Saturday, February 16, 2008

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

6-7 महीने पहले अपने मित्र ऋषि काला के घर पर था।किसी चैनल पर मुशायरा आ रहा था। फ़राज़ को मैंने पहली बार वहीं सुना था। लेकिन बात आई-गई हो गई। अचानक यू ट्यूब पर भटकते हुए कल फ़राज़ फिर मिल गए। रात के बारह बजे थे। मैंने उनके शेर कई-कई बार सुने। मन कर रहा था ताउम्र उसे सुनता रहूं। मैंने ये जरूरी समझा कि इस शेर से उन तमाम लोगों को रू-ब-रू कराया जाय जो इसे अब तक नहीं सुन सके हैं। सौदर्य के चित्रण के लिए ऐसे अल्फाज़ सिर्फ़ फ़राज़ ही इस्तेमाल कर सकते थे।

अहमद फ़राज़ उर्दू जगत के मशहूर शायर है। इनकी गिनती इक़बाल और फ़ैज अहमद फ़ैज के साथ की जाती है। पाकिस्तान में पैदा हुए अहमद फ़राज़ ने जिआ उल हक के सामने भी घुटना नहीं टेका। ज़िंदादिली से लबरेज़ ऐसे शख़्स के लिए वाकई मुल्क की सरहदे कोई मायने नहीं रखतीं। फराज़ हमारे दिल में हैं, फ़राज़ आपके दिल में हैं।

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

सुना है रब्त है उस को खराबहालों से
सो अपने आप को बरबाद करके देखते हैं
[रब्त = closeness / relation ]

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं
[गाहक = customer]

सुना है उस को भी है शेर-ओ-शायरी से शग़फ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं
[शगफ़ = passion ; मोजज़े = miracles / magic]

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं

सुना है रात उसे चांद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर के देखते हैं
[बाम-ए-फ़लक = Terrace of sky]

सुना है हश्र हैं उस की गज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
[हश्र = day of judgement / final destiny ; गज़ाल = Deer]

सुना है दिन को उसे तितलियां सतातीं हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं

सुना है रात से बढ़कर हैं काकुलें उस की
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं
[काकुलें = curls of hair]

सुना है उस की सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उस को सुरमाफ़रोश आँख भर के देखते हैं
[सियाह चश्मगी = blackness of eyes]

सुना है उस के लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं

सुना है आईना तमसाल है जबीं उस की
जो सादादिल हैं उसे बन संवर के देखते हैं
[जबीं = forehead]

सुना है जब से हमाइल हैं उस की गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल-ओ-गौहर के देखते हैं
[हमाइल = something to wear around the neck ; लाल-ओ-गौहर = rubies and pearls]

सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्कां में
पलन्ग ज़ावे उस की कमर के देखते हैं
[चश्म-ए-तसव्वुर = Imagination of eyes ; दश्त = jungle ; इम्कां = possibility ; ज़ावे = angles]

सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
के फूल अपनी क़बायें कतर के देखते हैं
[क़बायें = long coats]

वो सर्वक़द है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
के उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
[सर्वक़द = tall and graceful; शगूफ़े = buds ; समर = fruit]

बस एक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो राहरवां-ए-तमन्ना भी ड़र के देखते हैं
[राहरवां = travellers]

सुना है उस के शबिस्तां से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीं उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं
[शबिस्तां = bedroom; मुत्तसिल = near; बहिश्त = heaven; मकीं = tenants]

रुके तो गर्दिशें उस का तवाफ़ करती हैं
चले तो उस को ज़माने ठहर के देखते हैं
[तवाफ़ = to circle around]

किसे नसीब के बेपैराहन उसे देखे
कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं
[बे-पैराहन = without clothes]

कहानियां हीं सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
[मुबालग़े = beyons one's reach]

अब उस के शहर में ठहरें कि कूच कर जायें
'फ़राज़' आओ सितारे सफ़र के देखते हैं

1 comment:

Manish Kumar said...

शुक्रिया फ़राज साहब की ये ग़ज़ल यहाँ पेश करने के लिए