Sunday, November 22, 2009

अपने दादा को याद करिये राहुल गांधीजी !

[सुशांत झा]
सीएनबीसी में बड़े पैमाने पर हुई छंटनी के बाद बरबस ही फिरोज गांधी की याद आ गई। फिरोज गांधी को भारतीय इतिहास में सार्वजनिक उपक्रमों की मजबूती के लिए आवाज उठानेवाले लोगों में से याद किया जाएगा जिन्होने संसद में जनहित के कई बड़े मुद्दे उठाए। लेकिन उससे भी ज्यादा फिरोज गांधी को जिस बात के लिए याद किया जाएगा वो है साल 1956 का वो कानून जिसने मीडिया वालों को विधायिका से संबंधित मामलों की रिपोर्टिंग करने में बड़ी मदद की। इससे पहले मीडिया के लोग अगर संसद में हो रही किसी कार्यवाही को छापते थे तो ये उनका निजी रिस्क होता था। सांसद उनपर विशेषाधिकार प्रस्ताव के तहत कार्रवाई कर सकते थे। ऐसा अक्सर होता था कि पत्रकार विवादास्पद मुद्दों की रिपोर्टिंग से बचने की कोशिश करते। लेकिन 1956 में फिरोज गांधी की कोशिशों से संसद ने एक कानून पास किया जिसके तहत पत्रकारों को संसदीय कार्यवाही को छापने का निर्भीक अधिकार दिया गया भले ही इसमें किसी पर कोई आरोप ही क्यों न लग रहा हो।
फिरोज गांधी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा ही खोल रखा था। वे संसद के जिस कोने में बैठते थे उसे आज भी फिरोज कार्नर कहा जाता है। उन्होने एलआईसी में एक बड़े घोटाले को संसद में उठाया था जिसके तहत कलकत्ता के एक बड़े शेयर दलाल हरिदास मुंदरा की गिरफ्तारी हुई थी और नेहरु केबिनेट के कद्दावर मंत्री टी टी कृष्णमाचारी को इस्तीफा देना प़ड़ा था। न्यायमूर्ति एम सी चागला जांच आयोग ने पाया कि एलआईसी के पैसे का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर मुंदरा के शेयरों की खरीद के लिए की गई थी जिसका बाजार भाव काफी नीचे था। ये नेहरुजी के काल में और आजाद भारत में सबसे बड़ा और पहला घोटाला था जिसको फिरोज गांधी ने उजागर किया था और नेहरु सरकार की काफी किरकिरी हुई थी। माना जाता है कि इस वजह से फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी में और भी दूरी बढ़ गई थी।

लेकिन मुद्दे पर लौटते हुए बात करे तो फिरोज गांधी के पोते और राहुल गांधी में अपने दादा का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। आजकल राहुल गांधी को गौर से सुनता हूं। वे गरीबी, शिक्षा, रोजगार जैसे मुद्दों पर खूब बोलते हैं। कभी-कभी भ्रम होता है कि राहुल गांधी कहीं वामपंथी मिजाज के तो नहीं हो गए क्योंकि ये सब काम तो अमूमन वामपंथियों का होता था! राहुल गांधी मीडिया के बड़े हीरो हैं, उनकी तस्वीर लोग देखना चाहते हैं, कन्याएं उनपर फिदा हैं(एक मुम्बई में रहने वाले सलीम खान के बेटे पर भी लोग फिदा है)। हिंदुस्तान का विपक्ष एक नहीं है, वो साम्प्रदायिक और जातीय बातें करता है और लोग पिछले 20 सालों में उससे ऊब गए हैं। ऐसे में लोगों का कांग्रेस प्रेम स्वभाविक है।

लेकिन राहुल गांधी नौकरियों की हो रही छंटनी और महंगाई पर अपनी जुबान नहीं खोलते। इसे क्या माना जाए। सीएनबीसी में हुई बड़े पैमाने पर छंटनी तो महज एक नमूना भर है। देशभर में ऐसी छंटनियां हर रोज संगठित-असंगठित क्षेत्र में हो रही है लेकिन राहुल गांधी जिस युवाओं के आदर्श की बात करते हैं क्या उन्हे सचमुच कुछ नहीं दिखाई देता ? कम से कम मीडिया में हो रही छंटनी से ही वे इसकी शुरुआत करते जिसने उनकी इमेज बनाने में बड़ा रोल अदा किया है।

9 comments:

Unknown said...

ऐसे फ़ालतू मुद्दे पर राहुल बाबा क्यों बोलेंगे भाई? जब कश्मीर के रजनीश मामले पर उनका मुँह नहीं खुलता, मनु शर्मा को बेशर्मी से पेरोल दिलवाने के बावजूद शीला के खिलाफ़ वे चुप रहते हैं।
भाई साहब अभी "मीडियाई भाण्डों" के जरिये ही तो उनका छवि निर्माण चल रहा है, ऐसे मुद्दों पर बोलेंगे और कहीं उनके ज्ञान की पोल खुल गई तो?

Pratibha Katiyar said...

राहुल गांधी से ये उम्मीद ही क्यों...

शरद कोकास said...

अंतिम बात ने स्पष्ट कर दिया कि राहुल वामपंथी मिज़ाज़ के नही है

Manjit Thakur said...

राहुल बाबा बहुत शातिर हैं.. उनकी राजनीति चमक गई है गुरु.. देखना मन्नू भाई की गाड़ी बीच रास्ते में क्लच प्लेट टूटने से रुक जाएगी फिर यूपीए एक्सप्रैस के ड्राईवर होगें नन्हें-मुन्ने राहुल बाबा और गार्ड होंगी सोनिया मैया। जय माता दी। और हां, जितने कप-प्लेट धोने वाले लालू, बालू, पासवान प्रणव वगैरह हैं, सब गाड़ी की छुक-छुक पर थपड़ी बजाएंगे।

Unknown said...

sir rahul baba ab samajhdaar ho gaye hai wo pahle ki tarah juban nahi kholna chahte hai .aakhir ek neta ki tarah lakchan to unme hona hi chahyia ,jab apni galti ho to chupchap nikal aane ,ab rahul politics ko samajh rahe hai??????

अविनाश said...

अरे भाई ये उम्मीद राहुल गाँधी से क्यों ? अगर आप ये उम्मीद किसी नए और उभरते हुए राजनेता से करते तो एकबारगी समझ में आता । राहुल गाँधी एक जन्मजात नेता है नेतागिरी उनके जीन में है वो सिर्फ़ उन्ही मुद्दों पर बोलते है जिससे उन्हें फायदा हो या आने वाले समय में हो सकता है । सुधारवादी राजनीती की उनसे उम्मीद करना बेमानी है । समझयो भइया

Vijay Aalok said...

Janta janardan ke Mudda chode dei hain,
Eaho Janta hai , Tumhain Mudda (Nautanki)bana ke chode dei hain.
Konu apan Sathi logan (Schin Pailot) se janie, Jo humre area me janta se sidhe muddan se jude hain

sunilkumar thakur said...

chalo thik hai

Anonymous said...

streetheadline.com ko bhi try kar sakte hain