बचपन में कोई पूछता कि बेटा बड़े होकर क्या बनोगे??? आईएएस....घर में यही सिखाया गया था। लेकिन आईएएस बनने की तमन्ना उतनी कभी नहीं रही जितना रेल ड्राईवर बनने की थी। ट्रेन का ड्राईवर बनते-बनते पत्रकार बन गया...। गाड़ी की सीटी आज भी सम्मोहित करती है। ट्रेन से पहला सफ़र याद नहीं है। नानी गाँव भागलपूर है, पटना से वहाँ जाने के लिए रेल की सवारी करनी होती थी। अगर खिड़की के पास वाली सीट मिल जाए तो कहना ही क्या। रात को गाड़ी की रफ़्तार काफ़ी तेज़ होती है। लंबी दूरी की गाड़ियों का स्टापेज भी कम होता है। ऐसे में सकेंड क्लास स्लिपर से बाहर का नज़ारा ज़न्नत का एहसास कराता है। छोटे-बड़े कस्बों-शहरो को झटके से पार करती ट्रेन। घरों की खिड़कियों से झांकती रोशनी। स्टेशन की भुकभुकाती ट्यूब लाईट। पटरी के समानांतर दौड़ती सड़के, और उन सड़कों पर अंधेरे को चीरती हुई बसों-ट्रेकों की रोशनी....। रेलगाड़ी रेस में सबको पीछे छोड़ जाती है। सुनसान माहौल में तन्द्रा तोड़ती ट्रेन की सीटी, नियॉन की दुधिया रोशनी में नहाए हुए कारख़ाने, क्रासिंग पर रात में खड़ी गाड़ियां। ऐसे में आप ट्रेन की स्पीड का अंदाज़ा भी लगाते रहते हैं। 120-130 के आसपास चल रही होगी...शायद। आप एक्स्प्रेस में हैं तो छोटे स्टेशनों पर पास देने के लिए लोकल गाड़ियों को रोक दिया जाता है। आपकी गाड़ी बड़ी शान से लोकल का मुंह चिढ़ाते हुए आगे निकल जाती है। लोकल के पैसेंजर हसरत भरी निगाहों से आपको वीआईपी होने का एहसास कराते हैं। उसी हसरत भरी निग़ाह से आप राजधानी या शताब्दी को देखते हैं, जब आपके गाडी़ को रोककर उसे आगे निकाल दिया जाता है। इन दोनों ट्रेनों के सवारी बाहर से नहीं दिखते हैं। हो सकता है वातानुकूल बोगियों के अंदर से वे भी हमें देखकर सोचते हों.....पूअर इंडियंस....।
अब गाड़ियों में झाल-मुड़ी, खीरा, भुंजा-फरही श़र्बत नहीं बिकता है। लालू की रेल कॉरपोरेट हो गई है। पेप्सी, लेज़, अंकल चिप्स का ज़माना आ गया है। एसी कोच में लोग एक-दूसरे से बात नहीं करते। बाहर से आवाज़ भी कम आती है। रेल में सफ़र का मज़ा सकेंड क्लास में ही है। मन नहीं लग रहा...कोई बात नहीं। बात करने वाले लोग मिल जाएंगे। ताश भी जमा सकते हैं। बाहर झांकने की आज़ादी होती है। कई साल पहले मुंबई जाते वक्त ट्रेन में एक व्यक्ति से मिला था। इतना अनुभव की रात के घुप्प अंधेरे में गाड़ी की सीटी सुनकर उसने बता दिया कि फलां गाड़ी है। दो घंटे लेट है, इसको अभी भुसावल क्रॉस कर जाना चाहिए था। कौन ट्रेन किससे मेल करेगी, कौन से स्टेशन पर कितनी देर रुकेगी....भविष्य भी...कि यह गाड़ी वीटी टाईम पर नहीं पहुंच पाई तो चालिस मिनट लेट हो जाएगी। पहले राजधानी को पास दिया जाएगा। एक नई बात यह भी पता चला कि - "पटना-नई दिल्ली-पटना, अमृतसर-मुंबई-अमृतसर" - का मतलब क्या होता है। पटना या अमृतसर दो बार क्यों???? इसका मतलब होता है कि किसी गाड़ी का घर कहाँ है। जिस स्टेशन का नाम दो बार आए वो गाड़ी का आशियाना होता है। जैसे, पटना से नई दिल्ली के बीच चलने वाली संपुर्ण क्रांती एक्सप्रेस के उपर लिखा होता है- "पटना-नई दिल्ली-पटना" - मतलब कि यह गाड़ी ईस्ट-सेंट्रल रेलवे जोन की है। गाड़ी के रखरखाव का ज़िम्मा उसी जोन के रेलवे इंजीनियरों की है। ऐसे कई जानकार आपको सकेंड क्लास बोगियों में ही मिलेंगे।
अब गाड़ियों में झाल-मुड़ी, खीरा, भुंजा-फरही श़र्बत नहीं बिकता है। लालू की रेल कॉरपोरेट हो गई है। पेप्सी, लेज़, अंकल चिप्स का ज़माना आ गया है। एसी कोच में लोग एक-दूसरे से बात नहीं करते। बाहर से आवाज़ भी कम आती है। रेल में सफ़र का मज़ा सकेंड क्लास में ही है। मन नहीं लग रहा...कोई बात नहीं। बात करने वाले लोग मिल जाएंगे। ताश भी जमा सकते हैं। बाहर झांकने की आज़ादी होती है। कई साल पहले मुंबई जाते वक्त ट्रेन में एक व्यक्ति से मिला था। इतना अनुभव की रात के घुप्प अंधेरे में गाड़ी की सीटी सुनकर उसने बता दिया कि फलां गाड़ी है। दो घंटे लेट है, इसको अभी भुसावल क्रॉस कर जाना चाहिए था। कौन ट्रेन किससे मेल करेगी, कौन से स्टेशन पर कितनी देर रुकेगी....भविष्य भी...कि यह गाड़ी वीटी टाईम पर नहीं पहुंच पाई तो चालिस मिनट लेट हो जाएगी। पहले राजधानी को पास दिया जाएगा। एक नई बात यह भी पता चला कि - "पटना-नई दिल्ली-पटना, अमृतसर-मुंबई-अमृतसर" - का मतलब क्या होता है। पटना या अमृतसर दो बार क्यों???? इसका मतलब होता है कि किसी गाड़ी का घर कहाँ है। जिस स्टेशन का नाम दो बार आए वो गाड़ी का आशियाना होता है। जैसे, पटना से नई दिल्ली के बीच चलने वाली संपुर्ण क्रांती एक्सप्रेस के उपर लिखा होता है- "पटना-नई दिल्ली-पटना" - मतलब कि यह गाड़ी ईस्ट-सेंट्रल रेलवे जोन की है। गाड़ी के रखरखाव का ज़िम्मा उसी जोन के रेलवे इंजीनियरों की है। ऐसे कई जानकार आपको सकेंड क्लास बोगियों में ही मिलेंगे।
रेल देश को जोड़ता है। पटरी या गाड़ी को देखकर आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते की यह कहाँ की है, कहाँ जा रही है। पूरे देश में एक जैसी पटरी है। एक जैसी बोगियां हैं। किसी को रिसीव या विदा करने स्टेशन जाता हूं तो कोशिश यही रहती है कि थोड़ा पहले पहुंच जाउं। स्टेशन पर मन लगता है। व्हीलर की क़िताबों के स्टाल, रंग-बिरंगे लोग...। शाम में नई दिल्ली स्टेशन से बिहार के लिए लगभग दस-बारह गाड़ियां खुलती हैं। उस वक्त पटना और नई दिल्ली स्टेशन में फ़र्क करना मुश्किल होता है। सुबह बिहार से कई गाड़ियां आती हैं। लोगों को देखता रहता हूं। नौकरी और बेहतर भविष्य को तलाशते कई नौजवान अपने सपनों के साथ नई दिल्ली स्टेशन पर उतरते हैं। इन्हीं की तरह इस अज़नबी शहर में कभी मैं भी तो आया था। लोग चौकते हैं....मैं सोचता हूं....क्यों चौंकते हो...डरो नहीं। यह शहर तुम्हारा है। कनॉट प्लेस की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग तुम्हारे पसीने से ही ताबीर हुई है। अगर तुम नहीं तो...कैसी दिल्ली...किसकी दिल्ली। नई दिल्ली स्टेशन पूरे देश का हाल बयां कर देती है। कुल बारह प्लेटफार्म हैं। 1-5 नंबर पर प्राय: पश्चिम और उत्तर से आने-जाने वाली गाड़ियों के लिए है। ये वो राज्य हैं जो आर्थिक रुप से संपन्न हैं। मसलन पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र...। मोटे-तगड़े, गोरे-चिट्टे लोगों का प्लेटफार्म। एक वेंडर से बात करने पर पता चला कि इन पर अख़बारों से ज्यादा लाईफस्टाईल मैग्जींन बिकते हैं। पेप्सी, कोक से ज्यादा रियल फ्रूट जूस की डिमांड है। 6-9 नंबर पर दक्षिण और मध्य भारत की ट्रेनें आती-जाती हैं। यह संक्रमण जोन है। धनी राज्य भी हैं और कुछ कम समृद्ध भी। पुराने संस्कारों को ढ़ोने वाले लोग जिनका मन डिस्को जाने का तो होता है लेकिन जा नहीं पाते हैं। यहाँ पेप्सी, कोक की ख़ूब मांग है। बचा 10 से 12 नंबर...तो यह पूरब से आने वाली गाड़ियों का प्लेटफार्म है। ये गरीब और पिछड़े राज्य हैं.....बिहार, यूपी, उड़ीसा, बंगाल। अख़बार और पॉलिटिकल मैग्जीन खू़ब बिकते हैं। पेप्सी का भी सेल है। पानी कम ही लोग ख़रीदते हैं। घर से खाली पेप्सी बोतल ले आते हैं और सरकारी शीतल पेय का भरपूर लाभ उठाते हैं। इन्हें मिनिरल की कोई ज़रूरत नहीं है। 12 नंबर तो एक्सक्लूसिव बिहारी ट्रेनों का अड्डा है। मुझे लगता है पटना से आनेवाली गाड़ियों के इंजन अपने आप बारह की तरफ मुड़ जाते होंगे। ऑटो वालों को भी पता है। सिर्फ़ बता दीजिए की पटना जाना है...बिना कुछ पूछे 12 नंबर (अजमेरी गेट) साईड पहुंचा देंगे। दिल्ली में हजरत निज़ामुद्दीन स्टेशन है। दिल्ली से दक्षिण राज्यों की तरफ जानेवाली गाड़ियां प्राय: यहीं से चलती हैं। यहाँ गोरी चमरी वोले कम ही मिलेंगे। सुबह कर्णाटक एक्सप्रेस खुलती है। पूरा स्टेशन बेला की खुशबु से महक उठता है। दक्षिण की महिलाएं अपने जूड़े को बेला की वेणी से सज़ाती हैं। लगेगा दिल्ली नहीं चेन्नई स्टेशन पर खड़े हैं।
खै़र बात ट्रेन की हो रही थी। स्टेशन पर गाड़ी के रुकते ही इंजन के पास पहुंच जाता हूं। आख़िर यह कैसी इंजियनरिंग है!!! सैकड़ों टन के 20-22 बोगियों को यह इंजन सौ-दो सौ के रफ़्तार से कैसे उड़ा ले आती है? इंजनों के नाम होते हैं। अंजनि, हनुमान, पवनसुत, बजरंगी....यह नाम छोटे अक्षरों में इंजन के आगे लिखा होता है। बड़े अक्षरों में इंजन के घर का पता (लोको शेड) रहता है। कानपूर, अंडल, जमालपूर, गोंडा, इटारसी....और भी कई हैं।
गाड़ियों के नाम भी मुझे खासे आकर्षित करते रहे हैं। इस सेक्युलर देश में इनके नाम सेक्युलर नहीं होते। कुछ ट्रेनों के नाम उनके रूट पर रखा गया है - विक्रमशिला एक्सप्रेस (भागलपूर से नई-दिल्ली- विक्रमशिला, भागलपूर के पास है), चौड़ी-चौड़ा एक्सप्रेस (कानपूर से गोरखपूर - चौड़ी-चौड़ा गोरखपूर के पास है), अवन्तिका एक्सप्रेस (मुंबई से इंदौर-- दरअसल इंदौर के पास उज्जैनी नगरी है जिसे अवन्तिका के नाम से भी जानते है)। कवियों, विद्वानों के नाम पर - अग्निवीणा एक्सप्रेस (हावड़ा से आसनसोल - काजी नज़रुल इस्लाम बंगाली थे, अग्निवीणा उनकी कृति है), अमृता एक्सप्रेस (पालघाट से त्रिवेंद्रम- माँ अमृतानंदमयी के नाम से), गुरुदेव एक्सप्रेस (हावड़ा से नागरकोली - रविनद्रनाथ टैगोर के नाम पर), गणदेवता एक्सप्रेस (रामपूर हाट से हावड़ा-ताराशंकर बंधोपाध्याय की पुस्तक गणदेवता)। भौगोलिक लोकेशन के हिसाब से - बराक वैली एक्सप्रेस (लुमडिंग से सिलचर - आसाम की नदी घाटी)। नदियों के नाम पर - गंगा-दामोदर एक्सप्रेस (पटना से धनबाद - पटना में गंगा हैं और दोमोदर नदी के किनारे धनबाद), गंगा कावेरी एक्सप्रेस - (चेन्नई से वाराणसी), हिमसागर एक्सप्रेस - जम्मू तवी से कन्याकुमारी (हिम के आलय से सागर तक)। एक ट्रेन है सचखण्ड एक्सप्रेस, यह अमृतसर से नांदेड़ जाती है। नांदेड़ स्थित तख्त सचखण्ड साहिब सिखों का पवित्र तिर्थ है। अमृतसर से नांदेड़ के बीच यह गाड़ी जहाँ भी रुकती है वहां के लोकल सिख श्रद्धा से आपको खिलाने-पिलाने पहुंच जाते हैं। अच्छा लगता है।
अपने मुल्क को बहुत थोड़ा जान-समझ पाया हूं। और एक्सप्लोर करने की ख़्वाहिश है। जब भी होगा वो सफ़र इंडियन रेलवे के सकेंड क्लास में ही होगा। जिसको चलना है वो चल सकता है....मेरे साथ.....।
14 comments:
अच्छा और जानकारी पूर्ण लेख.
आपकी शैली भी अति रोचक है.
साधुवाद.
बात बात में गजब जानकारियाँ दे डाली. पूर्ण प्रवाह बना रहा.बहुत आभार.
आज तक नहीं पता नहीं था कि गाड़ियों के नाम के कुछ आधार भी होते हैं....काफी जानकारी दी आपने...आगे और आशा है। शुक्रिया।
Very Informative....Keep it up dude..
अच्छा लगा..नई दिल्ली स्टेशन का डिमोग्राफ़िक प्रोफाईलिंग भी कर दी। अगली बार जाउंगा तो देखुंगा....वहाँ से देश कैसा लगता है।
आप के साथ सफर पर चलने को मैं भी तैयार हूं। देखना चाहुंगा कि भारतवर्ष के 25 राज्यों मे करोड़ों लोग कैसे रहते हैं। इस देश की नई पीढ़ी क्या सोचती है। पहले लगा कि लंबा लेख है, फिर पढ़ता चला गया अंत तक। और भी जानने की हसरत थी। ऐसे विषयों पर कम लोग लिखते हैं।
@
अशोक सिंह जी भारत में २५ नही २८ राज्य हैं....
राजीव जी आपका लेख बड़ा ही रोचक तरीके से लिखा गया है लेकिन मुझे लगता है घट बढ़ रह गया है.... जरा गौर फरमाए...
प्लेटफोर्म नम्बर १२ से हर वो गाड़ी चलती है जिसको टाईम बीट करना होता है... मसलन राजधानी, शताब्दी और भी कई अच्छी ट्रेन....
भुन्झा फरही आज भी ट्रेनों में बदस्तूर मिलती है, केवल आपको हिन्दी पट्टी क्षेत्रो में दिन का सफर करना होगा
बाकिया आप ने काफी अच्छा लिखा
बेहतरीन पोस्ट...आज तो मैं कमेंट करने से रोक नहीं पाया अपने आप को..आपने अब तक जितना भी लिखा है..शायद उसमें सबसे बेहतरीन है-कंटेन्ट के दृष्टिकोण से भी, और प्रस्तुतिकरण के हिसाब से भी। हां थोड़ा लंबा हो गया, जिससे कई लोग पढ़ने में बिदक गए होंगे। धन्यवाद।
कब चलना है भाया ? टिकट बुक कराओ मै आया :)मजा आ गया जी
बहुत बहुत ही अच्छा लगा आपका आलेख पढ़.एकदम अपना सा अपने में बांधे हुए. लेख इंजन बना रहा और हम उसके पीछे जुड़े बोगियों से बहते हुए चलते चले गए.
आकर्षक लेखन और लेख के लिए आभार
बहुत रोचक लेख...मेरा प्रिय विषय भी ...रेलगाडी...खिड़की के पास बैठकर बाहर के दृश्य देखना और घर से लाई रोटी सब्जी मिल बाँट कर के खाना...ऐसा दुनिया में कहीं नहीं होता...की सफर में ऐसे रिश्ते बन जायें तो बरसों बरस चलें...बुरा हो इस नौकरी का जिसकी वजह से पिछले कोई दस सालों से रेलगाडी में बैठने का अवसर ही नहीं मिला...सोचता हूँ इसे छोड़ कर फ़िर से भारत भ्रमण करूँगा...रेलगाडी से...सेकिंड क्लास स्लीपर में.
नीरज
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