दफ़्तर के रास्ते में एक नई चीज़ नज़र आई। सरकारी ज़मीन पर बरगद का एक पुराना विशाल वृक्ष है। दो-तीन हफ्तों से वहाँ सांई की एक छोटी सी मूर्ति नज़र आने लगी है। एक आदमी वहाँ बैठ कर अध्यात्म पर प्रवचन देता है। धीरे-धीरे लोग भी जुटने लगे हैं। यह भी जानता हूं कि आज से चार-पांच साल बाद वहाँ एक मंदिर होगा। आज जो व्यक्ति प्रवचन दे रहे है...वह बड़े सिद्ध बाबा में कनवर्ट हो जाएंगे। भक्तों की चमचमाती कारों का कतार होगा। बाबा का दर्शन "सौभाग्य" हो जाएगा।
दरअसल भारत उपासकों का देश है। हज़ारों-लाखों बाबा और उनके करोड़ों भक्त। देश में लगभग हरेक परिवार के अपने-अपने घोषित-अघोषित बाबा हैं। सबका दावा एक......कि ये बाबा का आठवां, नौवां या दसवां जन्म है। और अगले अवतार में बाबा फलां रूप में जन्म लेंगे। गौर से देखें तो इन बाबाओं के दो वेराईटीज़ हैं। देनेवाले और लेनेवाले बाबा। देनेवालों पर लेनेवाले भारी हैं। इन बाबाओं का फै़न फोलोईंग अमिताभ, शाहरुख से कतई कम नहीं है। गुरुदेव चमत्कार करते हैं। हज़ारों को खाना खिला सकते हैं। बंजर को हरियाली और हरियाली को रेत कर सकते हैं। आंख से सूई निकाल सकते हैं, पहाड़ गायब कर सकते हैं, मिट्टी को सोना और सोने को ख़ाक कर सकते हैं, सरकार बना और गिरा सकते हैं। चमत्कारों की फहरिस्त लंबी है.....बाबा कुछ भी कर सकते हैं। ग़रीबों के इस देश में बाबा अमीरी की गारंटी है। लगभग सभी बाबा विंध्याचल, कलकत्ता के कालीघाट या कामाख्या से ही तंत्र-मंत्र सीख कर आते हैं। एक बात और जो मुझे समझ में नहीं आता है, वह यह कि बाबाओं के नाम के आगे श्री, श्री श्री, 108, 1008 जैसे टेकनिकल डिग्री क्यों लगी होती है। अंदाज़ा लगा सकता हूं, कि यह बाबा के पावर का सूचक होगा। 108 कम पावरफुल, 1008 सूपर पावरफुल। 108 राज्य सरकार को गिरा सकता हैं, 1008 के एरिया ऑफ इनफ्लुएंश दिल्ली में सरकार को डगमगा सकती है। बाबा टेलिवीजन मीडिया के जान हैं। इनके बिना टीवी का प्राईम टाईम अधुरा है। बाबा के ख़िलाफ आवाज़ उठाना जु़र्म है। इसकी सज़ा मौत तक हो सकती है। कुछ दिन पहले ही एक तथाकथित ओजस्वी बाबा के गुर्गों ने "आज तक" चैनल के अहमदाबाद संवाददाता की धुनाई कर दी। चैनल गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाता रहा, लेकिन बाबा का बाल भी बांका नहीं हुआ। बाबा उल्टे पब्लिसिटी लूट गए। इन "बापू" के बारे में बता दूं कि ये होली में दमकल से भक्तों पर रंगों की बौछाड़ कर देते हैं। भोले-भाले भक्त भी बाबा के रंगों का स्पर्श पा कर धन्य हो जाते हैं।
दरअसल भारत उपासकों का देश है। हज़ारों-लाखों बाबा और उनके करोड़ों भक्त। देश में लगभग हरेक परिवार के अपने-अपने घोषित-अघोषित बाबा हैं। सबका दावा एक......कि ये बाबा का आठवां, नौवां या दसवां जन्म है। और अगले अवतार में बाबा फलां रूप में जन्म लेंगे। गौर से देखें तो इन बाबाओं के दो वेराईटीज़ हैं। देनेवाले और लेनेवाले बाबा। देनेवालों पर लेनेवाले भारी हैं। इन बाबाओं का फै़न फोलोईंग अमिताभ, शाहरुख से कतई कम नहीं है। गुरुदेव चमत्कार करते हैं। हज़ारों को खाना खिला सकते हैं। बंजर को हरियाली और हरियाली को रेत कर सकते हैं। आंख से सूई निकाल सकते हैं, पहाड़ गायब कर सकते हैं, मिट्टी को सोना और सोने को ख़ाक कर सकते हैं, सरकार बना और गिरा सकते हैं। चमत्कारों की फहरिस्त लंबी है.....बाबा कुछ भी कर सकते हैं। ग़रीबों के इस देश में बाबा अमीरी की गारंटी है। लगभग सभी बाबा विंध्याचल, कलकत्ता के कालीघाट या कामाख्या से ही तंत्र-मंत्र सीख कर आते हैं। एक बात और जो मुझे समझ में नहीं आता है, वह यह कि बाबाओं के नाम के आगे श्री, श्री श्री, 108, 1008 जैसे टेकनिकल डिग्री क्यों लगी होती है। अंदाज़ा लगा सकता हूं, कि यह बाबा के पावर का सूचक होगा। 108 कम पावरफुल, 1008 सूपर पावरफुल। 108 राज्य सरकार को गिरा सकता हैं, 1008 के एरिया ऑफ इनफ्लुएंश दिल्ली में सरकार को डगमगा सकती है। बाबा टेलिवीजन मीडिया के जान हैं। इनके बिना टीवी का प्राईम टाईम अधुरा है। बाबा के ख़िलाफ आवाज़ उठाना जु़र्म है। इसकी सज़ा मौत तक हो सकती है। कुछ दिन पहले ही एक तथाकथित ओजस्वी बाबा के गुर्गों ने "आज तक" चैनल के अहमदाबाद संवाददाता की धुनाई कर दी। चैनल गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाता रहा, लेकिन बाबा का बाल भी बांका नहीं हुआ। बाबा उल्टे पब्लिसिटी लूट गए। इन "बापू" के बारे में बता दूं कि ये होली में दमकल से भक्तों पर रंगों की बौछाड़ कर देते हैं। भोले-भाले भक्त भी बाबा के रंगों का स्पर्श पा कर धन्य हो जाते हैं।
दिल्ली के कालका जी मंदिर के सामने टाईगर बाबा का आश्रम है। इनका विश्वास मेडिकल सायंस में नहीं है। बाबा के पास एड्स जैसी घातक बिमारी से लेकर जुकाम तक का इलाज़ है। बाबा गांजा पीते हैं। दो सूट के बाद प्रसाद भक्तों को सौप दी जाती है। फिर भक्त उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। टाईगर नाम क्यों है॥??...इसका जवाब भक्तों के अनुसार यह कि बाबा में टाईगर जैसी इनर्जी है। जनसत्ता को छोड़कर लगभग सभी हिंदी अख़बारों में बंगाली बाबा आते हैं। इनके बुके में सौतन से छुटकारा पाने का नुस्खा, संतान की गारंटी, गुप्त रोगों का इलाज़.....बिमारी बताईये, सामाजिक और शारीरिक दोनों ईलाज़ हाज़िर है। बनारस में ख़ड़ेसरी बाबा रहते हैं। दो साल पहले मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। लोगों ने बताया कि बाबा नें ताउम्र खड़े रहने की शपथ ली है। बाबा रिक्शा पर भी खड़े ही रहते हैं, बैठते नहीं। हलांकि इनका कोई चमत्कारी दावा नहीं है। कानपुर रेलवे स्टेशन पर गणेश बाबा रहते हैं। मानना है कि कलयुग में वो भगवान शिव के पुत्र हैं। भक्तों के चढावे से बाबा हाथी के तरह थुलथुल हो गए हैं। किसी भी दिन फट सकते हैं।
भारतवर्ष सदियों से पूरी दुनिया के लिए अध्यात्म का स्रोत रहा है.....महर्षि महेश योगी और रजनीश सरीखे योगी पुरुषों ने पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया था। आज हर गली, नुक्कड़ के अपने बाबा हैं। सवाल यह है कि ये बाबा धर्म या आध्यात्म को जिस तरह से तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं, वह कहाँ तक ज़ायज है???? क्या हमारी आने वाली पीढ़ियां अध्यात्म के मौलिक रूप को ख़ोजती फिरेंगी???? एक सवाल यह भी हो सकता है कि मौजू़दा समय में देश के सबसे शक्तिशाली बाबा कौंन हैं??? आशाराम जी, मोरारी बापू, सत्य साईं या फिर कोई और।
3 comments:
कौन शक्तिशाली...जो जैसी मार्केटिंग कर जाये और जो जिसके चुंगल में फंस जाये.
ye to dekhne wali baat hogi ki hamari aane wali pidiyan "adhyatma"
ke "maulik" rup ko khojne me kahan tak safal ho payenge. nirvivad rup se ye "adhyatma" ke liye "sankraman kal" hai jisme hum adhyatmik shanti ki talash me nayee sambhavnaye khojenge.
ek sawal ye bhi ho sakta hai ki kya "adhyatma" ke mamle me bharat vishwa patal par apna ekadhikar kho dega.
badhiya visleshan....
aapne sattelite baba, dhelwa baba etc ko to chor hi diya, bt your article is good
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