Thursday, September 18, 2008

बारिश, मैं और गाने

शाम में किसी मित्र से मिलने जेएनयू गया था। लौट रहा था, तभी जोर की हवाओं के साथ हल्की बारिश होने लगी। बचने के लिए लोग इधर-उधर भागने लगे। जिसको जहाँ जगह मिला सिमट गया। मैं भी दौड़ा, फिर रुक गया....सोचा कल भी तो ऑफ है। दफ़्तर जाना नहीं है, चलो भीगते हैं.....। सालों बाद अपनी मर्ज़ी से भीगना कितना सूकून दे रहा था। कान में लगे इयर फ़ोन पर मंज़िल फ़िल्म का गाना आने लगा, "रिमझिम गिरे सावन...सुलग सुलग जाए मन...भीगे आज इस मौसम में....लगी कैसी ये अगन"। ये एफएम वाले भी न....। बारिश की छीटों के साथ हल्की-हल्की हवा शरीर में शिहरन भी पैदा कर रही थी। झमाझम होती इस बारिश में कुछ लड़कियां रंग-बिरंगे छातों में सिमट कर धीरे-धीरे साथ चल कर मुझे अमिताभ और उनमें मौसमी चटर्जी होने का एहसास करा रही थी। स्टेशन बदलता हूं.....रेडियो मिर्ची....आज रपट जाए तो हमें न उठइयो। भादो के इस बारिश को कई सालों के बाद दिल से इंज़्वाय कर रहा था।
कान में बज रहे गानों ने सोचन को मजबूर भी किया, हमारी हिंदी सिनेमा भी गज़ब है, जन्म से लेकर मृत्यू तक जीवन के हरेक पहलू पर कोई न कोई गाना जरूर है। शादी, जन्मदिन, सरकारी समारोह, पंद्रह अगस्त, एक जनवरी, मुंडन, श्राद्ध, राजनैतिक सम्मेलन, आर्थिक हालात, सावन, भादो, सर्दी, गर्मी....कुछ भी तो नही छूटा है। गानों के बिना फ़िल्में कैसी होतीं....सोच भी नहीं सकता। शायद इसलिए फिल्मी संगीत देश में सबसे पॉपुलर संगीत ब्रांड के रूप में सामने आया है। अब बरसात को ही लीजिए, आठ-दस गाने तो मेरे जुबान पर अभी भी हैं। 'जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात', बरसात की रात फ़िल्म का ये गाना बचपन से ही अच्छा लगता था। वो तो काफ़ी बाद में पता चला कि अमृता प्रीतम को साहिर के नज़दीक इसी गाने ने ला दिया था। गाने में एक लाईन है, "सुर्ख आंचल को दबाकर जो निचोड़ा उसने...दिल पे जलता हुआ एक तीर सा छोड़ा उसने"...कल्पना की पराकाष्टा। कितनी साधारण सी तो लाईन है, आख़िर मैं क्यों नहीं सोच पाता हूं।
राजकपूर और नरगिस पर फिल्माया गीत 'प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यों डरता है दिल' आज भी बरसती बूंदों में गर्मी का अहसास करा देता है। प्यार और बारिश में आख़िर क्या रिश्ता हो सकता है? बारिश में लोग सुंदर क्यों दिखने लगते हैं?....ऐसे कई सवाल हैं जो दिल में आते हैं, लेकिन जवाब आज तक नहीं ढ़ूंढ़ पाया हूं। एक कृषिप्रधान देश होने के कारण भारत में मानसून के महत्व को तो समझ सकता हूं और शायद इसीलिए इसका असर फ़िल्मों में भी देखने को मिल जाता है। अगर मुझे या फिर आपको बरसात पर फिल्माए गए गीतों का काउंट डाउन बनाने को दिया जाए तो नंबर वन कौन सा होगा। मैं तो 'प्यार हुआ इकरार हुआ' को ही सर्वश्रेष्ठ मानता हूं। कुछ लोग मधुबाला और किशोर कुमार पर फिल्माए गए ‘चलती का नाम गाड़ी’ के गीत ‘एक लड़की भीगी-भागी सी’ को सर्वश्रेष्ठ मानेंगे। नायक-नायिका एक-दूसरे को स्पर्श भी नहीं करते हैं और माहौल में कुछ-कुछ हो सा जाता है। ये कुछ-कुछ क्या है, समझने की कोशिश कर रहा हूं। कुछ साल पहले सहारा समय में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया था, हम तीन दोस्त अपनी-अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। बाहर झमाझम बारिश हो रही थी। तभी चौथा लड़का जो कि मेरे संस्थान का ही था आया। अजीब सी चुहलपन थी उसमें.....कहता है, यार "इस दो टकिए की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए"। इस लाईन ने कुछ ऐसा असर किया कि हम तीनों उसके साथ बाहर घूमने निकल गए। कोई फिक्र नहीं....। सिगरेट की कश के साथ ही नौकरी के फिक्र को धुंए में उड़ा दिया गया। सीवी भींग रहा था, लेकिन कोई टेंशन नहीं....। उस वक्त एक ज्जबा था, यहाँ नहीं तो कहीं और सही, नौकरी तो लात की ठोकर है। बाद में ज़िंदगी की कड़वी हक़ीकतों नें हमें बहुत बदल दिया। लेकिन उस दिन को याद कर आज भी अपने उपर गर्व होता है। वो भी मैं ही था.....। आख़िर उस माहौल से उस गाने का कुछ तो रिश्ता रहा ही होगा कि तीन नौजवान नौकरी को ठोकर मारने को तैयार हो गए थे। और भी कई गाने बाद की फ़िल्मों में आए, और यह सिलसिला आज भी जारी है।
1942 - अ लव स्टोरी का गीत 'रिमझिम रिमझिम, रुमझुम रुमझुम , भिगी भिगी रुत में तुम-हम, हम-तुम'...एक रुमानियत का एहसास कराता है। तो वहीं 'घनन-घनन घन घिर आए बदरा' को सुन कर लगता है कि प्यासी धरती को जल्द ही पानी मिलने वाली है। इसी से मिलती-जुलती एक गीत बचपन में चित्रहार पर अक्सर आती थी....'अल्लाह मेघ दे, पानी दे...पानी दे, गुरधानी दे'...। तपिश जब बर्दास्त से बाहर हो जाती थी तो मन ही मन में इस गीत को जरूर गुनगुनाता था। 'बदरा साये के झूले पड़ गए हाय के मेले लग गई मच गई धूम रे....' सावन आते ही कानों में सुनाई देने लगता है। राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’ से वर्षा गीतों का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह मणिरत्नम् की ‘गुरु’ तक जारी है। बरसो रे मेघा-मेघा....। अभी लिखते वक्त छोटे भाई ने कोलकाता से पूछा कि इस बेमौसम बरसात पर मैं क्यों फ़िदा हुआ जा रहा हूं। मैंने कहा कि गीतकार, संगीतकार और फ़िल्मकार ये तीनों तरह के 'कार' मुंबई की बारिश पर फ़िदा होते रहे हैं। दिल्ली की बारिश पर एक ही 'कार' फ़िदा होता है और वह है पत्रकार। और मैं पत्रकार हूं....! अगर आप भी बारिश का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो इन गानों को यू-ट्यूब पर देख सकते हैं। गानों के साथ लिंक दे रहा हूं। देखिए और भीग जाने का एहसास लीजिए...।

पेश है कुछ यादगार मानसून गीत :
* प्यार हुआ, इकरार हुआ (श्री 420 - 1955)
* इक लड़की भीगी-भागी-सी (चलती का नाम गाड़ी - 1958)
* जिंदगीभर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात (बरसात की रात - 1960)
* हाय हाय ये मजबूरी (रोटी कपड़ा और मकान - 1974)

* रिमझिम गिरे सावन (मंजिल - 1979)
* आज रपट जाएँ (नमक हलाल - 1982)
* लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है (चाँदनी - 1989)
* रिमझिम-रिमझिम (1942 : ए लव स्टोरी - 1994)
* घनन-घनन घन घिर आए बदरा (लगान - 2001)
* बरसो रे मेघा (गुरु - 2007)

12 comments:

Unknown said...

लीजिए आपकी बारिश में हम भी भीग गए। मुझे लगी आग सावन सबसे अधिक पसंद है। ऐसे बारिश पर लिखे गए सभी गाने अच्छे हैं और आप भी बचें, सावन नहीं भादो की बारिश है, बिमार हो जाएंगे।

Unknown said...

पहले भी यूँ तो बरसे थे बादल,
पहले भी यूँ तो भीगा था आंचल
अब के बरस क्यूँ सजन, सुलग सुलग जाए मन
भीगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन
रिम-झिम गिरे सावन ...

बेहतरीन गीत, योगेश ने बहुत कम गीत लिखे उनमे एक यह भी था। ठहर जाने को मन करता है। आपने यू-ट्यूब पर विडियो डाल कर हमें रोक लिया।

Anonymous said...

सुन्दर हिसाब किताब बताया बरसाती गानों का!

Unknown said...

कई गाने हैं, लिस्ट को आगे बढ़ाता हूं. ओ सजना, बरखा बहार आई, रूप तेरा मस्ताना, काटे नहीं कटते, टिप-टिप बरसा पानी, साँसों को साँसों से मिलने दो जरा.

manvinder bhimber said...

barsaat mai ganon se mood fresh kar diya apne

Unknown said...

बारिश के हसीन मौसम का अहसास कराने के लिए शुक्रिया. कुछ ऐसे ही दिन थे वो जब हम मिले थे,
चमन में नहीं फूल दिल में खिले थे, वही तो है मौसम मगर रुत नहीं वो, मेरे साथ बरसात भी रो पड़ी है.

Anonymous said...

Very touching, songs close to my hearts

Unknown said...

छई छप्पा छई .....बारिश की बात चलने पर मुझे लखनऊ के वे दिन याद आ जाते हैं, जब हम बच्चे घरवालों की नजरें बचाकर बाहर भीगने निकल पड़ते थे। ऊपर से झमाझम बारिश और नीचे इकट्ठे पानी को पैरों से उछालना.. बड़ा मजा आता था। लेकिन ज्यों-ज्यों बड़ी होती गई, ऐसे दिनों का आनंद उठाने की आजादी छिनती गई। अब गाने सुन कर ही.....

Unknown said...

राजीव जी आपने एक पहलू यह लिखा कि कृषि प्रधान देश होने के कारण फिल्मी गानों में बारिश का खूब इस्तेमाल किया गया है। इसका दूसरा पहलू यह है भी है कि बारिश का मौसम हमारे जीवन में एक ख़ास उत्सव का सा स्थान रखता है ये मस्ती प्यार उल्लास एवं उन्माद का मौसम है। बरसात पर फिल्माए गए और भी बहुत सारे गाने है। एस. डी. बर्मन का संगीतबद्ध व नीरज का लिखा फ़िल्म ''शर्मीली'' का गीत ''मेघा छाये आधी रात बैरन बन गई निंदिया'', गाइड का एस. डी. बर्मन का स्वयं का गाया ''अल्लाह मेघ दे पानी दे छाया दे'' और फ़िल्म ''सुजाता'' का शैलेन्द्र रचित गीत ''काली घटा छाये मोरा जिया तरसाये'' । बेताब का ''बादल यों गरजता है डर कुछ ऐसा लगता है''। गुलज़ार ने बतौर निर्देशक एवं गीतकार गीतों में बारिश को लेकर कुछ खूबसूरत अभिनव प्रयोग किए हैं। ''किनारा'' का उनका ही लिखा गीत ''अबके न सावन बरसे अबके बरस तो बरसेंगी अँखियाँ'' फ़िल्म ''आशीर्वाद'' का ''झिर झिर बरसे सावलीं अँखियाँ'' फ़िल्म इजाज़त का ''बारिशों के पानी से छोटी-सी कहानी से सारी वादी भर गई''।

Unknown said...

राजीव जी आपने एक पहलू यह लिखा कि कृषि प्रधान देश होने के कारण फिल्मी गानों में बारिश का खूब इस्तेमाल किया गया है। इसका दूसरा पहलू यह है भी है कि बारिश का मौसम हमारे जीवन में एक ख़ास उत्सव का सा स्थान रखता है ये मस्ती प्यार उल्लास एवं उन्माद का मौसम है। बरसात पर फिल्माए गए और भी बहुत सारे गाने है। एस. डी. बर्मन का संगीतबद्ध व नीरज का लिखा फ़िल्म ''शर्मीली'' का गीत ''मेघा छाये आधी रात बैरन बन गई निंदिया'', गाइड का एस. डी. बर्मन का स्वयं का गाया ''अल्लाह मेघ दे पानी दे छाया दे'' और फ़िल्म ''सुजाता'' का शैलेन्द्र रचित गीत ''काली घटा छाये मोरा जिया तरसाये'' । बेताब का ''बादल यों गरजता है डर कुछ ऐसा लगता है''। गुलज़ार ने बतौर निर्देशक एवं गीतकार गीतों में बारिश को लेकर कुछ खूबसूरत अभिनव प्रयोग किए हैं। ''किनारा'' का उनका ही लिखा गीत ''अबके न सावन बरसे अबके बरस तो बरसेंगी अँखियाँ'' फ़िल्म ''आशीर्वाद'' का ''झिर झिर बरसे सावलीं अँखियाँ'' फ़िल्म इजाज़त का ''बारिशों के पानी से छोटी-सी कहानी से सारी वादी भर गई''।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत सुँदर गीतोँ के बारे मेँ लिखा आलेख पसँद आया !
- लावण्या

neeraj vashistha said...

राजीव नमस्‍कार
आपने जो लिखा है पढकर काफी अच्‍छा लगा और सही मायनों मे ंआपका आभारी हूं कि इस ेलख को पढकर एक अहसास ताजा हो गया. बालीवुड के बारिश के गाने का मैं भ्‍ीी काफी प्रेमी रहा हूं और पिफर आपका एक सिलसिलेवार ढंग से इसे परोसना ऐसा लगता है लेखक को सेना से गहरा लगाव रहा है और बडी ही संवेदनशील होकर उसने हम आप पाठक पर क2पा की है. अभी जब मैं इसे पढ रहा हूं तो ठीक उसी समय बारिश भी हो रही है और पढते ही वक्‍त ऐसा लग रहा है ि‍ हर शब्‍द बारिश की एक बुंद हो और मेरा रोआ रोआ भींग रहा हूं. यादो अहसासों के पलो में आपको हम सभ्‍ज्ञी पाठक को यू भिगोना काफी आनंद दायक अनुभव है और मुझे आशा है कि जो भी इसे पढेगें उसे भी इस बारिश में भींगने का पर्याप्‍त मौका मिलेगा.

आपका ही
नीरज वशिष्‍ठ
नयी दिल्‍ली