Friday, July 3, 2009

यस गे लार्ड....!

अरे भैया, अलेक्जेंडर द ग्रेट को क्यूं बदनाम करते हो। अब उसकी क्या ग़लती थी। बेचारे की आत्मा बहुत बद्दुआ दे रही होगी। ज़िंदा था तो किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उसके ख़िलाफ एक लाईन भी बोल दे। अब मरने के करीब दो हजार साल बाद उसे गे घोषित कर दिया। ब्रांड एंबेस्डर बना दिया। आइकन....कि जब सिकंदर गे होकर भी महान हो सकता है, तो हम क्यूं नहीं। हाई कोर्ट का जजमेंट क्या आया, ऐसा हो हंगामा हुआ, लगा कि भारत विश्व कप जीत गया है। टीवी वाले तो निहाल हो गए। ख़बर तान दो, पूरा मसाला है। अंग्रेज़ी चैनल के डेस्क पर आवाज़ आई, 'यस, वी डीड इट"। जजमेंट की कॉपी जज साहब लिख भी नहीं पाए थे, उससे पहले ही टीवी पर व्याख्या शुरू हो गई। सेलीना जेटली का भाव सातवें आसमान पर पहुंच गया। गेस्ट कार्डिनेशन वाले उन्हें फ़ोन लगा-लगा कर हलकान हो गए। “अभी एनडीटीवी पर हूं, अभी टाईम्स नॉउ पर”। जामा मस्जिद के शाही इमाम बिफरे, “हम इस क़ानून को नहीं मानते।" मत मानो, रोक सकते हो तो रोक लो। रामदेव जी कैसे चुप रहते, “मानसिक रूप से बीमार लोग ही समलैंगिक संबंधों के चंगुल में फंसते है”। पहली बार सभी धर्मों के ठेकेदार एक साथ आ खड़े हुए। फादर, आचार्य, मौलाना सभी आशंकित कि गया धर्म पानी में...कर दिया नाश, ऐसी कामुकता...राम, राम, राम। क्लचर यानि संस्कृति का क्या होगा। अब संगम से स्नान करने से भी पाप नहीं धुलेगा।
हवलदार साहब भी परेशान। अब पार्कों में किसको डंडा दिखाकर 50 रूपया ऐंठेगे। सबकुछ खुल्लम खुल्ला होगा। हैप्पी एंड फ्री टू बी गे। सरकार भी चुप है...ठीके हुआ, कानून लाते तो तोहमत लगता कि समाजिक दुराचार को बढ़ावा दे रहे हैं। देखा जाएगा, ज्यादा हंगामा हुआ तो दे देंगे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती। ऐसे भी धारा 377, 1860 का कानून है...समय बदल गया है, पसंद भी। ऐसे भी यह धारा, 1860 में लार्ड मैकाले ने बनाई थी। शिक्षा सुधार में मैकाले के योगदान के बारे में तो बचपन से रटाई गई है। लेकिन बंदे ने यहां भी कमाल किया था, यह नहीं मालूम था।

पटना में गे शब्द से मेरा कोई ख़ास परिचय नहीं था। दोस्त एकाध दुराचारी, अत्याचारी के बारे में बताते रहते थे, लेकिन देखा कभी नहीं था। 2004 में आईआईएमसी में आया। तकरीबन उसी वक्त पुश्किन चंद्रा कांड सुर्खियों में आया था। संस्थान में आए हुए हफ्ता भर ही हुआ था कि प्रोफ़ेसर राघवचारी नें हमें 5 मिनट का फ़िल्म बनाने का एसाइनमेंट दे दिया। मेरा ग्रुप सी-2 था। मरे साथ ऋषि और रोहित थे। हम तीनों ने एक-एक आईडिया दिया, मैंने कहा कि दिल्ली में रिक्शेवाले पर बनाते हैं, रोहित ने कुछ और कहा। लेकिन ऋषि का आईडिया क्रांतिकारी था। बोला गे पर फिल्म बनाते हैं। हम दोनों, यानि मैं और रोहित झिझक रहे थे। अरे नहीं यार, लोग क्या सोचेंगे...। फिर ऋषि ने हमें अंग्रेजी में समझाया कि यही एक तरीका है पूरे संस्थान की नज़र में आ जाओगे। मन मारकर हम तैयार हो गए। ‘गे लार्ड’ बन गई और हमारे तब के स्टैंडर्ड से बेहतरीन थी। पूरे संस्थान को मंच पर दिखलाया गया था। जो भी गेस्ट लेक्चर होता, उससे पहले सीआर (क्लास रिप्रेंजेंटेटिव) गेस्ट को वह फ़िल्म दिखलाता। हम भी मन ही मन सोचते कि साला अगला अकीरा कुरोसावा तो हम ही हैं। एक समस्या और थी। फ़िल्म के ग्लोबल रीलीज़ के बाद छात्र और छात्राएं जब भी मुझे और ऋषि को साथ देखते तो मुस्कुरा देते....। कैंपस के लौंडों की नज़र तो हमारे कमर के नीचे ही ठिठक जाती थी। फीजिकल एविडेंस खोजते होंगे। यही सोचते होंगे, कि दोनों गे हैं। लाईन मारने के लिए लड़कियों की क्रायसिस हो गई थी। फ़िल्म की सीडी बनाकर घर (पटना) भी ले गया था। उस सीडी में हमारे और भी काम थे। पिताजी ने नशाखोरी पर मेरी फ़िल्म देखकर तारीफ़ की थी, लेकिन गे लार्ड देखते ही चुप हो गए। समझ गए थे, बेटवा गया काम से....। किंतु-परंतु....लोगों को सीडी दिखाकर कहते, लड़का प्रोग्रेसिव हो गया है!!! फ़िल्म को भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों को भी दिखाई गई थी। आज भी संस्थान के हरेक बैच के बच्चों को हमारी फ़िल्म जरूर दिखाई जाती है। दो-तीन दिन में उसे यू-ट्यूब पर डाल दूंगा। पूरी दुनिया देखेगी। ख़ैर, व्यक्तिगत रूप से मैं कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करता हूं। लेकिन समस्या अभी और भी है। समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता तो मिल गई, लेकिन इसे सामाजिक मान्यता मिलने में अभी काफ़ी वक्त लगेगा। और असली चुनौती वहीं है।

8 comments:

Unknown said...

मान गए गुरू...आप सचमुच प्रोग्रेसिव हो गए हैं।

Unknown said...

जल्दी से यू ट्यूप पर फिलम को डालिए। देखने के लिए बेचैन हूं।

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

सही कहा, यह अदालत में तय हो सकनेवाला मामला नहीं है, असली सुनवाई समुदाय में होनी बाकी है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

इसे कानूनी मान्यता तो नहीं कहा जा सकता। हाँ एक डंडा जो तना हुआ था वह जरूर हट गया है।

Udan Tashtari said...

धन्य हुए पढ़कर!!

sushant jha said...

iss film mein maine bhi acting kiya tha...mere jikra kyon nahin kiya...:)

Anonymous said...

you tube ka link mujhey bhi bhej dijiyega :-)..dekhu koun sa kamal kiya hai aapey ...baaki gay sans+kriti par kya kahu ..prakriti k na janey kitney niyam tutey hai ek aur tut gaya dekhtey aagey kya hota hai :-)

Unknown said...

सही कहा, कानूनी जंग भले ही जीत ली गई हो, लेकिन सामाजिक स्‍तर पर इसे स्‍वीकार किया जाना अभी बहुत दूर की कौड़ी है। इस मुल्‍क में जहां लड़का-लड़की के लिए अपनी मर्जी से शादी करना मुश्किल है, ऐसे में समलैंगिकता तो...। दिल्‍ली अभी दूर है।