अरसे बाद मिला ऑस्कर...पूरे देश में छाई ख़ुशी...लेकिन, ताज़्जुब की बात ये कि बॉलीवुड के बड़ों-बड़ों ने अपनी ज़ुबान पर ताले लगा लिए। क्या, ये उनकी हीन ग्रंथि है, कि इतने तमगों के बाद भी उन्हें कभी ऑस्कर नसीब नहीं हुआ और नए-नए लोग ऑस्कर ले उड़े। जी हां....हम बात फिर से ‘सदी के महानायक’ अमिताभ बच्चन की ही कर रहे हैं। बिग-बी ने फ़िल्म रिलीज़ होते ही इसकी आलोचना की थी...कहा था कि ये फ़िल्म इंडिया की गरीबी बेचती है। माना कि फिल्म में कई कमियां हो सकती हैं, या और भी खोजी जा सकती है, लेकिन क्या ये कोई साधारन मौका था ? जो देश ओलंपिक में गोल्ड और फिल्मों में ऑस्कर के लिए तरसता हो वहां क्वालिटी और भेदभाव की बात उठाना असलियत से जी चुराना है।
कम से कम ऑस्कर मिलने के बाद जनता की उफ़नती भावनाओं का ख्याल तो बिग-बी को करना ही चाहिए था। कम से कम तारीफ़ के दो बोल ही बोल देते, उनका बड़प्पन होता। लेकिन नहीं, अमिताभ की चुप्पी ख़तरनाक है। ये मानवीय और व्यवसायिक शिष्टाचार का उल्लंघन ही नहीं , बल्कि धारा के खिलाफ एक महानायक की लाचार निगाह है।
कम से कम ऑस्कर मिलने के बाद जनता की उफ़नती भावनाओं का ख्याल तो बिग-बी को करना ही चाहिए था। कम से कम तारीफ़ के दो बोल ही बोल देते, उनका बड़प्पन होता। लेकिन नहीं, अमिताभ की चुप्पी ख़तरनाक है। ये मानवीय और व्यवसायिक शिष्टाचार का उल्लंघन ही नहीं , बल्कि धारा के खिलाफ एक महानायक की लाचार निगाह है।
माना कि बिग-बी ने अनिल कपूर वाला रोल इसलिए नहीं किया कि उसमें उन्ही के किरदार का रोल नकारात्मक सा था। दूसरी बात जो लोगों को हजम नहीं हुई वो ये कि अमिताभ ने गरीबी बेचने का इल्जाम फिल्म के निर्देशक पर लगाया है। लेकिन क्या ये वही अमिताभ है, जो आज से 40 साल पहले सिस्टम के खिलाफ दहाड़ मारते हुए, ‘एंग्री यंग मेन’ बन गया था। वो आम आदमी की आवाज़ बन गया था। लेकिन नहीं.....साल 2009 का अमिताभ वो है, जो सिस्टम के भ्रष्टतम लोगों के साथ गलबहियां डाले घूमता दिखाई देता है। पंकज श्रीवास्तव का एक लेख कबाड़खाना पर कभी पढ़ा था, जिसमें उन्होने अमिताभ की इन्ही बातों के लिए कड़ी आलोचना की थी। नई शताब्दी का अमिताभ वो है, जो हिंदी बोलने के सवाल पर राज ठाकरे से माफी मांग लेता है। और ये साबित हो चुका है कि जिस एंग्री यंग मेन को जनता ने पलकों पर उठाया था उसकी अकाल मौत हो चुकी है। ये महानायक तो कोई उम्मीद भी नहीं जगाता। वो तो अक्सर कूपमंडूक बातों के लिए चर्चा में रहने लगा है। और ऐसे में उसके बेटे के मंगला होने को लेकर अगर राजेंद्र यादव आलोचना करते हैं तो इसमें ग़लत क्या है। ग्रह शान्ति के लिए पेड़ के चक्कर लगाने से बेहतर है कि हिंदुस्तान की गरीबी ही बेची जाए।
दूसरी बात जो अहम है, वो ये कि स्लमडॉग को ऑस्कर मिलना सिर्फ़ फिल्म उद्योग के बड़ों बड़ों को आईना ही नहीं दिखा रहा, बल्कि उन निर्देशकों और निर्माताओं को भी अंगूठा दिखाता है, जिनके लिए भारत का मतलब सिर्फ पंजाब या पंजाबी पृष्टभूमि रह गई है। ये फिल्म इस बात की भी तस्दीक करता है, कि हमारा ही कच्चा माल लेकर एक विदेशी मेहमान किस तरह से क्वालिटी स्टफ हमें ही बेच गया है।
एक बार फिर अमिताभ की बात करें तो इतना जरुर है कि उनकी ये सोची समझी चुप्पी लोगों को कहीं न कहीं जरुर चुभ रही है। और महानायक की छवि कुछ छोटी...बल्कि बहुत ही छोटी... हो गई है।
9 comments:
आपकी अपनी व्यक्तिगत सोच है ये सब
आपको जिस तरह अपनी सोच रखने का हक है, सभी को है
मेरी ऩज़र में तो ये आस्कर जुगाड़बाजी है
अमिताभ आस्कर से बहुत बहुत बड़े हैं
जैसा मुँह वैसी बातें ...कोई कुछ सोचता है तो कोई कुछ ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
bahut khoob kaha aapne .......... jahan tak amitabh ki baat hai... slumdog ka oskar milana mahanayak par karara tamacha hai.... yahan to aschara yah lagata hai ki bharat me mahanayak matlab mahadalal hona hai.... akhir wo kis baat ke mahanayak hai..han wah mahadala jarur hain... kya mahanayak aur mahanalayak ka antar itna chhota hai!......
सही कहा! अब तो मिल गया, अब???
i dont know why foreigners are so desperate to see india's poverty.right from naipaul to rusdie to very recently adiga, all have caught literary world's attention by showing india's proletariate class.this is one more nail in the the coffin(with a bang).satyajit ray also showcased proles in his work but with an elegant feel. didn't he had the calibre to get oscars! getting oscars nowadays has become more of an marketing issue than anything else.whoever showcases his product better, wins the race.understandably indian govt. dont send low budget movies(read art movies) in the horse race as there are ar a lot of financial constraints to market these movies.films like "meghe dheka tara" and "apu's trilogy" has far more artistic worth and creativity than slumdog. anyways, three cheers to pseudo creativity.simple
Pity on you!! First of all, it seems you don't read Mr. Bachchan's blog in which he has congratulated the winning team of the SM. He has made his blog his medium to communicate with his fans so obviously he is writing his reactions, views on the blog and not expressing it anywhere else.
Grow up man...Bharat ki garibi dikhakar hi Oscar jeeta jaa sakta hai...Bharat ki tarakki ya khushhaali dikha kar nahi...jo ki hamare Bollywoodian directors ya producers karate hai...hamari garibi ka aaina dikhane hume forigners ki zaroorat padti hai or foreiners ko Oscar jeetane ke liye hamari garibi...Amitabh ko chhota kehne ki umar aur aukaat dono hi nahi hai aapki...seriously, grow up!!
तो अब आस्कर हमारी फिल्मों की महानता का पैमाना हो गयी अगर आस्कर नहीं मिलेगा तो भारतीय फिल्में स्तरहीन होंगी। और जहां तक ओलपिंक में गोल्ड मैडल की बात है तो वहां सबके लिये बराबर का मौका होता है अगर आप अपने प्रदर्शन के बल पर विपक्षी से आगे निकल गये तो गोल्ड पक्का। परंतु क्या आस्कर में ऐसा होता है? लगान भी गयी थी आस्कर में? मदर इंडिया भी और तारे जमीन पर भी । पर हुआ क्या। और मिला आस्कर किन फिल्मों को गांधी को क्योंकि बनायी विदेशी ने‚ स्लमडाग को। अब आप खुद ही पैमाना समझ लीजिये आस्कर जीतने का। और माफ कीजिये ओलंपिक में गोल्ड के लिये यह देश तरसता हो परंतु आस्कर के लिये कुछ गिने–चुने फिल्मकार या कुछ और लोग। ओलपिंक को भी काफी वर्ष हो गये और जब हमने बेहतर किया तो गोल्ड मिला हाकी उदाहरण है परंतु आस्कर के लिये भी काफी वर्ष हो गये तो क्या इतने वर्षों में हमारे फिल्मकार एक भी बेहतर फिल्म नहीं बना पाये कि वह आस्कर की एक भी केटेगिरी में जगह नहीं बना पायी। अगर आप नोबल पुरस्कार की बात करते तो माना जा सकता था परंतु आस्कर‚ न भी मिले तो क्या फर्क पड़ता है आखिर अब हमारे यहां ही बहुत सारे पुरस्कार दिये जा रहे हैं और रही पैसा कमाने की बात तो पूरी दुनिया में भारतीय फिल्में रिलीज हो रही हैं और दर्शकों से अपना लोहा मनवा रही हैं। और अमिताभ उनकी आलोचना की जा सकती है परंतु निंदा। अफसोस है।
मैंने कहीं पढ़ा था कि अमिताभ बच्चन ने अपने आप को, यह कहकर इस फ़िल्म की आलोचना अलग कर लिया था कि उनहोंने कभी इसकी आलोचना नहीं की !
अच्छा लेख। अमिताभ सिर्फ भीड़ खिंचाऊ अभिनेता हैं...क्वालिटी एक्टर नहीं और न हीं उनके क्रियाकलाप वैसे हैं।
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