Tuesday, August 4, 2009

ज़िंदगी को बहुत प्यार हमने दिया...

....मौत से भी मुहब्बत निभाएंगे हम......आज किशोर दा की 22 वीं बरसी है। ज़िंदा होते तो आज 80 साल के होते। किशोर दा आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके गाने, उनका अभिनय, उनकी कॉमेडी आज भी हमें हंसाती, रुलाती और गुदगुदा जाती है। बहुमुखी प्रतिभा से लबरेज किशोर दा क्या कुछ नहीं थे, गायक, कलाकार, हास्य अभिनेता, निर्देशक, संगीतकार, लेखक...एक ज़िद्दी सख़्सियत जो अपने वसूलों के लिए किसी भी हद तक जा सकता था। इमरजेंसी के चरम पर सरकार को ठेंगा दिखलाने का साहस किशोर ही कर सकते थे। हुआ यूं कि सरकार ने उन्हें ऑल इंडिया रेडियो और सरकारी टेलिविजन पर बिना पैसों के गाने को कहा। किशोर को यह मंजूर नहीं था। मना कर दिया, नतीजतन किशोर को रेडियो और टेलीविजन से प्रतिबंधित कर दिया गया था। किशोर ज़िंदगी के बिसात पर किश्मत के बेजोड़ खिलाड़ी थे। संगीत की कोई शिक्षा नहीं, लेकिन 18 साल के उम्र में ही माईक्रोफोन पकड़ लिया। खंडवा का छोरा आभाष गांगुली, इतिहास रचने मुंबई के लिए निकल पड़ा था। सपनों की नगरी बंबई , सुबह से शाम तक दौड़ती मुंबई । बड़े भाई अशोक पहले से ही सफ़ल अभिनेता के रूप में स्थापित थे। लिहाजा युवा किशोर को काम पाने के लिए अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा। किशोर ने बॉम्बे टॉकीज ज्वाईन कर लिया। शुरुआती दौड़ में किशोर के पास ज्यादा काम नहीं था। देव आनंद की फ़िल्म ज़िद्दी के लिए उनका पहला गाना रिकार्ड हुआ। गाने की बोल थी, मरने की दुआएं क्यूँ मांगूं ,जीने की तमन्ना कौन करे। इस गीत में कुछ भी नया नही था और के. एल. सहगल की नक़ल जैसी थी। इसके पहले किशोर ने एक समूह गीत में भी भाग लिया था। बड़े भाई अशोक चाहते थे कि किशोर अदाकारी में ही मन लगाए, गाने से कुछ ख़ास हासिल होने वाला नहीं है। लेकिन हरफनमौला किशोर को गाना ही अधिक पसंद था। किशोर ने " शिकारी" नाम की एक फ़िल्म में पहला अभिनय किया। फ़िल्म कुछ ख़ास नहीं कर पाई, लेकिन किशोर गायन के साथ-साथ अभिनय में भी लगे रहे। 1951 में किशोर ने रुमा देवी से शादी कर ली, लेकिन यह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई। इस शादी से परिवार में दरार भी पड़ गई। ये किशोर के मुफलिसी के दिन थे। कुछ ख़ास काम नहीं था। उन्हीं दिनों संगीत निर्देशक सचिन देव बर्मन ने किशोर को बाथरूम में गाते सूना और उन्हें आपने आवाज़ में गाने की सलाह दी। बर्मन दा और किशोर के इस मिलन से शुरू हुआ एक ऐसा सफ़र जो हिन्दी फ़िल्म जगत का एक सुनहरा इतिहास बन गया। सचिन दा ने किशोर के आवाज़ को और तराशा। दोनों की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को कुछ यादगार गाने दिए। अराधना का, मेरे सपनों की रानी, रूप तेरा मस्ताना...शर्मिली का, खिलते हैं गुल यहां, आज मदहोश हुआ जाए रे...पेईंग गेस्ट का वो सदाबहार गाना, माना जनाब ने पुकारा नहीं...मुनीमजी का ये गीत, जीवन के सफ़र में राही...दिल्ली का ठग में आशा के साथ, ये रातें ये मौसम नदी का किनारा, वो चंचल हवा....ज्वेल थीफ का, ये दिल न होता बेचारा...फंटूस का, दुखी मन मेरे...और चलती का नाम गाडी़ के गानों को कौन भुला सकता है, एक लड़की भीगी भागी सी। किशोर उस दौड़ के लगभग हर अभिनेता की आवाज़ बन गए थे। फ़िल्म आराधना का गाना, रूप तेरा मस्ताना ने किशोर को पहला फ़िल्मफेयर दिलाया था।

1960-1970 का दशक हिन्दी सिनेमा जगत किशोर के नाम ही रहा। प्लेबैक सिंगिंग, अभिनय, निर्देशन, लगभग हर क्षेत्र में किशोर का डंका बज रहा था। 1962 में बॉम्बे का चोर (माला सिन्हा), हाफ टिकट (मधुबाला), 1964 में मिस्टर X इन बॉम्बे, दूर गगन की छाँव में (आ चल के तुझे मैं लेकर चलूं), 1965 में श्रीमान फंटूस का गाना (वो दर्द भरा अफ़साना)...अभी किसी ब्लॉग पर पढ़ रहा था कि जितने भी बड़े स्टेज शो हुए, लगभग सभी में किशोर ने इस गीत को दोहराया। 1967 में रिलीज़ हुई पडो़सन को कौन भुला सकता है, भले ही फिल्म में किशोर का किरदार साईड हीरो का था, लेकिन गुरू विद्यापति का वह किरदार भोला (सुनील दत्त) के अभिनय से बीस ही था। रूमा देवी के बाद किशोर ने तीन और शादियां की, मधुबाला, योगिता बाली और लीना चन्दावारकर। मधुबाला महज 36 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गई। योगिता बाली से किशोर का विवाह सफ़ल नहीं रहा, बाद में योगिता ने मिथुन चक्रवर्ती से शादी कर ली। 1980 में किशोर ने लीना चन्दावारकर से शादी कर ली, जो अंत तक किशोर के साथ रहीं।
किशोर जीवन के अंतिम दिनों में खंडवा वापस जाना चाहते थे। फ़िल्मी दुनिया से उनका मोह भंग हो रहा था। किशोर के शख़्सियत विरोधाभासों से भरा हुआ था। अमरीका में एक स्टेज शो के बाद किशोर ने शपथ खाई थी कि वे अब लता के साथ कभी नहीं गाएंगे, लेकिन उनके कुछ बेहतरीन गाने लता के साथ ही है। किशोर को भीड़ नापसंद थी, लेकिन अपने दर्शकों से उन्हें प्यार था। अपने प्रशंसकों से मिलने पर वे उनका ख़ूब मनोरंजन करते। एक अभिनेता के रूप में वे शानदार कैरियर बना सकते थे, लेकिन उन्हें गाने से प्यार था। किशोर को रिकार्डिंग स्टूडियो में लाना सबसे मुश्किल काम था, लेकिन शायद ही किसी गायक ने अपने गानों को किशोर की तरह डूब कर गया हो।

सच पूछिए तो किशोर दा का नाम आते ही जेहन में जाने कितनी तस्वीरें, जाने कितनी सदायें झिलमिला आती हैं। किशोर दा यानी एक हरफनमौला कलाकार, एक सम्पूर्ण गायक, एक लाजवाब शख़्सियत...और भी बहुत कुछ जिसे बांध पाने में मेरी कलम हार जाती है....

7 comments:

अनूप शुक्ल said...

अच्छा लेख । शुक्रिया।

Arun said...

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Manjit Thakur said...

बहुत बढिया..शानदार... बधाई

अजय कुमार झा said...

rajiv jee aaj ke din isse badhiyaa lekh koi ho hee nahin saktaa tha ..bahut achha ...likha aapne

ओम आर्य said...

lekh ke liye shukriya .......achchhaa hone keliye badhaaee

Nitish Raj said...

सहजने वाला लेख, अभी किशोर दा के गीत सुन रहा हूं और साथ ही पोस्ट पढ़ भी रहा हूं। बेहतरीन।

sushant jha said...

Really good post..one of the best u hav written.