सौजन्य-रायटर्स
चक्रधर दुबे
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चक्रधर जी ने बताया कि वे सवेरे चार बजे बिस्तर छोड़ देते हैं। नित्यकर्म के
बाद एक घंटा साइकिल चलाते हैं। दो ढ़ाई किलोमीटर धीरे, काहे कि वह शहर और
गलियों में ह...
2 days ago
7 comments:
ये हुई न बात। बहुत बढि़या तस्वीर है.. आशा जगाती हुई।
त्रासदी के बाद भी जीवन है। नई सुबह का हमें भी इंतज़ार है।
सचमुच सूकून पहुंचाने वाली तस्वीर...ज़िंदगी आगे बढ़ते जाने का नाम है।
अच्छी बात है, आपने किसी को गाली नहीं दी है। सार्थक सोच को दर्शाती तस्वीर।
उत्साहवर्धक पोस्ट...कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है--को चरितार्थ करती.
हिला देलअ राजा...कहां से खोज लैलअ ई फोटुआ...तोहरा नजरिया त रिपोर्टर बनैके लायक ह...कमाल है...लगता है...अपना ही बच्चा है..
lajawaab..........
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