Sunday, August 16, 2009

मुझको पहचान लो, मैं हूं कौन?

बहुत दिनों के बाद सलमान ने सही बात कही है। आमरीका में शाहरुख़ के साथ हुई घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि, “शाहरुख के साथ जो हुआ असल में उसे सिर्फ एक सुरक्षा प्रक्रिया के लिहाज से देखा जाना चाहिए। और इसी कारण से 9\11 के बाद से अमरीका सुरक्षित है”। सलमान की बात में दम है। शाहरुख़ अपने मुल्क में या फिर दुनिया भर में फैले हिन्दुस्तानियों के लिए आइकन हो सकते हैं। लेकिन, अमरीका के लिए वे एक विजिटर से ज्यादा कुछ नहीं हैं। मुझे यकीन है कि शाहरुख़ का किसी भी आतंकवादी संगठन या वारदात से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। लेकिन, 9\11 जैसी घटना फिर से न दुहरायी जाए इस लिहाज से अमरीकी सुरक्षा ऐजेंसियां कोई भी चांस नहीं लेना चाहतीं और इसमें कुछ ग़लत भी नहीं है। और इस बात की क्या संभावना है कि जांच अधिकारी किंग ख़ान के फैन हों, या उन्हें पहचानते ही हों????

अमरीका में कल एक मज़ेदार वाकयात और भी हुई। वहां के मशहूर कलाकार बॉब डॉयलन को न्यू-यार्क पुलिस ने सिर्फ़ इस वजह से पकड़ लिया था क्योंकि उनके पास सिर्फ़ एक पहचान पत्र था। बाद में डॉयलन पुलिस के साथ अपने होटल गए, जहां उन्होंने अपनी दूसरी पहचान पत्र दिखलाई, तब जाकर उन्हें छोड़ा गया। अब इस घटना को क्या कहेंगे आप। अमरीका तो डॉयलन का अपना देश है...और किसी भी पैमाने पर वहां उनकी लोकप्रियता या रुतबा शाहरूख़ से कम नहीं। वहां तो इस बात पर कोई हो-हल्ला नहीं हुआ।

शाहरुख़ कहते हैं कि इस घटना से वे गुस्से में हैं, नाराज़ हैं। उनका मानना है उन्हें परेशान किए जाने का सबब उनका मुसलमान होना है। शाहरूख़ इस बात को कहते वक्त शायद यह भूल गए कि अमेरिका और पश्चिमी देशों में हर दिन हजारों मुसलमानों को अतिरिक्त सुरक्षा जांचों से गुज़रना होता है। दरअसल शाहरूख़ के गुस्से की वजह कुछ और ही है। उन्हें गुस्सा इसलिए आया क्योंकि यह उनके साथ हुआ। शाहरूख़ ख़ान मेगा स्टार के साथ हुआ। हम सब जानते हैं कि दुनिया के कई मुल्कों में मुसलमानों को साथ पक्षपात किया जाता है। पश्चिमी देश या अपने यहां भी आतंकवाद को सीधा इस्लाम से जोड़ दिया गया है। यह अन्यायपूर्ण है, ग़लत है। लेकिन यह भी सच है कि अमरीका अपने नागरिकों की सुरक्षा को काफ़ी गंभीरता से लेता है। हमारे मुल्क की तरह नहीं जहां आम आदमी की सुरक्षा भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। एक बात और, चूंकि 9\11 को अंजाम देने वाले अधिकतर मुसलमान थे, इसलिए अमरीका उनपर विशेष नज़र रखता है। अगर 9\11 की घटना में मुसलमान की जगह हिंदू होत, या फिर यहूदी होते, तो वहां उनकी भी जांच कड़ाई से की जाती। हां पुर्व राष्ट्रपति कलाम की जांच से मुझे पीड़ा हुई थी, लेकिन वो अब पुरानी बात है।

शाहरूख़ वाली घटना को दो नज़रिए से देखा जाना चाहिए। सबसे हास्यास्पद बात यह कि हमें लगता है कि हमारे आइकन और सुपर स्टार को पूरी दुनिया उसी चश्मे से देखती है, जिससे हम देखते हैं। कल अगर दिल्ली की सड़को पर ‘जेट ली’ टहलते हुए दिख जाएं तो शायद ही हम-आप में से कोई उन्हें पहचान पाएं। या फर्ज़ कीजिए ‘डैनजिल वाशिंगटन’ पटना की गलियों में दिख जाएं तो उन्हें कौन पहचानेगा....शायद कोई भी नहीं। लेकिन अपने देश में ये दोनों हमारे किंग ख़ान से कम हैसियत और पहचान नहीं रखते।

इसके अलावा, अमेरिका भारत की तरह से ग़ुलामी की मानसिगता से ग्रस्त नहीं हैं। माइक टायसन से आम अपराधी की तरह व्यवहार किया गया और उन्होंने जेल में अपनी जवानी का बेहतरीन हिस्सा बिताया। हॉलीवुड की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री विनोना राइडर को डिज़ाइनर कपड़े चुराने के इल्ज़ाम में 480 घंटे समाज सेवा करना पड़ा। अभीनेत्री वाइ लिंग को चोरी के लिए 200 डॉलर जुर्माना देना पड़ा।

दरअसल बात यह है कि हमारे गुस्से की वजह हमारी नियम-कानून तोड़ने की आदत है। यह कोई अच्छी बात नहीं है। हमें भी अमरीकियों की तरह होना चाहिए। प्रोफेशनल, और देश की सुरक्षा को हल्के में लेने की भूल नहीं करनी चाहिए। अगली बार ब्रैड पिट और एंजलिना भारत आएं तो उनकी भी कड़ाई से जांच हो। बिल क्लिंटन को भी एयरपोर्ट पर चैकिंग से गुजारनी चाहिए। वे भी तो कलाम की तरह ही भूतपुर्व राष्ट्रपति ही हैं। कौन और क्या रोक रहा है आपको? औपनिवेशिक हैंगओवर जिससे आप 62 वर्षों के बाद भी बाहर नहीं निकल पाए हैं, या कि आपकी सुस्ती और लचर व्यवस्था? मुझे तो दोनों लगता है। इसलिए शाहरूख़ को छोड़िए और अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित कीजिए।

3 comments:

अनूप शुक्ल said...

अच्छी तरह से लिखी सब बातें!

Gyan Darpan said...

आपके विचारों से सहमत !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वास्तव में शाहरूख का गुस्सा होना उनके अहँ भाव को पहुँची चोट का परिणाम है न कि मुसलमान होना।।
ये लोग शायद भूल जाते हैं कि जब इन्हे सम्मान दिया जाता है, तब क्या इन लोगों का धर्म बदल जाता है? भई तब भी तो आप लोग मुसलमान ही होते हो। तब क्यूँ नहीं कहते कि ये सम्मान मुझे मुसलमान होने के कारण मिला है।।