Friday, July 17, 2009

मुझे लौट कर घर ही जाना है।

कहां भूल पाता हूं, मुझे लौट कर घर ही जाना है
दिन भर कई तरह के लोगों से मिलना
कभी अपने स्वार्थ से, कभी किसी की मदद के लिए
सुंदर लड़कियां, सत्ता के गलियारों में ठहलते दलाल
कभी विद्वानों से, कभी संघर्षरत पत्रकारों से
पटना के पुराने दोस्त, दिल्ली के नए परिचित
मुस्कुरा कर सब लगाते हैं गले....
मुस्कुराहट दिलाता है याद, मुझे घर लौट जाना है।

अभी कल ही की तो बात है अख़बार में लार्ड स्वराज की तश्वीर दिखी,
याद आ गया 2004 की सर्दियों की वो शाम
मैं, लार्ड और सुशांत, बीबीसी के कार्यक्रम में घंटों साथ बैठे थे
शेखर कपूर का सरकारी व्यवस्था पर वो कटाक्ष
सुनिल अलग का आईटी की वो बातें
ओमेरा चन्ना और शायरा नशीम की शरहद पार से आए गीत
नार्थ एवेन्यू के सियासतदान
रॉबिन ज्योफ्री की आंखों से भारत की गलियां
कुतब में चंद्रास्वामी की लाल-लाल आंखें
न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में ऋषि का वो फ्लैट
जहां जुटते हैं हम और करते हैं, बड़ी-बड़ी बातें
लालगढ़ से वाशिंगटन तक फैली हमारे बातों की विसात
कम्यूनिज्म से पूजीवाद तक फैलता-सिमटता डिबेट
धर्म, आस्था, हमारा प्यार, हमारी शैतानियां
रामपाल की चाय की चुस्की
ऋषि की वेस्टर्न फिलास्फी के साथ-साथ व्यवस्था को प्यारी-प्यारी गालियां
सुशांत का गहरा ज्ञान, विश्वदीपक के वाम वचन
चे, काफ्का, सात्र, हीगल से नेहरूवियन फेबियनिज्म
पटना, झांसी, दिल्ली, मधुबनी से इलाहाबाद तक फैली हमारी यादें
और इन सब को अनवरत सुनने का मेरा धैर्य
कह जाता है, मुझे लौट कर घर ही जाना है।

5 comments:

sushant jha said...

बेहतरीन...कितनी बातों को कितने कम में समेटा है तुमने...अच्छा है। थोड़ी वेदना, थोड़ी हताशा और थोड़ी थकान भी दिख रही है...लेकिन ये सिर्फ तुम्हारी बात नहीं...ये करोड़ों लोगों की बात है।

Udan Tashtari said...

मुझे लौट कर घर ही जाना है।

-बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

सतीश पंचम said...

अच्छा लिखा।

Chi-chi said...

warm greeting from Indonesia!

Gaurav Dikshit said...

Bhai saab khoob likha hai...
Is rachna ke peechey kahin na kahin mera bhi haath hai...
Openly credit do ab to.. :)