Monday, May 26, 2008

एकाकीपन.......

तुमने एक अच्छा जीवन जिया
मालाओं से बहुत सम्मानित हुए
अब क्यों खड़े हो, जीवन के नदी किनारे
हाथ में एक फूल लिए
एक-एक कर पंखुड़ियों को तोड़ते हुए
उदासी से गणित करते हुए
वो मुझे चाहती है, वो मुझे नहीं चाहती है
ईश्वर है, ईश्वर नहीं है
यह कैसी मजबूरी है
इन क्षणों को रोक भी तो नहीं सकते
पंखुड़ियां यादों के बहाव में कहीं दूर निकल जाती हैं।

6 comments:

Udan Tashtari said...

किसी इन्तजार के क्षण हैं, जी लेने दो.

-गहरे भाव.

समयचक्र said...

bahut sundar sarahaniy hai kripya likhate rahaiye dhanyawaad .

Manjit Thakur said...

बढिया है..साधुवाद. अच्छी रचना के लिए..

sushant jha said...

मैं आश्चर्यचकित हूं..

शोभा said...

राजीव जी
एकदम सही लिखा है-
इन क्षणों को रोक भी तो नहीं सकते
पंखुड़ियां यादों के बहाव में कहीं दूर निकल जाती हैं।
बधाई स्वीकारें।

Unknown said...

राजीव जी, जीवन के उंचाई-निचाई के बाद जब लोग समतल ज़मीन पर उतरते हैं तब हक़ीकत समझ में आती है...डेफ्थ है...।