मीडिया के भविष्य पर विचार करने के बाद एक दिन सिर खुजलाते हुए खयाल आया कि क्यों न ब्लॉग के भविष्य में झांका जाए। माफ कीजिएगा मैं कोई भविस्यद्रष्टा या ज्योतिषी नहीं हूं लेकिन कुछ सपने थे, बल्कि हैं भी शायद जो मौजूदा वक्त से आगे जाकर देखने के लिए मजबूर करते हैं। अपने यहां ब्लॉगिंग अभी बचपने में ही है लेकिन कम समय में जिस तरह से ब्लॉगों की तादाद में इजाफा हुआ है उससे लगने लगा है कि ये जल्द ही जवान हो जाएगा। वो कहते हैं न पूत के पांव पालने में। सच है ब्लॉग की वर्चुअल दुनिया में न किसी नियम कायदे से बंधने का डर है, न किसी मठाधीश का भय। सबसे बड़ी बात तो ये कि यहां न किसी एडिटर का दबाव है और न ही सर्कुलेशन या टीआरपी का झंझट। लेकिन ब्लॉग की टीआरपी लगातार बढ़ रही है। संभावनाओं का विराट संसार खुल गया हैं। साथ ही कई चुनौतियों ने भी दस्तक दे दी है। इनमें सबसे बड़ी चुनौती है ब्लॉगों का कंटेंट और उनका नियंत्रण। हलांकि यह अभिव्यक्ति और संचार का स्वतंत्र और सशक्त माध्यम है और इसे किसी रेग्यूलेशन में जकड़ना उचित नहीं जान पड़ता है। लेकिन कुछ हद तक यह जरूरी भी है।
इंटरनेट की बड़ी पहुंच को देखते हुए ब्लॉगों का कंटेंट रेग्यूलेशन एक मुश्किल काम है। हो सकता है कि आने वाले समय में कोई रेग्यूलेटरी फ्रेमवर्क वजूद में आ जाए। लेकिन वास्तविक नियंत्रण ब्लॉगिंग क्म्यूनिटी को अपने अंदर से ही करना होगा। कुछ उसी तरह से जैसे प्रिंट मीडिया ने अपने लिए किया है। हरेक अख़बार का अपना एक पाठक वर्ग है। समय के साथ गंभीर ब्लॉग्स भी अपना एक पाठक वर्ग बना लेगा। बाकी सरवाईव कर पाएं, यह देखने वाली बात होगी। देश में अभी कुल चार लाख रजिस्टर्ड ब्लॉग्स हैं जिनमें सिर्फ चालीस हज़ार ही सक्रिय हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है कि लगातार कंटेंट जेनरेट करना अपने आप में एक टेढ़ी खीर है। पढ़ने लायक सामग्री जेनरेट करते रहना तो उससे भी बड़ी चुनौती है। पोस्ट में कमी आई नहीं कि आप पाठकों के रडार से आउट हो गए। मुस्तकिल क्वालिटी लिखने वालों में भी कम ही ऐसे खुशनसीब हैं जिन्हें लगातार हिट्स मिलता है। सच यह भी है कि शायद ही कोई ऐसा ब्लॉगर हो जो अपनी खुशी के लिए लिखता हो। मैं ख़ास कर हिंदी ब्लॉगरों की बात कर रहा हूं। सब पाठकों की तलाश में रहते हैं। फिर कमेंट्स\ फीडबैक से अपनी लोकप्रियता का अंदाजा लगाते रहते हैं। ज्यादा कमेंट्स, यानि हिट.....कम तो फुस्स....। इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है।
कमेंट्स वो उर्जा है जिसपर सवार होकर ब्लॉगर्स तरह-तरह के कंटेंट जेनरेट कर रहे हैं। मेरा दावा है कि कमेंट्स मिलना बंद हो जाए तो बड़े से बड़े लिक्खाड़ की हिम्मत भी जवाब दे जाएगी। कमिटमेंट, कंटेंट और कमेंट्स के रूप में पाठकों की प्रतिक्रीया - (3 C)- तीन ऐसे फैक्टर हैं जो ब्लॉगिंग को नई उंचाईयां देंगे। रोचक सामग्री वाले कमिटेड ब्लॉगर्स पाठको के बीच धीरे-धीरे जगह बना भी रहे हैं। ब्लॉगर्स वर्चुअल रह कर भी हमारे जीवन में अपनी अपस्थिति दर्ज़ करा रहे हैं। हम-आप में से बहुत कम ही अविनाश, रवीश, अनामदास, रवि रतलामी से मिले हैं। लेकिन नाम लेते ही जेहन में मोहल्ला और नई सड़क आ जाता है।
अगर बात करें मुद्दों की... तो इनमें जाती तजुर्बा, सियासत, समाज, मीडिया, तकनीक, कविता, कहानियां, व्यंग्य, सेक्स ही अभी प्रमुख हैं। आर्थिक मुद्दों पर ब्लॉग कम या ना के बराबर हैं। दरअसल, यह एक आईना है हमारे समाज का....वहाँ हो रहे बदलावों का। पश्चिम में राजनीतिक टीकाकार अपना ब्लॉग चलाते हैं। वहाँ खास विषयों को समर्पित ब्लॉग्स का अपना क्रेज़ है। इंटरनेट पेनेटरेशन भी कंटेंट क्वालिटी को रेग्यूलेट करने में अहम भूमिका निभाता रहा है।
हिंदी ब्लॉग, ग्लोबल ब्लॉगिंग की दृष्टि से अभी भी शुरुआती दौर में हैं। लेकिन देर-सवेर हमारे ब्लॉग्स भी राजनीतिक, सामाजिक कमेंटरी के विश्वसनीय और वैकल्पिक माध्यम बन जाएंगे। सेक्स और सेक्स संबंधी कंटेंट से हमारा लगाव यह भी बतलाता है कि वैश्विक समाज में हम कहाँ हैं। शायद यह पहली बार है जब हमारा समाज न सिर्फ़ इतना खुला है, बल्कि उसके पास इंटरनेट जैसे टूल्स भी है जिससे वह सेक्स जैसे वर्जित मुद्दों पर भी खुल कर बात कर रहा है। इंटरनेट की एनोनिमिटी लोगों को और अधिक एक्सप्रेसिव बना रहा है। वे इश्यूज़ पर जम कर डिबेट कर रहे हैं। सेक्स जैसे टैबू विषयों पर खुले दिमाग से बहस करने में कोई हर्ज़ नहीं है। एक बार समाज अपनी दबी कुंठाओं, भड़ासों को इंटरनेट के माध्यम से उगल ले, फिर उसे क्रिएटिव कामों में लगाया जा सकेगा। हरेक सभ्यता इस फेज़ से गुजरती है। पश्चिम ने यौन क्रांति 60 के दशक में ही देख लिया है। हमारे यहाँ यह आज हो रहा है। कुछ मुल्कों में दस-बीस साल बाद होगा। लेकिन होगा जरूर....।
हिंदी में भी तकनीक, खेल, संगीत, बिज़नेस, हेल्थ, ज्योतिष से जुड़े ब्लाग्स नज़र आने लगे है। अमिताभ बच्चन, जॉन अब्राहम, आमिर खान, लालू यादव जैसी हस्तियों ने ब्लॉग की ताक़त को पहचाना है। बस, कुछ समय की बात है नामी-गिनामी लेखक, पत्रकार, सामाजिक-राजनीतिक टीकाकार , कलाकार और संगीतकार भी ब्लॉगिंग की दुनिया में दिखने लगेंगे। पश्चिम में नौकरी खोजते वक्त सीवी की जगह अब ब्लॉग देखा जाने लगा है बल्कि मेरी जानकारी में सीएनईबी चैनल में काम करने वाली लड़की को सिर्फ इसलिए इंडिया न्यूज में नौकरी की पेशकश की गई थी क्योंकि वह अच्छा ब्लॉग लिखती है। आनेवाले वक्त में यकीन मानिए, ब्लॉग आपके मोबाईल नं. और ई-मेल आईडी की तरह जरुरत बनने जा रहा है..और अगर आप इससे चूके तो आप सोशल रडार से अक्सर बाहर नजर आएंगे।