Thursday, September 24, 2009

चांद के पार चलो...!

आज की सबसे बड़ी ख़बर चांद से आ रही है। चांद यानि अपना नानी-घर। चंदा मामा उतने रूखे-सूखे नहीं हैं, जितना हम समझते आ रहे थे। हमारे पहले मून मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी को ख़ोज लिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रयान अपने साथ नासा का मून मैपर साथ लेकर गया था। मून मैपर को चांद पर पानी के कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जो कि अब तक की खोज में सबसे अहम है।

वैज्ञानिकों के अनुसार चांद पर पानी झील या तालाब के रूप में नहीं है बल्कि धूलकणों और चट्टानों में भाप के रूप में है। इसी के साथ चांद की मिट्टी में मौजूद नमह से पानी निकाले की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

करत-करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निशान। सच साबित हो रहा है---भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अपनी सफलता के तिरंगे फैला रहा है, जिसका पूरा पूरा श्रेय इसरो को जाता है। अथक प्रयासों ने भारत को ब्रह्मांड में अपनी उपस्थिति को दर्ज कराया है। संभव है इस ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हों....कोई तो है जो हमें भी उसी शिद्दत से ढ़ूंढ रहा हो....।

मानव जाति बड़ा हो रहा है। वह मैच्योर हो रहा है। सोच, समझ, ज्ञान बढ़ी रही है। इंसानी उद्भव का इतिहास, हमारे-आपके जीवन काल की तुलना में भले ही बहुत विस्तृत हो, लेकिन सच तो यही है कि हरेक पीढ़ी ज्ञान के उस अपार समंदर की एक कड़ी मात्र है। कहते हैं, पृथ्वी इंसान का पालना है। हम यहीं पैदा हुए है। लेकिन हमारी दुनिया अनंत तक फैली हुई है। चांद पर हमारी पहुंच बता रही है कि हम अब धीरे-धीरे चलने की कोशिश करने लगे हैं। एक न एक दिन हमें इस पालने को छोड़ना ही होगा। धरती मां के आंचल से दूर निकलना ही होगा। चांद पर हमारी पहुंच इसी ओर इशारा कर रही है। मैं पटना के किसी अस्पताल में पैदा हुआ....अस्पताल से घर, फिर पटना कि गलियों में..वहां से दिल्ली...आगे हो सकता है लंदन, न्यू-यार्क, मास्को कहीं भी जा सकता हूं...शायद मुझे भी नहीं पता कहां-कहां। लेकिन ये पलायन ज़िंदगी जीने के लिए जरूरी है। जिसने माईग्रेट किया, वो सफ़ल हुआ। और धरती से माईग्रेसन ही इंसानी सफ़लता की कहानी बनेगी।

चालीस साल पहले 20 जुलाई, 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रखते वक्त कहा था....’One small step for man. One giant leap for mankind...’, हलांकि mankind से पहले आर्मस्ट्रांग ‘the’ mankind लगाना भूल गए थे। लेकिन, उनके उस अधूरे वाक्य से पूरी दुनिया सहमत थी। और अब पानी मिलने के बाद आर्मस्ट्रांग के उन शब्दो को एक मुक्कमल सार्थकता मिल गई है। संभव है, हमारी आनेवाली पीढ़ियां चांद पर ही अपना आशियां बनाएं...। वो दिन बहुत दूर नहीं लगता....भले ही मैं उस दिन को न देख पाऊं।

©rajivkmishra\24\09\09\del-lon-telegraph.co.uk

3 comments:

sushant jha said...

राजीव, भारत की ये उपलब्धि वाकई सराहनीय है और इसकी टाईमिंग भी सटीक है। एक तरफ चीन का विराट सैन्य कार्यक्रम, मीडिया में तैरती उसके घुसपैठ की कोशिशें, चीन सरकार का अहंकारी रवैया और भारतीय अधिकारियों की चिंताजनक स्वीकारोक्तियां हैं तो दूसरी तरफ आसमान में हमारे वैज्ञानिको ने एक ही साथ 7 राकेटों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजकर के चीन को एक बेहतर सामरिक और कूटनीतीक जवाब दिया है। चांद पर पानी मिलना और उससे आगे भी वहां तक हमारा मानव मिशन वाकई देश के दुश्मनों को भारत पर हमला करने से पहले सौ बार सोचने पर मजबूर करेगा। बेहतर है कि अभी 10-15 साल हम पड़ोसियों से कोई बैर मोल न लें और शांति बनाए रखें। इस मामले में मैं भारतीय नेतृत्व की कूटनीति को परिपक्व मानता हूं।

महेन्द्र मिश्र said...

इस उपलब्धि से देश का गौरव बढा है .

विनोद कुमार पांडेय said...

विज्ञान की देन है सब अभी बहुत सी नयी नयी बातें और खोज मिलेंगे..
बढ़िया लेख..बधाई..