बस स्टॉप तक आते। कुछ ने उसे प्रपोज़ भी किया था, लेकिन नीयति नें कभी इन बातों को तबज्जो नहीं दिया। सिर्फ़ मुस्कुरा देती थी। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल नीयति ने अपने जीवन के लक्ष्यों को शुरू से ही स्पष्ट कर रखा था। कॉलेज में हमेशा अव्वल रहती। पिताजी की छोटी-मोटी किराने की दुकान थी, जिससे घर का खर्चा चलना लगभग मुश्किल ही रहता था। पिताजी की मदद के लिए माँ घर में ही सिलाई-कढ़ाई का काम करती जिससे कुछ राहत मिल जाती थी। पिताजी सुबह-सुबह ही दुकान के लिए निकल जाते और रात को काफ़ी देर से लौटते। सोने से पहले नीयति की माँ उसके पिताजी के पैरों को दबाती थी। यह सिलसिला कब से चला आ रहा था, नीयति को भी याद नहीं था। उस वक्त पिताजी माँ से पूरे मुहल्ले के बारे में दरयाफ्त करते, लेकिन कभी भी नीयति और उसके भाई के पढ़ाई-लिखाई के बारे में कुछ भी नहीं पूछा। उनकी बच्चों के शिक्षा में तनिक भी रूचि नहीं थी।
नीयति समझ गई थी। हालात और गरीबी ने उसके माता-पिता की सारी भावनाओं का ख़ून कर दिया है। उसने मन ही मन तय कर लिया कि एक दिन वो बहुत धनी बनेगी। ख़ूब पैसा होगा उसके पास। समय बीतता गया और कॉलेज की पढ़ाई खत्म हो गई। नीयति के मां-बाप उसके शादी के लिए लड़के की तालाश में जुट गए। कई अच्छे लड़के मिले भी, लेकिन नीयति नें एक-एक कर सबको रिजेक्ट कर दिया। नीयति का यह व्यवहार, माँ-बाप के समझ से परे था। माँ ताने भी मारती थी, "तुम क्या सोचती हो, कोई राजकुमार तुमसे ब्याहने आएगा?"। नीयति के मां को शायद इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि एक दिन सचमुच राजकुमार नीयति के लिए आएगा। वो आया भी। उमेश....कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एमबीए। घर से काफी समृद्ध। उमेश के पिताजी शहर के जाने-माने रईशों में से थे। घर पर दर्जनों गाड़ियां, सैकड़ों नौकर। कुल मिलाकर उमेश के पास सबकुछ था। कमी थी तो सिर्फ़ एक लड़की की। नीयति ने वह कमी भी पूरी कर दी। बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हो गई। शादी के बाद उमेश और नीयति घूमने के लिए स्वीट्जरलैंड चले गए। नीयति कभी अपने शहर से बाहर नहीं गई थी। और स्वीट्जरलैंड के बारे में तो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। स्वीट्जरलैंड प्रवास के दौड़ान हर शाम एक अज़ीब घटना होती थी। शाम होते ही उमेश के पेट में दर्द होने लगता था और वो सो जाता था। नीयति के लाख कहने पर भी उमेश डाक्टर के पास नहीं गया।
महीने भर बाद दोनों फिर अपने शहर लौट आए। उमेश अपने काम में व्यस्त हो गया। साथ ही वो नीयति से भी दूर-दूर रहने लगा। नीयति को भी लगता था कि उमेश उससे कुछ कहना चाह रहा है लेकिन किसी कारणवश कह नहीं पा रहा है। फिर एक दिन जब दोनों अकेले थे नीयति ने उमेश से पूछ ही दिया। "क्यों मुझसे नज़रें चुराते रहते हो?"। उमेश अपना सिर नीयति के गोद में रख कर रोने लगा। "मुझे माफ़ कर दो नीयति, मैंने तुम्हारे साथ धोखा किया है"। "हमारे बीच कभी शारीरिक संबंध नहीं हो सकता"। नीयति सन्न रह गई थी। उसे लगा कि उमेश ने उसके साथ बहुत बड़ा मज़ाक किया है। नीयति अंदर ही अंदर रोने लगी, लेकिन अपनी भावनाओं को उसने उमेश पर प्रकट नहीं होने दिया।
ख़ैर दिन बीतता गया। एक दिन उमेश ने नीयति को अपने ऑफ़िस के एक युवा मैनेजर राजेश से बातचीत करते देखा। नीयति बहुत ख़ुश दिख रही थी। उमेश के मन में कुछ विचार आया। अब वह राजेश को अक्सर दफ्तर के काम के बहाने घर पर बुलाने लगा। कभी-कभी तो नीयति और राजेश को अकेला छोड़ बाहर चला जाता। एक दिन उमेश ने राजेश को रात के खाने पर अपने घर बुलाया। खाने से पहले दोनों नें शराब भी पी। नीयति भी उनके साथ थी। अचानक उमेश नें राजेश से कहा, "मुझ पर एक एहसान करोगे?"। उमेश क्या कहने जा रहा था, यह नीयति समझ चुकी थी। उसने उमेश को रोकना चाहा। लेकिन उमेश बोलता रहा। "प्रकृति कभी कभी कुछ लोगों के साथ न्याय नहीं करती है........."। "मुझे एक बच्चा चाहिए, मैं नीयति को तुम्हें सौंप रहा हूं"। इतना कहकर उमेश दोनों को छोड़ घर से निकल गया।
अगली सुबह उमेश लौट आया। उमेश को देख नीयति आशंकित हो उठी। अपराधबोध से ग्रसित। उमेश नीयति के डर को भांफ गया था। उसने नीयति को अपने नज़दीक प्यार से खींच कर बोला, "हमने कोई पाप नहीं किया है, हम सिर्फ़ ईश्वर की भूल को सुधार रहे हैं"। कुछ दिनों के बाद नीयति ने बेटे को जन्म दिया। उमेश ख़ुश था। उसने नीयति से उस रात के बारे में कभी कुछ नहीं पूछा। बाद में उमेश एक अच्छा पिता भी साबित हुआ। वो लड़का अब बड़ा हो गया है। दिल्ली के नामी स्कूल में पढ़ता है। उसके लिए उमेश ही उसका पिता है। सच सिर्फ़ नीयति ही जानती है।
8 comments:
नियति की राय और इच्छा का कोई अर्थ नहीं?
बड़ी असहज कर देने वाली कहानी है.
कभी-कभी अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हमें बड़ी कीमत चुकानी होती है। नीयति के साथ भी ऐसा ही हुआ। महान था उमेश जिसने अपनी गलती को स्वीकारा ही नहीं बल्कि अपने भूल को सुधारने की भी पूरी कोशिश की। अच्छी कहानी है।
Hats off to both Umesh and Niyati. I know its difficult for an Indian lady to think about another man after marriage but thats also true that every human being has some desires. Both had gutsy to face the situation. Umesh did a good job, he accepted his mistake and did justice with his wife . He is great too as he is impartial to the child and giving his best.
Hats off to both Umesh and Niyati. I know its difficult for an Indian lady to think about another man after marriage but thats also true that every human being has some desires. Both had gutsy to face the situation. Umesh did a good job, he accepted his mistake and did justice with his wife . He is great too as he is impartial to the child and giving his best.
किस युग में जी रहे हैं आप। भाई साहब दुनिया बहुत आगे निकल आई है। नीयति की कहानी आज आम है। शहरों में बड़ी संख्या में नाजायज बच्चे घूम रहे हैं। सब महत्वकांक्षा की उपज है। लंबी गाड़ी, डुपलेक्स अपार्टमेंट में घर.....सब की कीमत है। नीयति उसे ही चुका रही है।
नियति को बच्चा मिल गया लेकिन क्या नियति ने सिर्फ बच्चे के लिए शादी की था...दोष यहां नियति का ही नहीं...जो एक तथाकथित राजकुमार की वजह से जिंदगी के बियावान में भटक...रही है...उस राजकुमार के लिए क्या कहा जाए जिसने..नियति की जिंदगी से खिलवाड़ किया..एक बात और कि माना कि नियति ने अहंकारवश कभी.. सैकड़ो लड़को को ठुकराया था...लेकिन ऐसा तो होता है..लेकिन..अब उसकी जिंदगी क्या ऐसे ही कटती रहेगी...उसकी शारीरिक आंकाक्षाओं का कोई मतलब है...? क्या उसे अब ऐसे ही अपनी शेष जिंदगी अलग-अलग मर्दो के पहलू में गुजारनी होगी...?या उसका पति उसे अभी भी ससम्मान अलग कर उसकी शादी किसी भले आदमी से करवाने को राजी होगा..?.और लाख टके का सवाल यह कि क्या समाज..नियति की नई जिंदगी को खुले दिल से स्वीकार करेगा...? जबतक इस सवाल का कोई मुक्मल जवाब नहीं मिलता..हजारों.नियति...अपनी नियति पर रोती रहेंगी...
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