काफ़ी दिनों के बाद रात छत पर सोने का मौका मिला। दिल्ली की गर्मी और बिजली की लुकाछिपी अक्सर ऐसे मौके मुहैया कराती ही रहती है। लेकिन खुली हवा में सोने से अक्सर बचता ही रहा हूं। कल रात बत्ती फिर से दगा दे गई। कमरा उमस से भर गया। हार कर छत पर चला गया। मां ने घर (पटना) से चटाई भिजवा दिया है। बस उसे बिछाया और चौड़ा हो गया। लेकिन मुई नींद नहीं आई। ठंडी हवा धीरे-धीरे बहते हुए शरीर को सूकून दे रही थी। गजब का नशा था उस हवा में। लगा किसी साकी के दरवाजे को छूकर आ रही हो। आसमान के विस्तार में पूनमिया चांद की रोशनी अनंत तक बिखरी हुई थी। चांद धीरे-धीरे बगल वाले छत पर लगे मोबाईल टावर के ऊपर आ गया था। लगा कि वो रात भर चलते-चलते काफ़ी थक गया है और अब टावर पर पैर लटका कर कुछ देर आराम करना चाहता हो। अपने दो मेगापिक्सल मोबाईल कैमरे से मैंने चांद की नज़र उतारी। ये भी सोच रहा था, जैक्सन ने वर्षों पहले ऐसे ही चांद को देखकर मूनवॉक किया होगा। तभी हवा में कहीं से एक ख़ुशबू तैर आई। मां कहती थीं, रात में डायन खुशबू फैलाती हैं। नज़रें इधर उधर दस्त भर कर उस ख़ुशबू को ढ़ूंढने लगी। बगल वाले मकान में गर्ल्स हॉस्टल है। रात अपने पूरे शबाब पर थी। और एक अकेली लड़की उस छत पर अपने बाल संवार रही थी। चांद की दुधिया रोशनी उसे और हसीन बना गई थी। तभी जेहन में कहीं से तलत महमूद का ये वाला गाना याद आ गया.... ये हवा ये रात ये चाँदनी........तेरी एक अदा पे निसार है.....मुझे क्यूँ ना हो तेरी आरज़ू.......तेरी जुस्तजू मैं बहार है।
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
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तिवारी जी आज त्रिपाठी जी का किस्सा सुना रहे थे।
ये त्रिपाठी हमारे साथ अपनी जवानी के दिनों में यहीं पान के ठेले पर दिन दिन
भर बैठा रहता था। न कोई काम...
1 day ago
4 comments:
बड़ा बेहतरीन समा बना और वैसा ही ब्लॉग पर उतार दिया आपने, बधाई.
khubsurat mausam chadani ka
bhaee chandani me nahane ka anubhaw vi to ruhani hota hai
"किसी साकी के दरवाजे को छूकर आ रही हो।"
bahut khoobsurat andaz.
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