 आज ही अपने गृह शहर पटना से लौटा हूं। शीत-लहर के कारण कमोबेश सभी गाड़ियां देर से चल रही हैं। लेकिन इसे संयोग कहिए या कुछ और कि मेरी गाड़ी विक्रमशिला बिल्कुल नीयत समय पर दिल्ली पहुंच गई। वहां सब ठीक-ठाक चल रहा है। पिछड़ेपन के लबादे को पीछे छोड़ बिहार अब तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के नवीनतम आंकड़ों ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। बिहार नई मिरेकल इकॉनमी बन गया है। पटना की सड़कों पर राज्य के बढ़े हुए कांफिडेंस की झलक दिख जाती है। कई नए शापिंग मॉल, नए मल्टीप्लेक्स, फाईव स्टार रेस्त्रां, सड़कों पर लंबी गाड़ियां, नियॉन लाईट्स से जगमगाते मल्टीनेशनल कंपनियों के दफ्तर और लोगों के अंदर नई ऊर्जा, ये सब मुझे पटना में दिखा। मोना टॉकिज अब मल्टीप्लेकस बन गया है। किसी ज़माने में 10 रू में डीसी की टिकट मिलती थी, वहीं 'थ्री इडियट्स' देखने के लिए मुझे इस बार डेढ़ सौ रूपए खर्च करना पड़ा। कई नए लोकल मीडिया संस्थान के ऑफिस खुल गए हैं। पिताजी के कई मित्रों से राज्य की स्थिति पर बात हुई। नीतीश कुमार के कई प्रशंसक मिले, कई आलोचक भी। लेकिन मुख्यमंत्री का कोई निंदक नहीं मिला..। कानून व्यवस्था भी की हालत भी पहले से काफी सुधर गई है। पहले जहां गोली-बम की आवाज़ आम सी हो गई थी, वहीं इस बार बम के धमाकों के बिना थोड़ा सूना-सूना लग रहा था! चौक-चौराहों पर पुलिस मुस्तैद दिखी। शराब के ठेकों की संख्या बढ़ गई है। लेकिन 1 जनवरी को कोई सड़क पर पी कर हंगामा करता नहीं दिखा। पटना कॉलेज में एक क्लास लेने का मौका मिला। बैचलर इन जर्नलिज्म के अंतिम वर्ष के छात्रों से बात करने पर उनके अंदर अंग्रेज़ी सीखने की लालसा दिखी। इंजीनयरिंग, मेडिकल के कोचिंग तो पहले से ही बहुत थे, इस बार अंग्रेज़ी सीखाने वाले कई नए संस्थान कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं। बिहारी छात्र सिर्फ इंग्लिश में मार खा जाता है, लेकिन शायद अब मर्ज़ पकड़ में आ गया है। इधर फूड हैबिट भी तेज़ी से बदल रहा है। किसी ज़माने में लिट्टी-चोखा को राज्य के पिछड़ेपन का प्रतीक माना जाता था, लेकिन पटना में मुझे कई ऐसे रेस्त्रां मिले जहां बड़ी शान से लिट्टी-चोखा को मैन्यू में सबसे उपर जगह दिया गया था।
 आज ही अपने गृह शहर पटना से लौटा हूं। शीत-लहर के कारण कमोबेश सभी गाड़ियां देर से चल रही हैं। लेकिन इसे संयोग कहिए या कुछ और कि मेरी गाड़ी विक्रमशिला बिल्कुल नीयत समय पर दिल्ली पहुंच गई। वहां सब ठीक-ठाक चल रहा है। पिछड़ेपन के लबादे को पीछे छोड़ बिहार अब तेजी से विकास की ओर बढ़ रहा है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के नवीनतम आंकड़ों ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। बिहार नई मिरेकल इकॉनमी बन गया है। पटना की सड़कों पर राज्य के बढ़े हुए कांफिडेंस की झलक दिख जाती है। कई नए शापिंग मॉल, नए मल्टीप्लेक्स, फाईव स्टार रेस्त्रां, सड़कों पर लंबी गाड़ियां, नियॉन लाईट्स से जगमगाते मल्टीनेशनल कंपनियों के दफ्तर और लोगों के अंदर नई ऊर्जा, ये सब मुझे पटना में दिखा। मोना टॉकिज अब मल्टीप्लेकस बन गया है। किसी ज़माने में 10 रू में डीसी की टिकट मिलती थी, वहीं 'थ्री इडियट्स' देखने के लिए मुझे इस बार डेढ़ सौ रूपए खर्च करना पड़ा। कई नए लोकल मीडिया संस्थान के ऑफिस खुल गए हैं। पिताजी के कई मित्रों से राज्य की स्थिति पर बात हुई। नीतीश कुमार के कई प्रशंसक मिले, कई आलोचक भी। लेकिन मुख्यमंत्री का कोई निंदक नहीं मिला..। कानून व्यवस्था भी की हालत भी पहले से काफी सुधर गई है। पहले जहां गोली-बम की आवाज़ आम सी हो गई थी, वहीं इस बार बम के धमाकों के बिना थोड़ा सूना-सूना लग रहा था! चौक-चौराहों पर पुलिस मुस्तैद दिखी। शराब के ठेकों की संख्या बढ़ गई है। लेकिन 1 जनवरी को कोई सड़क पर पी कर हंगामा करता नहीं दिखा। पटना कॉलेज में एक क्लास लेने का मौका मिला। बैचलर इन जर्नलिज्म के अंतिम वर्ष के छात्रों से बात करने पर उनके अंदर अंग्रेज़ी सीखने की लालसा दिखी। इंजीनयरिंग, मेडिकल के कोचिंग तो पहले से ही बहुत थे, इस बार अंग्रेज़ी सीखाने वाले कई नए संस्थान कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं। बिहारी छात्र सिर्फ इंग्लिश में मार खा जाता है, लेकिन शायद अब मर्ज़ पकड़ में आ गया है। इधर फूड हैबिट भी तेज़ी से बदल रहा है। किसी ज़माने में लिट्टी-चोखा को राज्य के पिछड़ेपन का प्रतीक माना जाता था, लेकिन पटना में मुझे कई ऐसे रेस्त्रां मिले जहां बड़ी शान से लिट्टी-चोखा को मैन्यू में सबसे उपर जगह दिया गया था। लेकिन विकास की इस बयार में कुछ चीजें छूट भी गई हैं। मसलन सड़क पर गाड़ियों की संख्या तो बढ़ गई हैं लेकिन रोड की चौड़ाई नहीं बढ़ पाई है। विकास के तमाम फायदे कहीं पटना में ही न सिमट कर रह जाएं ये खतरा बरकरार है। इसकी वजहें भी है। हाल के सालों में पटना में रीयल स्टेट की कीमतें दिल्ली-मुम्बई के बराबर होने लगी है। पटना उन कुछ चुनिंदा शहरों में शुमार हो गया है जहां से हवाई यात्रा करनेवाले लोगों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है।
लेकिन विकास की इस बयार में कुछ चीजें छूट भी गई हैं। मसलन सड़क पर गाड़ियों की संख्या तो बढ़ गई हैं लेकिन रोड की चौड़ाई नहीं बढ़ पाई है। विकास के तमाम फायदे कहीं पटना में ही न सिमट कर रह जाएं ये खतरा बरकरार है। इसकी वजहें भी है। हाल के सालों में पटना में रीयल स्टेट की कीमतें दिल्ली-मुम्बई के बराबर होने लगी है। पटना उन कुछ चुनिंदा शहरों में शुमार हो गया है जहां से हवाई यात्रा करनेवाले लोगों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। जाहिर है, ये चीजें एक खतरनाक ट्रेंड की तरफ इशारा कर रही है। इसका मतलब ये है कि पूरे बिहार में विकास के नाम पर पनपने वाला पैसा पटना में जमा होने लगा है-जो राज्य में आनेवाले वक्त में भारी आर्थिक असामनता का पूर्वाभ्यास है। 
ये अच्छा है कि राज्य में 11 फीसदी जीडीपी बृद्धि उद्योंग या कारोबार की बदौलत नही आया है। इसमें कृषि और ग्रामीण क्षेत्र का भारी योगदान है। दूसरी बात ये कि राज्य में जीडीपी बृद्धि इतना ज्यादा इसलिए भी दिख रहा है कि बिहार की अर्थव्यवस्था का आकार बहुत ही छोटा है। सरकार अगर इसी तरह समाजिक क्षेत्रों, सड़क, बिजली और शिक्षा पर अपना ध्यान फोकस करती रहे तो बिहार को एक टिकाऊ विकास मिल पाएगा जो पूरे देश में एक मॉडल होगा।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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3 comments:
सब बदल रहा है/// आप भी..आजकल दिखते नहीं.. :)
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
accha prayas hai.
http://bharatclick.com
Sir kuch professional commitments badh gaye hain...isi wajah se blogging kam ho pati hai...reg.
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