प्रेम, मोह, माया, लगाव, चाह, स्नेह जैसे शब्द प्राय: मानवीय रिश्तों या संवेदनाओं को ही बयां करते रहे हैं। माँ-बाप से प्यार हैं। भाई-बहन से स्नेह। दोस्तों से लगाव है। बच्चों की चाहत। लेकिन कभी सुना है कोई अपनी गाड़ी से दिवानगी की हद तक प्यार करने लगे। जी हाँ, ऋत्विक घटक की फ़िल्म अजांत्रिक का नायक विमल। एक लोहे की ढ़ेर से ऐसा प्यार कि जीना भी उसके लिए और मौत भी उसी की ख़ातिर।
ऋत्विक घटक की फ़िल्म अजांत्रिक (1958) की कहानी एक बिहारी टैक्सी ड्राईवर विमल के आसपास घूमती है। विमल गरीब है और बस स्टैंड में रहता है। रोज़ी कमाने के लिए उसके पास एक पुरानी और खटारा पर चुकी टैक्सी है। 1920 मॉडल सेवरोलेट जैलोपी। विमल अपने टैक्सी को प्यार से जगद्दल नाम से पुकारता है। फ़िल्म की कहानी मानव और मशीन के इस परस्पर संबंध को बयां करती है। गज़ब प्यार है विमल को अपने जगद्दल से। कुछ इतना की उस लोहे की भारीभरकम निर्जीव को भी वह सजीव समझने लगता है। एक पढ़े-लिखे आदमी को जवाब देते हुए विमल कहता है - "मैं मशीन हूं"। "मुझे पेट्रोल की ख़ुशबू अच्छी लगती है"। "यह ख़ुशबू मुझे उँचाई तक ले जाती है"। "लेकिन समस्या यह है कि लोग नहीं समझ पा रहे हैं कि जगद्दल भी एक इंसान है"। "इसके अंदर भी हमारे आपके तरह आत्मा है, भावनाएं हैं"। विमल का अपने टैक्सी के लिए प्यार मानवीय जुड़ाव और समर्पण की कहानी है, जो हमेशा उसे प्रोत्साहित करती रहती है। विमल का जिन्दादिल साथी जगद्दल और जगद्दल का दोस्त विमल। लगता है दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं।
विमल और जगद्दल का साथ पंद्रह बरस पुराना है। इन पंद्रह वर्षों मे विमल के दोस्तों ने कई गाड़ियां बदलीं। बाजार में तरह-तरह की डिजाईनर और लग्ज़री गाड़ियां आ गई थी। लेकिन इन सालों में विमल ने जगद्दल और जगद्दल ने विमल का साथ कभी नहीं छोड़ा। दोस्तों ने ताना भी मारा। विमल का उनके लिए जवाब होता था कि उसके जगद्दल को कभी छींक नहीं आती है, न ही कभी उसका पेट दर्द करता है। दोस्तों के ताने फिर भी कम नहीं हुए। आख़िरकार एक दिन बाज़ी लग गई। जगद्दल को नए पुर्ज़ो से नवाज़ा गया। उसे उसके अग्निपरीक्षा के लिए तैयार किया गया। अंतिम और निर्णायक इम्तिहान जिसमें जगद्दल की मज़बूती और उसके होने की सार्थकता की जाँच होनी थी। परीक्षा के लिए विमल ने जगद्दल के उपर कई भाड़ी भड़कम पत्थर के बोल्डर लाद दिए। इस तरह का बोझ विमल ने आजतक कभी जगद्दल के उपर नहीं रखा था। विमल ने जगद्दल को प्यार से चेताया - "मैंने तुम्हें बहुत लाड़ प्यार से पाला है"। "आज की परीक्षा तुम्हारे अपने जीवन के लिए निर्णायक है"। "तुम्हारे होने को ही चुनौती है।" "मुझे निराश मत करना"।
जगद्दल अपने उपर रखे गए बोझ से संघर्ष करते हुए ढ़ह जाता है। या कहें कि मर जाता है। विमल की आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं। स्टीयरिंग पर बैठ कर उसने विंड स्क्रीन के टुकड़े टुकड़े कर दिए। बाद में जगद्दल को कबाड़ी वाले को बेच दिया गया। विमल के आँखों के सामने ही जगद्दल को स्टील के छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया गया। जगद्दल की अंतिम संस्कार कर दी गई थी। फ़िल्म के गाने भी जीवन के चक्र को दर्शाते हैं - जन्म, संघर्ष, विवाह, मृत्यु और फिर से जन्म। कहानी कई सवाल भी छोड़ गई, एक कबाड़ से यह कैसा सम्मोहन? अफ़सोस यह है कि इस महान फ़िल्म को अपने समय में बहुत ही कम ख्याति मिली थी। कुछ-कुछ ऐसा ही फ़िल्म के निर्देशक ऋत्विक घटक के साथ भी हुआ था।
ऋत्विक घटक की फ़िल्म अजांत्रिक (1958) की कहानी एक बिहारी टैक्सी ड्राईवर विमल के आसपास घूमती है। विमल गरीब है और बस स्टैंड में रहता है। रोज़ी कमाने के लिए उसके पास एक पुरानी और खटारा पर चुकी टैक्सी है। 1920 मॉडल सेवरोलेट जैलोपी। विमल अपने टैक्सी को प्यार से जगद्दल नाम से पुकारता है। फ़िल्म की कहानी मानव और मशीन के इस परस्पर संबंध को बयां करती है। गज़ब प्यार है विमल को अपने जगद्दल से। कुछ इतना की उस लोहे की भारीभरकम निर्जीव को भी वह सजीव समझने लगता है। एक पढ़े-लिखे आदमी को जवाब देते हुए विमल कहता है - "मैं मशीन हूं"। "मुझे पेट्रोल की ख़ुशबू अच्छी लगती है"। "यह ख़ुशबू मुझे उँचाई तक ले जाती है"। "लेकिन समस्या यह है कि लोग नहीं समझ पा रहे हैं कि जगद्दल भी एक इंसान है"। "इसके अंदर भी हमारे आपके तरह आत्मा है, भावनाएं हैं"। विमल का अपने टैक्सी के लिए प्यार मानवीय जुड़ाव और समर्पण की कहानी है, जो हमेशा उसे प्रोत्साहित करती रहती है। विमल का जिन्दादिल साथी जगद्दल और जगद्दल का दोस्त विमल। लगता है दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हैं।
विमल और जगद्दल का साथ पंद्रह बरस पुराना है। इन पंद्रह वर्षों मे विमल के दोस्तों ने कई गाड़ियां बदलीं। बाजार में तरह-तरह की डिजाईनर और लग्ज़री गाड़ियां आ गई थी। लेकिन इन सालों में विमल ने जगद्दल और जगद्दल ने विमल का साथ कभी नहीं छोड़ा। दोस्तों ने ताना भी मारा। विमल का उनके लिए जवाब होता था कि उसके जगद्दल को कभी छींक नहीं आती है, न ही कभी उसका पेट दर्द करता है। दोस्तों के ताने फिर भी कम नहीं हुए। आख़िरकार एक दिन बाज़ी लग गई। जगद्दल को नए पुर्ज़ो से नवाज़ा गया। उसे उसके अग्निपरीक्षा के लिए तैयार किया गया। अंतिम और निर्णायक इम्तिहान जिसमें जगद्दल की मज़बूती और उसके होने की सार्थकता की जाँच होनी थी। परीक्षा के लिए विमल ने जगद्दल के उपर कई भाड़ी भड़कम पत्थर के बोल्डर लाद दिए। इस तरह का बोझ विमल ने आजतक कभी जगद्दल के उपर नहीं रखा था। विमल ने जगद्दल को प्यार से चेताया - "मैंने तुम्हें बहुत लाड़ प्यार से पाला है"। "आज की परीक्षा तुम्हारे अपने जीवन के लिए निर्णायक है"। "तुम्हारे होने को ही चुनौती है।" "मुझे निराश मत करना"।
जगद्दल अपने उपर रखे गए बोझ से संघर्ष करते हुए ढ़ह जाता है। या कहें कि मर जाता है। विमल की आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं। स्टीयरिंग पर बैठ कर उसने विंड स्क्रीन के टुकड़े टुकड़े कर दिए। बाद में जगद्दल को कबाड़ी वाले को बेच दिया गया। विमल के आँखों के सामने ही जगद्दल को स्टील के छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दिया गया। जगद्दल की अंतिम संस्कार कर दी गई थी। फ़िल्म के गाने भी जीवन के चक्र को दर्शाते हैं - जन्म, संघर्ष, विवाह, मृत्यु और फिर से जन्म। कहानी कई सवाल भी छोड़ गई, एक कबाड़ से यह कैसा सम्मोहन? अफ़सोस यह है कि इस महान फ़िल्म को अपने समय में बहुत ही कम ख्याति मिली थी। कुछ-कुछ ऐसा ही फ़िल्म के निर्देशक ऋत्विक घटक के साथ भी हुआ था।
5 comments:
अच्छा लिखा है लेकिन ऋत्विक घटक ने बहुत नाम कमाय। गैर बंगला प्रान्तों में नई पीढ़ी के लोग उन्हें कम जानते हों लेकिन बंगाल में तो हर सिनेमा प्रेमी उनके नाम से वाकिफ़ है
असाधारण जानकारी। कल ही देख लुंगा यह फिल्म। अद्भुत कहानी है। ऋत्विक घटक की 'मेघे ढका तारा' भी बेहतरीन है।
अपनी बात को कहने का आपका सलीका लाजवाब है। मैं आपके इस हुनर को सलाम करता हूँ।
राजीवजी बहुत खोज के जानकारी निकली हैं। आपके लेख ने दिमाग की बत्ती जला दी। प्रेम किसी से भी किया जा सकता हैं व्यक्ति या वस्तु। प्रेम हर एक व्यक्ति की अपनी भावना है। वैसे हम सभी लोगों ने अपने बचपन में अपनी किसी न किसी चीज से ऐसा प्रेम जरूर किया होगा।
Ek Achhi प्यार की कहानी likha hai aapne.
Being in love is, perhaps, the most fascinating aspect anyone can experience.
Thank You
Post a Comment